जागरूकता से हो सकता बचाव
चर्चा के दौरान प्रो. अशोक कुमार ने कहा कि एलर्जी, धुआं, पुरानी बीमारी से भी कैंसर होना संभव है। आजकल सडक़ दुर्घटना और हार्टअटैक से होने वाली मौतों को रोकना बहुत मुश्किल है। इसके अलावा मौता का तीसरा कारण एड्स भी है, जिसकी जल्द वैक्सीन बनने की उम्मीद है। जबकि चौथा कारण कैंसर है, जिसकी वैक्सीन बनना फिलहाल संभव नहीं लग रही है। इससे सिर्फ जागरुकता से ही बचा जा सकता है।
चर्चा के दौरान प्रो. अशोक कुमार ने कहा कि एलर्जी, धुआं, पुरानी बीमारी से भी कैंसर होना संभव है। आजकल सडक़ दुर्घटना और हार्टअटैक से होने वाली मौतों को रोकना बहुत मुश्किल है। इसके अलावा मौता का तीसरा कारण एड्स भी है, जिसकी जल्द वैक्सीन बनने की उम्मीद है। जबकि चौथा कारण कैंसर है, जिसकी वैक्सीन बनना फिलहाल संभव नहीं लग रही है। इससे सिर्फ जागरुकता से ही बचा जा सकता है।
कड़ा कानून बनाने की जरूरत
प्रो. अशोक कुमार ने कहा कि कैंसर से बचने के लिए कड़ा कानून बनाना जरूरी है। जो उत्पाद मानव शरीर के लिए नुकसानदायक हैं, उसके प्रचार-प्रसार पर रोक लगनी चाहिए। जरूरत पड़े तो उसके उत्पादन को ही बंद करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि रिसर्च में प्रूव हो चुका है कि बिगड़ी लाइफ स्टाइल ने लोगों को अनेक तरह की बीमारियों का शिकार बना दिया है। ऐसे में प्रदूषण युक्त हवा के जरिए जहरीले कण सांस से सीधे हमारे फेफड़े में जा रहे हैं और वह कैंसर बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि जो लक्षण कई दिन तक ठीक न हो, उसे तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। ये कैंसर की संभावना हो सकती है।
प्रो. अशोक कुमार ने कहा कि कैंसर से बचने के लिए कड़ा कानून बनाना जरूरी है। जो उत्पाद मानव शरीर के लिए नुकसानदायक हैं, उसके प्रचार-प्रसार पर रोक लगनी चाहिए। जरूरत पड़े तो उसके उत्पादन को ही बंद करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि रिसर्च में प्रूव हो चुका है कि बिगड़ी लाइफ स्टाइल ने लोगों को अनेक तरह की बीमारियों का शिकार बना दिया है। ऐसे में प्रदूषण युक्त हवा के जरिए जहरीले कण सांस से सीधे हमारे फेफड़े में जा रहे हैं और वह कैंसर बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि जो लक्षण कई दिन तक ठीक न हो, उसे तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। ये कैंसर की संभावना हो सकती है।
बदल रहा बीमारी का रूप
मिस्र से आए डॉ. सैयद शैलवी ने कहा कि प्रदूषण और खान-पान में बदलाव से 40 फीसदी बीमारियां बढ़ रही हैं। बीमारियां नए रूप में सामने आ रही हैं। बर्फबारी वाले इलाकों में भी डेंगू चिकनगुनिया का वायरस पहुंच गया। मच्छरों के जीन बदल गए। लोगों के खानपान भी बदल गए। प्रदूषण एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है। ऐसे में बीमारियों से अलर्ट रहने की जरूरत है। यह सलाह देश-दुनिया से आए वैज्ञानिकों ने दी। वैज्ञानिकों ने विभिन्न बीमारियों पर होने वाले शोध अनुसंधान वर विस्तृत चर्चा की है। उन्होंने कहा कि हर पांच वर्षों में तस्वीर बदल रही है। नए चीजें शामिल हो रही हैं। एक दवा बाजार में आती है दूसरी फेल होती है। एक गम्भीर स्थिति बनती जा रही है।
मिस्र से आए डॉ. सैयद शैलवी ने कहा कि प्रदूषण और खान-पान में बदलाव से 40 फीसदी बीमारियां बढ़ रही हैं। बीमारियां नए रूप में सामने आ रही हैं। बर्फबारी वाले इलाकों में भी डेंगू चिकनगुनिया का वायरस पहुंच गया। मच्छरों के जीन बदल गए। लोगों के खानपान भी बदल गए। प्रदूषण एक बड़ी समस्या बनकर उभरा है। ऐसे में बीमारियों से अलर्ट रहने की जरूरत है। यह सलाह देश-दुनिया से आए वैज्ञानिकों ने दी। वैज्ञानिकों ने विभिन्न बीमारियों पर होने वाले शोध अनुसंधान वर विस्तृत चर्चा की है। उन्होंने कहा कि हर पांच वर्षों में तस्वीर बदल रही है। नए चीजें शामिल हो रही हैं। एक दवा बाजार में आती है दूसरी फेल होती है। एक गम्भीर स्थिति बनती जा रही है।
पशु-पक्षियों व जलीय जीवों से खतरा
प्रदूषण की वजह से बड़ी संख्या में संक्रामक बीमारियां पशु-पक्षियों, जलीय जीवन से इंसान में पहुंच रही हैं। डॉ. सैयद शैलवी ने कहा कि लिवर और किडनी को सुरक्षित रखने के लिए खान-पान को सुधारना बेहद जरूरी है क्योंकि इस बीमारी के इलाज के लिए दवाओं की संख्या कम है। वर्तमान समय में लोगों की बिगड़ती दिनचर्चा तरह-तरह की बीमारियों को दावत दे रही है। कहीं न कहीं इसके दोषी हम भी है। इस तरफ लोगों को पहले से ज्यादा जागरूक होना पड़ेगा।
प्रदूषण की वजह से बड़ी संख्या में संक्रामक बीमारियां पशु-पक्षियों, जलीय जीवन से इंसान में पहुंच रही हैं। डॉ. सैयद शैलवी ने कहा कि लिवर और किडनी को सुरक्षित रखने के लिए खान-पान को सुधारना बेहद जरूरी है क्योंकि इस बीमारी के इलाज के लिए दवाओं की संख्या कम है। वर्तमान समय में लोगों की बिगड़ती दिनचर्चा तरह-तरह की बीमारियों को दावत दे रही है। कहीं न कहीं इसके दोषी हम भी है। इस तरफ लोगों को पहले से ज्यादा जागरूक होना पड़ेगा।