scriptकानपुर के घंटाघर में पहली बार मनाया गया गणेश महोत्सव, बाल गंगाधर तिलक ने रखी नींव | Ganesh Mahotsav first time celebrate in Ghantaghar kanpur by Bal Ganga Dhar Tilak Hindi News | Patrika News

कानपुर के घंटाघर में पहली बार मनाया गया गणेश महोत्सव, बाल गंगाधर तिलक ने रखी नींव

locationकानपुरPublished: Aug 28, 2017 09:45:00 am

Submitted by:

Hariom Dwivedi

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश महोत्सव के जरिए लोगों में अंग्रजों के खिलाफ विद्रोह की ज्वाला भरी व छुआछूत पर प्रहार किया।

Ganesh Mahotsav celebration
कानपुर. अंग्रेजों के खिलाफ बिठूर से 1857 की शुरू हुई गदर पूरे देश में फैल गई। गोरों को देश से खदेड़ने के लिए क्रांतिकारी लड़ रहे थे, तो फिरंगी भी हुकूमत बचाने के लिए नए-नए हथकंडे आजमा रहे थे। इसी दौरान उन्होंने जाति, मजहब के नाम पर लोगों को बांटना चाहा, लेकिन बालगंगाधर तिलक ने उनके मंसूबों में पानी फेर दिया। सबसे पहले 1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक तौर पर गणेशोत्सव की शुरुआत की। इसके बाद कानपुर में लोगों को जोड़ने के लिए घंटाघर चौराहे पर 1908 में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करवाई और महोत्सव मनाने का ऐलान कर दिया। मंदिर के पुजारी खेमचंद्र गुप्ता कहते हैं तिलक जी ने यहां भूमि पूजन किया और गणपति के लिए एक पांडाल लगवाया। पांडाल में सैकड़ों की संख्या में लोग आते और जिन्हें अंग्रेजों के साथ ही छुआछूत के खिलाफ लड़ने के लिए जागरूक किया गया।

गणेश महोत्सव के जरिए आंदोलन को दी धार
तिलक उस समय एक युवा क्रांतिकारी और गर्म दल के नेता के रूप में जाने जाते थे। वे एक बहुत ही स्पष्ट वक्ता और प्रभावी ढंग से भाषण देने में माहिर थे। तिलक ‘पूर्ण स्वराज’ की मांग को लेकर संघर्ष कर रहे थे और वे अपनी बात को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाना चाहते थे। इसके लिए उन्हें एक ऐसा सार्वजानिक मंच चाहिए था, जहां से उनके विचार अधिकांश लोगों तक पहुंच सके। तिलक ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक महोत्सव का रूप देते समय उसे महज धार्मिक कर्मकांड तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि आजादी की लड़ाई, छुआछूत दूर करने, समाज को संगठित करने के साथ ही उसे एक आंदोलन का स्वरूप दिया, जिसका ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को हिलाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा। अंग्रेजों की हुकूमत को उखाड़ फेंकने और देश को आज़ादी दिलाने के मकसद से शुरू किए गए गणेशोत्सव ने देखते ही देखते पूरे देश में एक नया आंदोलन छेड़ दिया। अंग्रेजों की पूरी हुकूमत भी इस गणेशोत्सव से घबराने लगी।
1908 में पहली बार मनाया गया गणेश महोत्सव
मंदिर की देखभाल करने वाले खेमचन्द्र गुप्त ने कहा कि मेरे बाबा के कुछ महाराष्ट्र के व्यापारिक दोस्त थे जो ज्यादातर व्यापार के सिलसिले में गणेश उत्सव के समय कानपुर आया करते थे। इन लोगों की भगवान गणेश में अटूट आस्था थी और वो भी उस समय गणेश महोत्सव के समय घर में ही भगवान गणेश के प्रतिमा की स्थापना कर पूजन करते थे और आखिरी दिन बड़े ही धूमधाम से विसर्जन करते थे। उन दिनों पूरे कानपुर में यहां अकेले गणेश उत्सव मनाया जाता था। इनकी भक्ति को देख इनके महाराष्ट्र के दोस्तों ने उस खाली प्लाट में भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित कर वहां मंदिर बनवाने का सुझाव दिया था। बाबा रामचरण के पास एक 90 स्क्वॉयर फीट का प्लाट घर के बगल में खाली पड़ा था। जहां इन्होंने मंदिर निर्माण करवाने के लिए 1908 में नींव रखी थी और भूमिपूजन के लिए बालगंगाधर तिलक को बुलाया। वो कानपुर आए और पांडाल में सैकड़ों लोगों को एकत्र कर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई को धार दी।

ऊपरी खंड पर विस्थापित करवानी पड़ी मूर्ति
जब अंग्रेज सैनिकां को यहां मंदिर निर्माण और गणेश जी की मूर्ति के स्थापना की जानकारी मिली तो उन्होंने मंदिर निर्माण पर रोक लगा दी थी। अंग्रेज अधिकारियों ने इसके पीछे तर्क दिया कि पास में मस्जिद होने के कारण यहां मंदिर नहीं बनवाया जा सकता है। क्योंकि कानून के मुताबिक़, किसी भी मस्जिद से 100 मीटर के दायरे में किसी भी मंदिर का निर्माण नहीं किया जा सकता। अंग्रेज अधिकारियों के मना करने के बाद रामचंद्र ने कानपुर में मौजूद अंग्रेज शासक से मुलाक़ात की मगर बात नहीं बनी। इसकी जानकारी बाल गंगाधर तिलक को हुई तब उन्होंने दिल्ली में अंग्रेज के बड़े अधिकारी से मिले और मंदिर स्थापना के साथ मूर्ति स्थापना की बात कही। इस पर दिल्ली से 4 अंग्रेज अधिकारी कानपुर आए और स्थिति का जायजा लिया था। अंग्रेज अधिकारी ने वहां गणेश प्रतिमा की स्थापना करने की अनुमति तो दी मगर इस प्लॉट पर मंदिर निर्माण की जगह दो मंजिला घर बनावाने की बात कही। ऊपरी खंड पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करने को कहा।
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