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कानपुर

कानपुर भी बन सकता है गोरखपुर, एक अौर हादसे को दे रहा दावत

इतने बड़े जिले के सरकारी अस्पतालों में सुविधाओं के अभाव में भटक रहे मरीज
 
 

कानपुरAug 14, 2017 / 03:01 pm

Ruchi Sharma

inox

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कानपुर देहात. गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में अॉक्सीजन न होने से कई मासूम बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य महकमे की आंखे खुली है। तत्काल शासन से अस्पतालों में अॉक्सीजन दवाओं व डॉक्टरों की उपलब्धता के सख्त निर्देश दिये गये। जिसके बाद जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारियों ने अस्पतालों में चाक चौबंद व्यवस्था के उपाए शुरू किये। जबकि हालात कुछ यूं रहे करीब 20 लाख आबादी वाले इस जिले के अस्पतालों में जीवन रक्षक उपकरणों के साथ ही डॉक्टरों का टोटा से भयावह स्थिति बनी हुयी है। गम्भीर रोगियों के लिये सरकारी अस्पताल सिर्फ एक रेफर सेंटर बना हुआ है।
अधिकांश अस्पतालों में अॉक्सीजन सिलेंडर मुंह चिढ़ा रहे है। जबकि हालात इस समय ये है कि जापानी इंसेफ्लाइटिस बीमारी से समूचा जिला प्रभावित है। संसाधनों के अभाव में कभी भी बड़ी घटना हो सकती है। जिला अस्पताल में 27 सिलेंडरों में अॉक्सीजन के 22 सिलेंडर भरे मिले, शिवली मे इकलौता सिलेंडर वो भी दो माह से खाली होने की बात डॉक्टरों ने बताई, रसूलाबाद सीएचसी मे 5 में से 3 खाली मिले। वही झींझक में 5 में 4 सिलेंडर खाली होने की बात सामने आई।
ये है सरकारी अस्पतालों के हाल

अस्पताल संख्या बेड

जिला पुरुष अस्पताल- 1 70
जिला महिला अस्पताल 1 30
सीएचसी 11 330
पीएचसी 06 24
न्यू पीचसी- 26 104
महिला स्वास्थ्य केंद्र- 1 4

डॉक्टरों के अभाव में ये सेवाएं बाधित
जिला पुरुष अस्पताल में 24 के सापेक्ष महज 16 डॉक्टर व जिला महिला अस्पताल में 12 के सापेक्ष 10 डॉक्टरों की तैनाती है। जिले में मानक के अनुरूप 93 के सापेक्ष सिर्फ 16 स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की तैनाती है। जिला अस्पताल में जुलाई माह में रेडियोलाजिस्ट का ट्रांस्फर होने के बाद से पद रिक्त होने की वजह से एक्सरे व अल्ट्रासाउंड सेवा बाधित है। अधिकांश सवास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों की कमी है। जिले के 11 सीएचसी में 66 विशेषज्ञों के सापेक्ष सिर्फ एक सर्जन, दो नेत्र सर्जन, एक डेंटल सर्जन और तीन गायंकोलाजिस्ट ही तैनात है। जबकि मलेरिया अधिकारी व सहायक मलेरिया
अधिकारी का पद अभी भी रिक्त है।
सीएमओ कानपुर देहात डॉ. सुरेंद्र कुमार रावत ने बताया कि ब्लाक स्तरीय सभी
स्वास्थ्य केंद्रों पर 2 से 5 तक अॉक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध है, जिनको भराने की जिम्मेदारी केंद्र प्रभारियों को है। मस्तिष्क ज्वर पर नियंत्रण के लिये चलाए गये अभियान में 15 साल तक के 95 प्रतिशत से अधिक बच्चों को जेई के टीके लगाए गये थे। बारिश के बाद हुये जलभराव के मद्देनजर बीमारी की सम्भावना को देखते हुये सभी स्वास्थ्य केंद्रों में पर्याप्त दवाओं की उपलब्धता है।
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