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रमजान में रोजा रखने व तरावीह पढ़ने के साथ जकात से मिलती है बड़ी सुन्नत- मौलाना कुतुबुद्दीन

इन दोनों में से किसी एक की कीमत का मालिक हो तो जकात फर्ज है।

कानपुरMay 23, 2020 / 10:57 pm

Arvind Kumar Verma

रमजान में रोजा रखने व तरावीह पढ़ने के साथ जकात देने से मिलती है बड़ी सुन्नत- मौलाना कुतुबुद्दीन

रमजान में रोजा रखने व तरावीह पढ़ने के साथ जकात देने से मिलती है बड़ी सुन्नत- मौलाना कुतुबुद्दीन

कानपुर देहात-रमजान शरीफ के मुकद्दस महीने में जहां हर मुसलमान पर रोजा रखना फर्ज है। कानपुर देहात के रसूलाबाद के मौलाना कुतुबुद्दीन ने समुदाय के लोगों को बताया कि तरावीह पढ़ना सुन्नत है और रमजान के आखिरी अशरे में मस्जिद में इतकाफ की नियत से ठहरना सुन्नत सुन्नते किफाया है। वहीं फितरा देना वाजिब है। एक आदमी की तरफ से 2 किलो 45 ग्राम गेहूं या उसकी कीमत तकरीबन 40 रुपये बनती है, वह देनी चाहिए और माल पर ज़कात देना फर्ज है। ज़कात उस शख्स पर फर्ज है, जिसके पास साढ़े 7 तोला सोना या साढ़े 52 तोला चांदी है। इन दोनों में से किसी एक की कीमत का मालिक हो तो जकात फर्ज है।
उन्होंने कहा कि अब किसी के पास न तो साढ़े 7 तोला सोना है और न ही साढे 52 तोला चांदी मगर थोड़ा सोना है और थोड़ी चांदी और दोनों की कीमत चांदी की कीमत तक पहुंच रही है तो उस पर ज़कात फर्ज है। अब साढ़े 52 तोला चांदी तकरीबन 600 ग्राम बनती है। जिसकी आज के हालात के हिसाब से कीमत करीब 25000 रुपए है। मालूम हुआ जो शख्स 25000 रुपए का मालिक हो, उस पर ज़कात फर्ज है। हमारे नबी हुजूर हजरत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो तआला अलेही वसल्लम ने फरमाया कि जिस माल की ज़कात निकाल दी जाती है। वह माल पाक हो जाता है और अल्लाह की हिफाजत में हो जाता है।
अगर सभी मुसलमान भाई सही तौर पर अपने माल की जकात निकाल दे तो कोई गरीब, मिस्कीन, यतीम, वेबा व ज़रूरतमंद परेशान नहीं होगा। इसलिए ज़कात को गरीबों, यतीमों, वेबाओं, जरूरतमंदों और मदरसे को दें। साथी मौलाना कुतुबुद्दीन ने मुस्लिम समुदाय के लोगों से अपील करते हुए कहा कि ईद के त्यौहार को बड़ी ही सादगी से मनाएं घरों पर ही शुकराने की नमाज़ पढ़े। नमाज़ के दौरान दुनिया में चल रही खतरनाक वबा कोरोना के खात्मे के लिए अल्लाह से दुआ भी करें।

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