दरअसल आपको बता दें कि किसान धान फसल की हार्वेस्टर से कटाई के बाद बचे फसल अवशेष यानी पराली को खेत में ही जला रहे हैं। इसके चलते वायुमंडल प्रदूषित हो रहा है। बीते दिनों दिल्ली से सटे प्रांतों में पराली जलाने से राजधानी के दृश्यता शून्य के स्तर तक पहुंच गई थी, जिसकी धुंध तीव्रता से कानपुर देहात व नगर तक पहुंच गई थी। इससे लोगों ने आंखों में जलन व सांस लेने की परेशानी महसूस की। नवंबर की शुरुआत में दिल्ली से सेटेलाइट से मौजूदा समय पर कानपुर देहात में की गई निगेहबानी में कुल 51 स्थलों पर पराली जलाने की घटनाएं पकड़ी गई है।
इसमें सबसे अधिक अकबरपुर व रसूलाबाद तहसील में 15-15 स्थलों पर पराली जलाई गई है, सिकंदरा व डेरापुर में 8-8 स्थलों पर, भोगनीपुर ने 4 तो मैथा तहसील में एक स्थल पर पराली जलाई गई। जबकि मैथा तहसील प्रशासन क्षेत्र में पराली जलाने की घटना से इंकार कर रहा था लेकिन सेटेलाइट से हुई निगरानी में 26 नवंबर को 2 बजे तहसील क्षेत्र के काशीपुर गांव में पराली जलाने की घटना चिन्हित की गई है। सेटेलाइट के अनुसार पराली जलाने का समय व स्थल चिह्नित कर ब्योरा प्रशासन को भेजा गया है। सेटेलाइट से मिले ब्योरा के अनुसार कई मामलों में प्रशासन द्वारा हीलाहवाली की गई है। हरकत में आए प्रशासन ने ताबड़तोड़ सर्वे कराया। किसानों को जुर्माना नोटिस देने के साथ ही लेखपालों व राजस्व निरीक्षकों पर भी कार्रवाई की जा रही है।