अर्थ साइंस विभाग के प्रोफेसर जावेद मलिक की अगुवाई में टीम भूकंप को लेकर देश में शोध कर रही है। वैज्ञानिक प्रो. जावेद मलिक और उनके विशेषज्ञों की टीम यह दावा इतिहास और अवशेषों के आधार पर किया है। इसकी रिपोर्ट मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस को भी भेज दी है। टीम के अनुसार रामनगर क्षेत्र में भूकंप के तीन प्वाइंट मिल रहे हैं। उत्तराखंड में नैनीताल के रामनगर क्षेत्र में ग्राउंड पैनीट्रेटिंग रडार के माध्यम से भी आठ मीटर अंदर तक जमीन की सतह को परखा। मिट्टी की सतह पूरी तरह से एक-दूसरे पर चढ़ी हुई है। निरीक्षण करने के बाद रविवार को लौटे प्रो. जावेद ने इस खतरे से आगाह किया।
प्रो. मलिक ने बताया कि रामनगर के नंदपुर गैबुआ गांव में 515 साल पहले यानी सन् 1505 में आए भूकंप के प्रमाण मिले हैं और यही तब भूकंप का केंद्र रहा होगा। यहां पर सात या फिर साढ़े सात प्वाइंट की तीव्रता का भूकंप आया होगा। इससे काफी तबाही मची होगी। इसके बाद इस क्षेत्र में अधिक तीव्रता वाला कोई भूकंप नहीं आया है। वैज्ञानिकों के अनुसार 500 से 600 साल बाद धरती के अंदर कंपन उतना ही बढ़ जाता है, जिससे दोबारा भूकंप आने की आशंका बढ़ जाती है। प्रो. जावेद ने बताया कि जिन क्षेत्रों में भूकंप आया है, उसका डाटा और मैप तैयार किया जा रहा है, जो बहुत कारगर होगा।
वैज्ञानिकों के मुताबिक 500-600 साल पहले अगर अधिक तीव्रता वाला भूकंप आया है तो उसी स्थान पर दोबारा आने की आशंका बढ़ती है। उत्तराखंड के नैनीताल के पास रामनगर क्षेत्र में 515 साल पहले 7.5 से तीव्रता वाले भूकंप से हुई तबाही के अवशेष मिले हैं। जिसके अध्ययन से पता चला है कि टेक्टोनिक प्लेटों की सक्रियता फिर बढ़ी है।
प्रो. जावेद मलिक ने बताया कि वर्ष 1505 में उत्तराखंड के रामनगर क्षेत्र में ही भूकंप आया था। इसकी तीव्रता 7.5 से अधिक रही होगी। इस तबाही का जिक्र बाबरनामा, अकबरनामा, मृगनयन आदि साहित्य में मिलता है। इसके साथ ही उस समय आए भूकंप से आगरा में भी काफी नुकसान हुआ था। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि यह भूकंप वर्ष 1505 में नहीं बल्कि वर्ष 1344 के करीब आया था। इसके साथ ही अगर इसे भी सही माना जाए तो भी खतरा लगातार बना हुआ है।