दरअसल, कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मरीजों को रेमडेसिविर इंजेक्शन की जरूरत थी। मरीजों को बाजार में आसानी से रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं मिल पा रहे थे। खुलासा हुआ कि शासन की तरफ से हैलट को मरीजों के लिए जो रेमडेसिविर इंजेक्शन भेजे गए थे उनमें बड़ा फर्जीवाड़ा हुआ है। कुछ दिन पहले मृतक लोगों के इलाज के नाम पर स्टाफ ने इंजेक्शन जारी करवा लिए। 30 अप्रैल को क्राइम ब्रांच टीम ने हैलट के दो कर्मचारियों को रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी में पकड़ा था। वॉर्ड बॉय को इस आरोप में गिरफ्तार किया गया था कि उसने इंजेक्शन को बाजार में मोटे दाम में बेचा है। डॉक्टरों के हस्ताक्षर वाले पर्चे पर नर्सिंग स्टाफ और वॉर्ड बॉय स्टोर से कोरोना से मृत लोगों के नाम पर रेमडेसिविर इंजेक्शन ले आए।
मामला उजागर होने के बाद जब जांच की गई तो पता लगा कि न्यूरो साइंसेज कोविड अस्पताल के स्टॉक में 730 शीशियां हैं। कोविड अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कुछ रोगियों को अभी रेमडेसिविर दी जा रही है। शीशीयां मिलने के बाद मिलान किया जाना है कि इन्हें किन मरीजों को देनी थी। इसके अलावा फार्मेसी विभाग के स्टाक से अभी तक अस्पताल को 2100 रेमडेसिविर की शीशियां दी गई हैं।
सोमवार से जांच शुरू जिन रोगियों की मौत के बाद रेमडेसिविर की मांग की गई, उन अभिलेखों को भी जांच के लिए निकलवाया गया है। फर्जीवाड़ा कितना बड़ा है इसका पता लगाया जा रहा है। अधिकारिक तौर पर मामले की रिपोर्ट बनाने के लिए प्रमुख चिकित्सा अधीक्षक की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर दी गई है। जांच कमेटी सोमवार से प्रक्रिया के तहत विधिवत जांच शुरू करेगी। इस फर्जीवाड़े का पता लगाने के लिए प्राचार्य ने हर उस कोविड रोगी की बीएचटी (बेड हेड टिकट) निकलवाने का आदेश किया है, जिसे रेमडेसिविर इंजेक्शन लगा था। रोगी को जिस दिन रेमडेसिविर लगा, उस दिन किस डॉक्टर ने मांगपत्र दिया था, इसका भी पता लगाया जाएगा। अगर मांगपत्र किसी और ने लिखा और ड्यूटी किसी और डॉक्टर की थी तो मामला पकड़ में आ जाएगा।
तीन और शहरों पर रडार प्रदेश के तीन अन्य शहर इंजेक्शन में घपलेबाजी को लेकर निशाने पर हैं। ताजनगरी से प्रदेश के वाराणसी, लखनऊ और कानपुर में नकली इंजेक्शन बेचने का आरोप है। कर्नाटक की फर्म से आगरा के राजू ड्रग हाउस ने नकली डेका-ड्यूराबोलिन-50 एमजी इंजेक्शन की 2600 वायल खरीदी थीं। इन्हें एक फर्म को बेचा, लेकिन उसने पहचान लिए। लिहाजा इंजेक्शन वापस कर दिए गए। आरोप है कि इसके बाद राजू ड्रग हाउस ने इन्हें दोबारा हेमा मेडिकल स्टोर को बेच दिया। हेमा मेडिकल ने इन्हें कानपुर, लखनऊ और वाराणसी में बेच डाला। 50 इंजेक्शन यहीं रह गए जबकि शेष बचे इंजेक्शन को तीन शहरों में बेच दिया गया। इन्हें मरीजों को भी दिए जाने की आशंका है। इंजेक्शन में घपलेबाजी को लेकर 10 से अधिक बुकी रडार पर हैं।
कोविड मरीजों पर भी किया प्रयोग कोविड मरीजों के इलाज में रेमडेसिविर के साथ कई इंजेक्शनों का इस्तेमाल किया गया। इसमें टोसिलोजुमाब और डेक्सा मीथासोन (डेक्सा) का इस्तेमाल किया गया। डेक्सा सस्ता विकल्प था। इनकी अनुपलब्धता पर डॉक्टरों ने दूसरे स्टेरायड का प्रयोग किया है। इसमें डेका-ड्यूराबोलिन-50 इंजेक्शन भी शामिल है। मामले में बड़ी जांच की जाएगी।
औषधि निरीक्षक नरेश मोहन दीपक के अनुसार, तीनों शहरों से माल बरामद करने की कोशिश की जा रही है। वहां विभाग के अधिकारियों से सहयोग की अपेक्षा है। कुछ लोगों को चिह्नित किया गया है। उनसे पूछताछ की जाएगी।