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कानपुर

दीवाली पर विलुप्त होती जा रही यह प्रथा, दूसरों का घर रोशन करने वाले बोले कैसे होगा उद्धार

न हम लोगो पर सरकार ध्यान दे रही है, न हम अपने रोजगार को बढ़ा पा रहे हैं।

कानपुरOct 26, 2019 / 04:43 pm

Arvind Kumar Verma

दीवाली पर विलुप्त होती जा रही यह प्रथा, दूसरों का घर रोशन करने वाले बोले कैसे होगा उद्धार

दीवाली पर विलुप्त होती जा रही यह प्रथा, दूसरों का घर रोशन करने वाले बोले कैसे होगा उद्धार

कानपुर देहात-एक जमाना हुआ करता था, जब लोग मिट्टी के बर्तन से लेकर खिलौने से खेला करते थे। यहां तक कि शादी विवाह से लेकर किसी भी कार्यक्रम में पानी पीने के लिए मिट्टी के बर्तन को ही प्रयोग में लाया जाता था। दीपावली के पर्व को लेकर मिट्टी के बर्तन बनाने वाले लोग पूरे वर्ष इंतजार करते थे और दीवाली के पर्व पर उनके घर ढेर सारी खुशियां आती थी लेकिन समय बदल चुका है। हमारी आने वाली पीढ़ी को शायद इन मिट्टी के सामानों को देखने को भी न मिले, क्योंकि आज बढ़ते प्लास्टिक के दौर में विलुप्त होते जा रहे हैं मिट्टी के बर्तन और कुम्हारों के रोजगार। कुम्हार की चाक जब घूमती है तो उस चाक से कुछ न कुछ नई आकृति के रूप में निकलता ही है, लेकिन आज ये कुम्हार आने वाले समय मे भुखमरी की कगार पर आते जा रहे हैं।
कानपुर देहात के डेरापुर तहसील क्षेत्र के किशौरा गांव में कुम्हारों का हाल बेहाल है। इन लोगो का कहना है कि हमारा यह रोजगार हमारी जाति के नाम से जाना जाता है, लेकिन हम आज इतने लाचार हैं। तभी तो न हमारे पास छत है, न खेती, न कोई व्यापार। क्योंकि धीरे धीरे हमारा यह व्यपार बन्द होने की कगार पर है। न ही लोग कुछ ऑडर करते है, न ही बाजारों में इनको कोई पूछता है। दिवाली के दीप की भी मांग अब खत्म सी होती जा रही है। गर्मी के मौसम में तो एक समय ऐसा हुआ करता था। जब लोगो के घरों में ठंडा पानी पीने के लिए मिट्टी का घड़ा हुआ करता था, लेकिन आज हालात यह है कि इन घड़ों को 30 प्रतिशत लोग ही पूछते है। घड़ों की जगह फ्रिज ने ले रखी है। ऐसे में रोजगार दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है। न हम लोगो पर सरकार ध्यान दे रही है, न हम अपने रोजगार को बढ़ा पा रहे हैं।

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