छत्तीसगढ़ से भाग कर कानपुर में बसे आदिवासी छत्तीसगढ़ राज्य के बिलासपुर और दांतेवाड़ा जिले से सैकड़ों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग कानपुर के गुजैनी में शरण लिए हैं। पुरूष और महिलाएं ईंट-भट्टों में काम कर रहे हैं तो उनके छोअे-छोटे बच्चे रस्सी और बांस का डंडा लेकर शहर के गली-मोहल्लों में करतब दिखाने को निकल जाते हैं। सुबह से लेकर शाम तक वो लोगों को करतब के जरिए मनोरंजन करते हैं और जो पैसा मिलता है उससे अपना पेट भरते हैं। रविवार को कैबिनेट मंत्री सत्यदेव पचौरी के आवास से चंद कदम की दूरी पर बिलासपुर की रिंकी (8)बीस फिट ऊंची रस्सी में चढ़कर लोगों को करतब दिखा रही थी तो बड़ी बहन कन्नो (10) लोगों के पास जाकर पैसे मांग रही थी। कन्नो ने बताया कि वो बिलासपुर से चार माह पहले अपने चाचा के साथ कानपुर आई है और दोनों बहने इसी के जरिए अपना पेट भर रही हैं।
पढ़- लिखकर करना चाहते हैं देश की सेवा कन्नो ने बताया कि एक हादसे में उनके पिता की मौत हो गई तो घर में खाने के लाले पड़ गए। मां मजदूरी कर जो पैसे लाती उससे एक वक्त का भोजन बन बाता। इसी के चलते हम अपनी चाचा के साथ कानपुर आ गए। चाचा ने हमें करतब करने की ट्रेनिंग दी। कन्नो ने कहा कि हम भी पढ़ना चाहते हैं लेकिन आर्थिक स्थित खराब होने के चलते सपनों को दफन कर सिर पर कफन बांधकर हररोज लोगों का इसी तरह से मनोरंजन करते हैं। कन्नो का कहना है कि कभी-कभी पुलिसवाले हमें करतब दिखाने से रोकते हैं, पर जब हम उन्हें अपनी समस्या बताते हैं तो वो दूसरी जगह जाकर बांस-बल्ली गाड़ने को कहकर भगा देते हैं।
निकलते हैं सिर पर कफन बांधकर मासूम रिंकी ने तोतली आवाज में कहा कि हम सिर पर कफन बांधकर झोपड़ी से निकलते हैं। शुरूआत में डर लगता था, लेकिन अब रस्सी में पैर रम गए हैं। कन्नो ने बताया कि हमारे रह रही एक लड़की घाटमपुर के पास कठेरूआ गांव में करतब दिखाते वक्त रस्सी से गिर गई थी, जिसका एक पैर टूट गया था। कन्नो अपनी छोटी बहन को साइकिल पर बैठाकर दिनभर शहर की सड़कों पर रस्सी का खेल दिखाती है। जब छोटी बहन रस्सी पर करतब दिखा रही होती है तो लाउडस्पीकर से गम भरे गाने बज रहे होते हैं। कन्नो कहती है कि किसी भी सरकार ने हम जैसे बेटियों के लिए कुछ नहीं किया। कन्नो का सपना है कि छोटी बहन को एक अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाए, और पढ़ाए।
मास्टर साहब ने स्कूल से भगाया कन्नो बताती हैं कि गुजैनी के पास एक सरकारी स्कूल में मैं अपनी छोटी बहन को लेकर गई, लेकिन मास्टर साहब ने एडमीशन देने से मना कर भगा दिया। कन्नो ने बताया कि दिनभर में हम दोनों बहने सौ-दो सौ रूपए कमा लेती हैं। छोटी पढ़े इसके लिए कमाई का कुछ पैसा बचाकर गोल्लक में रख रही हूं। वहीं नाबालिक का करतब देख रहे लोगों से इस मेक-इन-इंडिया के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि आजाद भारत की असली तस्वीर यही है। मेडिकल स्टोर संचालक रवेंद्र सिंह ने कहा कि आजादी को 70 साल हो गए पर लोग बुलेट ट्रेन की बात करते हैं, पर हकीकत में कुछ नहीं बदला। हां जो लोग अमीर थे वो और अमीर हो गए, किसान, मजदूर जहां था, वो आज भी वहीं खड़ा है।