लोन देने के लिए फंड बेस लिमिट वह होती है जिसके लिए बैंक लोन लेने वाले का खाता खोलकर उतना धन डाल देता है। कारोबारी कभी भी उस धन को निकाल कर इस्तेमाल कर सकता है। जबकि नॉन फंड बेस लिमिट में कारोबारी सीधे नकदी निकाल कर इस्तेमाल नहीं कर सकता लेकिन बैंक जो लिमिट स्वीकृत करता है उतने की लेटर ऑफ क्रेडिट वह कभी भी भुगतान फंसने पर दूसरी पार्टी के लिए जारी करा सकता है।
नॉन फंड बेस लिमिट स्वीकृत करने में सबका निर्णय अलग-अलग था। ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स, विजया बैंक, सिंडीकेट बैंक, आंध्रा बैंक व यूनियन बैंक ने एक समान पांच करोड़ रुपये की फंड बेस लिमिट स्वीकृत की लेकिन ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स ने 230 करोड़, विजया बैंक ने 105 करोड़, सिंडीकेट बैंक ने 125 करोड़, आंध्रा बैंक ने 55 करोड़ व यूनियन बैंक ने 210 करोड़ रुपये की नॉन फंड बेस लिमिट स्वीकृत की थी।
बैंक ऑफ बड़ौदा और केनरा बैंक ने फ्रास्ट इंटरनेशनल को हालांकि फंड बेस लिमिट नहीं जारी की। सीबीआइ को दी गई सूची में दोनों बैंक के नाम के आगे शून्य दर्ज है, लेकिन इन दोनों बैंकों ने नॉन फंड बेस यानि लेटर ऑफ क्रेडिट लिमिट में दोनों हाथ खोल दिए। बैंक ऑफ बड़ौदा ने 554.95 करोड़ तो केनरा बैंक ने 155.00 करोड़ रुपये की नॉन फंड बेस लिमिट स्वीकृत की थी। अब इसकी वसूली हो पाना मुश्किल है।
बैंक ऑफ इंडिया के नेतृत्व में १४ बैंकों ने फ्रास्ट इंटरनेशनल को लोन जारी किया। इसमें फेड बेस और क्रेडिट लिमिट में बड़ा अंतर था। खुद बैंक ऑफ इंडिया ने सबसे ज्यादा ३०.७५ करोड़ का फंड बेस तो ७२६ करोड़ का नॉनफंड बेस लिमिट जारी किया। इसी तरह इंडियन ओवरसीज बैंक ने फंड बेस में 20 करोड़ और नॉनफंड बेस में 345 करोड़, बैंक ऑफ बड़ौदा ने केवल नॉन फंड बेस में 554.95 करोड़, सेंट्रल बैंक ने 8 करोड़ फंड और 375 करोड़ नॉन फंड स्वीकृत किया। पीएनबी ने 15.25 करोड़ और 285 करोड़, इलाहाबाद बैंक ने 9 करोड़ और 290 करोड़, यूको बैंक ने 12 करोड़ और 250 करोड़, यूनाइटेड बैंक ने 11 और 225 करोड़ की मंजूरी दी। जबकि दूसरी ओर ओबीसी ने 230 करोड़, विजया बैंक ने 105.00, सिंडीकेट बैंक ने 125.00, आंध्रा बैंक ने 55.00, और यूनियन बैंक ने 210.00 करोड़ का नॉन फंड बेस लोन मंजूर किया, हालांकि इनका फंड बेस केवल ५ करोड़ था।