भारी संख्या में मरी मिलीं मछलियां
आए दिन घाटों के किनारे बड़ी संख्या में मछलियां मरी मिलती है। इसका कारण जानने के लिए सीएसजेएमयू के इनवायरमेंटल साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. धर्म सिंह ने छात्रों के साथ मिलकर एक शोध किया। उन्होंने प्री-मानसून सीजन में कानपुर के परमट घाट के किनारे लगातार 12 घंटे पानी का सैम्पल लेकर जांच की। इसकी रिपोर्ट चौंकाने वाली आई। जिसमें पता चला कि गंगा में बढ़ते प्रदूषण का सीधा असर जलीय जीवों पर पड़ रहा है। खास तौर पर मछलियां इससे सबसे अधिक प्रभावित हो रही हैं।
आए दिन घाटों के किनारे बड़ी संख्या में मछलियां मरी मिलती है। इसका कारण जानने के लिए सीएसजेएमयू के इनवायरमेंटल साइंस विभाग के प्रोफेसर डॉ. धर्म सिंह ने छात्रों के साथ मिलकर एक शोध किया। उन्होंने प्री-मानसून सीजन में कानपुर के परमट घाट के किनारे लगातार 12 घंटे पानी का सैम्पल लेकर जांच की। इसकी रिपोर्ट चौंकाने वाली आई। जिसमें पता चला कि गंगा में बढ़ते प्रदूषण का सीधा असर जलीय जीवों पर पड़ रहा है। खास तौर पर मछलियां इससे सबसे अधिक प्रभावित हो रही हैं।
पीएच में बदलाव जलीय जीवों के लिए खतरा
शोध में सामने आया कि हर घंटे पीएच का स्तर तेजी से बदल रहा है। यह जलीय जीवों के लिए हानिकारक होता है। टीम ने गंगा में प्रदूषण के अन्य कारकों की भी जांच की। इसके बाद पीएच में बदलाव का मछलियों पर असर को लेकर अध्ययन किया। डॉ. धर्म सिंह के मुताबिक मछलियां सामान्य रूप से 7.5 से 8.2 पीएच की रेंज वाले पानी में रहती हैं। इससे अधिक स्तर उनके लिए खतरनाक होने लगता है। जब पीएच 8.5 से अधिक हो और इसमें लगातार बदलाव भी होता रहे तो उनमें तनाव (स्ट्रेस) उत्पन्न होने लगता है। ऐसे पानी में अधिक दिन तक रहने पर मछलियों की मौत हो जाती है।
शोध में सामने आया कि हर घंटे पीएच का स्तर तेजी से बदल रहा है। यह जलीय जीवों के लिए हानिकारक होता है। टीम ने गंगा में प्रदूषण के अन्य कारकों की भी जांच की। इसके बाद पीएच में बदलाव का मछलियों पर असर को लेकर अध्ययन किया। डॉ. धर्म सिंह के मुताबिक मछलियां सामान्य रूप से 7.5 से 8.2 पीएच की रेंज वाले पानी में रहती हैं। इससे अधिक स्तर उनके लिए खतरनाक होने लगता है। जब पीएच 8.5 से अधिक हो और इसमें लगातार बदलाव भी होता रहे तो उनमें तनाव (स्ट्रेस) उत्पन्न होने लगता है। ऐसे पानी में अधिक दिन तक रहने पर मछलियों की मौत हो जाती है।
रासायनिक क्रिया भी खतरनाक
प्रदूषण बढऩे के कारण गंगा में रसायन भी बढ़ रहे हैं। गंगाजल में ईसी, हार्डनेस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, क्लोराइड, डीओ (डिजॉल्वड ऑक्सीजन), साल्ट आदि भी मानक से अधिक हैं। इसके साथ ही पीएच का स्तर मानक से कहीं अधिक है। सीएसजेएमयू की टीम को परमट घाट पर तो अधिकतम पीएच 9.4 तक मिला है, जबकि यह 8.2 तक ही रहना चाहिए। इसका दुष्प्रभाव यह है कि इससे मछलियों की प्रजनन क्षमता भी घट रही है। यानी इनकी संख्या में भी कमी आ रही है।
प्रदूषण बढऩे के कारण गंगा में रसायन भी बढ़ रहे हैं। गंगाजल में ईसी, हार्डनेस, कैल्शियम, मैग्नीशियम, क्लोराइड, डीओ (डिजॉल्वड ऑक्सीजन), साल्ट आदि भी मानक से अधिक हैं। इसके साथ ही पीएच का स्तर मानक से कहीं अधिक है। सीएसजेएमयू की टीम को परमट घाट पर तो अधिकतम पीएच 9.4 तक मिला है, जबकि यह 8.2 तक ही रहना चाहिए। इसका दुष्प्रभाव यह है कि इससे मछलियों की प्रजनन क्षमता भी घट रही है। यानी इनकी संख्या में भी कमी आ रही है।