शोध के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि लॉकडाउन के दौरान औद्योगिक इकाइयों से उत्सर्जित किए जाने वाले अपशिष्ट जल में कमी के कारण ही ऐसा हो सका। इसके विपरीत खेती और घरों से प्रवाहित होने वाले अपशिष्ट जल में मौजूद रहने वाले नाइट्रेट और फॉस्फेट जैसे प्रदूषक तत्वों की मात्रा गंगा के पानी में कमोबेश पहले जैसी ही पाई गई।
अध्ययन भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) तथा अमरीकी विदेश विभाग के एक द्विपक्षीय संगठन भारत अमरीका विज्ञान एंव प्रौद्योगिकी फोरम (आईयूएसएसटीएफ) के सहयोग से किया गया है। अध्ययन रिपोर्ट “एनवायरमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी लेटर्स” जर्नल द्वारा प्रकाशित की गई है। इसमें भारी धातु जैसे प्रदूषक तत्वों के साथ गंगा के पानी में होने वाले रासायनिक परिवर्तनों को दिखाया गया है। पिछले साल सेंटर फॉर गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट एंड स्टडीज (सी-गंगा) की तरफ से हुए शोध में दावा हुआ था कि लॉकडाउन में गंगा व सहायक नदियों का प्रदूषण कम हुआ है।
नमामि गंगे प्रोजेक्ट को मिलेगा शोध का फायदा
नेशनल बॉटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआइ) के विज्ञानियों की टीम का 2019 में अंतर्राष्ट्रीय जर्नल एनवायरमेंटल इंटरनेशनल में शोध प्रकाशित हुआ था कि भारी धातुओं से गंगा में पाई जाने वाली मछलियां विषाक्त हो रही हैं। शोध का फायदा निश्चित रूप से महत्त्वाकांक्षी नमामि गंगे परियोजना का होगा जिस पर हजारों करोड़ रुपए खर्च होने हैं। गंगा का प्रदूषण घटता है इसका फायदा देश के पांच बड़े राज्यों उत्तराखंड, झारखंड, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार का होगा। देश की बड़ी आबादी इन राज्यों में ही बसती है।