कानपुर

हार्टअटैक की जड़ तक पहुंचेंगे कार्डियोलॉजी व आईआईटी के विशेषज्ञ

कारण खोजकर उसके आधार पर तैयार होगा इलाज का तरीकालगातार बढ़ रहे हार्ट फेल्योर के मामलों के चलते लिया निर्णय

कानपुरFeb 19, 2020 / 01:52 pm

आलोक पाण्डेय

हार्टअटैक की जड़ तक पहुंचेंगे कार्डियोलॉजी व आईआईटी के विशेषज्ञ

कानपुर। युवाओं में हार्टअटैक के बढ़ते मामलों को लेकर स्वास्थ्य विभाग खासा चिंतित है। इसे देखते हुए इसमें कमी लाने के प्रयास की जरूरत महसूस हुई। मगर इसमें कमी तभी लायी जा सकती है जब इसकी जड़ तक पहुंचा जा सके, यानि हार्ट अटैक के कारणों को अगर खत्म किया जा सके तो इसमें सुधार आ सकता है। इस दिशा में कानपुर के हृदय रोग संस्थान ने कदम आगे बढ़ाया है।
आईआईटी का सहयोग
कार्डियोलॉजी ने हार्टअटैक और हार्ट फेल्योर के कारणों की खोज शुरू की है। इसमें उनकी मदद करेंगे आईआईटी के विशेषज्ञ। हाल ही में आईआईटी ने इंजीनियरिंग के अलावा मेडिकल क्षेत्र में भी शोध शुरू किए हैं। यह रिसर्च इसी का हिस्सा है। जिसमें आईआईटी कानपुर और कार्डियोलॉजी के विशेषज्ञ मिलकर हार्ट अटैक और हार्ट फेल्योर के कारण खोजेंगे। विशेषज्ञ इस बात का पता लगाएंगे कि कानपुर और आसपास के जिलों से आने वाले मरीजों की संख्या कितनी है? और हार्ट फेल होने की प्रमुख वजह क्या है?
बिना लक्षण के हार्टअटैक ज्यादा चिंताजनक
आमतौर पर ज्यादा मोटापा, उम्र और तनाव ही हार्टफेल्योर के पीछे की वजह माने जाते रहे हैं। इनके लक्षण पहले ही नजर आने लगते हैं, जिससे लोग सतर्क होकर सुधार की कोशिश करते हैं, लेकिन बगैर किसी लक्षण और हाई रिस्क वाले हार्ट फेल्योर ज्यादा चिंताजनक है। इसलिए मरीजों में यह पता लगाना जरूरी है कि उन्हें हार्ट अटैक कैसे पड़ा है? हार्ट के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। खासकर, हार्ट फेल्योर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।
यह है प्रमुख वजह
दरअसल बिगड़ते लाइफ स्टाइल, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, सेहत पर ध्यान न देना इसका बड़ा कारण है। हार्ट फेल्योर का पता समय पर चल जाए तो आगे चलकर वह भी लंबा जीवन जी सकते हैं। संस्थान के निदेशक प्रो. विनय कृष्णा के मुताबिक पूर्व में भी इस तरह के प्रयास किए गए थे, मगर रिसर्च आगे नहीं बढ़ पाया। आईआईटी के साथ एक अमेरिकी संगठन भी शोध में शामिल होगा।
यह भी है कारण
कॉडियोलॉजी के निदेशक प्रो. विनय कृष्णा के मुताबिक कार्डियक एमा इलाइडोसिस अटैक और हार्ट फेल्योर का बड़ा कारक बन रहा है। रिसर्च में यह देखा जाना है कि इस बीमारी को लेकर कौन से आयु वर्ग या रिस्क फैक्टर वाले मरीज संवेदनशील हैं? इसका कारक जीन कौन सा है? ताकि दवाओं के जरिए बीमारी काबू की जा सके।
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