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Good News: दसवीं के छात्र ने बनाया ब्लाइंड ग्लव्स, ऐसा दस्ताना जो दृष्टिहीनों को दिखाएगा सही रास्ता, करेगा अलर्ट

locationकानपुरPublished: Oct 23, 2021 05:09:57 pm

Submitted by:

Arvind Kumar Verma

इस ग्लव्स से ऐसे दिव्यांग को काफी हद तक राहत मिलेगी। बताया कि अब तक 20 नेत्र दिव्यांगों पर इसका सफल परीक्षण हो चुका है।

दसवीं के छात्र ने बनाया ब्लाइंड ग्लव्स, ऐसा दस्ताना जो दृष्टिहीनों को दिखाएगा सही रास्ता, करेगा अलर्ट

दसवीं के छात्र ने बनाया ब्लाइंड ग्लव्स, ऐसा दस्ताना जो दृष्टिहीनों को दिखाएगा सही रास्ता, करेगा अलर्ट

पत्रिका न्यूज नेटवर्क
कानपुर. अब ब्लाइंड ग्लब्स (Blind Gloves For Blind Person) दिव्यांगों के लिए आंख की तरह करेंगे काम। जी हां कानपुर के जयनारायण विद्या मंदिर इंटर कॉलेज के दसवीं के छात्र निर्भय कटियार (Nirbhay Katiyar) ने ब्लाइंड ग्लब्स बनाने में सफलता हासिल की है। इसके उपयोग से अब दिव्यांग किसी रास्ते पर जाते समय आगे आने वाली बाधा से नहीं टकराएंगे। ऐसे समय पर हाथ में पहने ये ब्लाइंड ग्लव्स उन्हें सक्रिय कर देंगे, जिससे वे रास्ते की बाधा से बच सकेंगे। इस ग्लव्स से ऐसे दिव्यांग को काफी हद तक राहत मिलेगी। बताया कि अब तक 20 नेत्र दिव्यांगों पर इसका सफल परीक्षण हो चुका है। स्कूल इस ग्लव्स को केंद्र सरकार की इंस्पायर अवार्ड (Inspire Award) कैटेगरी के लिए भेज रहा है।
इस तरह दिव्यांगो को ग्लव्स करेगा अलर्ट

निर्भय ने बताया कि ब्लाइंड ग्लव्स में एक अल्ट्रासोनिक सेंसर और नौ वोल्ट की बैट्री से जुड़ी वाइब्रेट मोटर भी लगाई गई है। इसे पहनकर चलते समय दृष्टिहीन सख्स के सामने या अगल-बगल 90 सेमी.की दूरी पर कोई बाधा कुर्सी, मेज, पत्थर या खड़ा वाहन कुछ भी आएगा तो ग्लव्स वाइब्रेट होने लगेंगे। इससे उन्हें संदेश मिल जाएगा कि आगे कुछ गड़बड़ है। जिससे वह खुद को संभाल सकेंगे। निर्भय ने बताया कि इन ग्लव्स में की गई कोडिंग से यह जल्दी खराब नहीं होंगे। अगर कोई खराबी आती है तो यह किसी भी बिजली उपकरण की दुकान पर ठीक हो सकेगा।
ग्लव्स को बनाने में लगा एक महीने का समय

स्कूल के भौतिकी के शिक्षक व टिंकर इंडिया लैब के संस्थापक कौस्तुभ ओमर ने बताया कि इस ग्लव्स तैयार करने में निर्भय को एक महीने का समय लग गया। ग्लव्स की लागत करीब 500 रुपये तक आई है। इसका प्रोटोटाइप स्टेम रोबो टेक्नोलाजी नोएडा को भेजा गया। उसने भी उसका परीक्षण किया है। अब इसे पेटेंट कराने की तैयारी है। इसके बाद बाजार में लाने के लिए कंपनियों से संपर्क किया जाएगा। बड़ी संख्या में उत्पादन पर कीमत भी कम होगी।

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