इसलिए बनाया पुतला
गोल चौराहे पर स्थित एक बड़ी पुतला मंडी है। यहां दूसरे प्रदेशों से हरसाल सैकड़ों की संख्या में कारीगर आते हैं और सड़क के किनारे झोपड़ी में अपना ठिकाना बना देवी, देवताओं के अलावा राक्षसों के पुतले बनाते हैं। पिछले तीन से यह मंडी गुलजार है। गणेश चर्तुदर्शी के बाद नवरात्र और अब दशहरा पर्व में बड़े पैमाने पर रावण सहित अन्य राक्षसों के पुतले यहां पर बनाए जा रहे हैं। दिब्यांग करीगर महेश ने इस वर्ष एक अजब-गजब का रावण तैयार किया है। जो स्कूटी में सवार है। उसे देखकर कारीगर की दुकान में ग्राहकों का सुबह से लेकर शाम तक तांता लगा रहता है। महेश ग्राहकों से रावण का पुतला देने के बाद उनसे अपील करता है कि वो कम से कम वाहनों का इस्तेमाल करें। पैदल चलें, रिक्शे के जरिए ऑफिस जाएं। जिससे कानपुर को प्रदूषण से तो देश को विदेशों से मुक्ति मिल सके।
इसलिए तैयार किया पुतला
महेश बताते हैं कि वो पिछले 20 सालों से देवी, देवताओं के साथ ही रावण व अन्य राक्षसों के पुतले बनाकर अपना व अपने परिवार का पेट पालता है। महेश ने बताया कि वो छत्तीसगढ़ का रहने वाला है। रायपुर में लोग वाहनों के बजाए अन्य साधनों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। इससे वहां प्रदूषण नाम का राक्षस नहीं पनप पाया। महेश ने बताया कि मैंने इस साल स्कूटी पर सवार रावण के पुतले को बनाया। नए लुक के रावण को देख युवा आते हैं तो मैं उन्हें बताता हूं कि रावण के पास बहुत संपत्ति भी और वो उसे गलत कार्य में इस्तेमाल करता है। इसी की तरह हमारे देश में कुछ लोग हैं जो प्राकृतिक संपदा का बेजा उपयोग कर पर्यावरण के साथ देश को विकास के बजाए पीछे ले जा रहे हैं। यदि हम कम से कम वाहन चलाएंगे तो डीजल और पेट्रोल की बचत कर पाएंगे।
कारीगर की सोंच को सबने सराहा
दिब्यांग करीगर की इस सोंच को लोगों ने सराहा। रावण का पुतला लेने आए ग्राहक राजीव शुक्ला ने कहा कि महेश पढ़े लिखे नहीं होने के बावजूद बहुत नेक सोंच रखते हैं। उनके इस कार्य की प्रसंसा होनी चाहिए। राजीव कहते हैं कि आज से पंद्रह साल पहले हमारे मोहल्ले में सिर्फ गुत्ता जी के पास कार थी। कुछ गिने चुने लोग दो पहिया वाहन के जरिए काम-काज के लिए जाया करते थे। उस वक्त हम खुद साइकिल से कलेक्ट्रेट जाते थे। लेकिन आज हालाल इसके बिलुकल विपरीत हैं। हमारे मोहल्ले में हर घर में चार व दो पहिया वाहन हैं। किसी-किसी के पास अनगिनत वाहन हैं। जब वाहनों की संख्या बढ़ेगी तो प्रकृतिक संपत्ति अपने आप कम होगी। साथ ही वाहनों के धुएं से शहर बीमार पढ़ेगा। जिसका असर दिख भी रहा है। कानपुर दूनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन गया है तो पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं और पब्लिक सरकार को कोस रही है। यदि हम कम वाहनों का इस्तेमाल करें तो खुद स्वस्थ्य रहेंगे और देश भी विकास के पथ पर आगे बढ़ेगा।