बदल दी तस्वीर
कभी फूलन तो कभी लालराम के बूटों की आहट से बीहड़ के सैकड़ों गांव सहम जाया करते थे। आजादी के बाद इन गांव में विकास दूर-दूर तक नजर नहीं आता था। जलौन जिले के अकबरपुर इटौरा निवासी एक किसान के बेटे अमित द्विवेदी ने शिक्षा-दिक्षा लेने के बाद नौकरी ज्वाइन कर ली। छुट्टी पर गांव आए तो किसानों के साथ चौपाल लगाई और समस्याएं सुनीं। ग्रामप्रधान से गांव का विकास कराए जाने का अनुरोध किया, लेकिन सत्ताधारी दल से जुड़े होने के कारएा उसने अमित द्विवेदी को फटकार लगाई। अमित द्विवेदी ने नौकरी छोड़ गांव को देश का सबसे बेहतरीन सुविधाओं से लैस विलेज का प्रण लिया। चुनाव में उतरे तो जनता ने उन्हें इकतरफा जीत दिया ली। बदले में अमित द्विवेदी ने गांव की नक्शा ही बदल दिया। पक्की सड़कें, हर घर में टॉयलेट, बाजार, हाईटैक सुविधा, हर घर में टीवी और पूरा गांव शिक्षित।
तालाब को देखनें के लिए आते हैं लोग
अमित द्विवेदी बताते हैं कि हमारे गांव को गुरु रोपण की तपोस्थली होने का गौरव इसे प्राप्त है। रोपण गुरु मंदिर के सामने ही वृहस्पति कुंड नाम से एक प्राचीन और वृहद तालाब स्थित है। तालाब का क्षेत्रफल करीब 17 एकड़ का है। दशकों से यह तालाब इस हद तक दुर्दशाग्रस्त पड़ा था कि कूड़ा-कचरा, गंदा नालियों का पानी, खुले में शौच, आवारा पशुयों का अड्डा बना हुआ था। अमित द्विवेदी ने इस तालाब की खुदाई के साथ ही डेढ़ दर्जन घाटों व 200 मीटर लंबी बाउंड्रीवॉल की मरम्मत कराई। अमित बताते हैं अब इस तालाब को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। यहां नावों में बैठकर लुफ्त उठाते हैं। जिसके कारण यहां दुकान चलानें वाली की आमदनी भी बढ़ गई है।
कुओं का कराया निर्माण
अमित बताते हैं कि जल संरक्षण की महती आवश्यकता को देखते हुए हमनें चेकडैम की खुदाई कराई। प्राकृतिक जलस्रोत की महत्वपूर्ण इकाई कुएं जो जर्जर होकर बहुत तेजी से नष्ट हो रहे थे, उनका सिर्फ जीर्णोद्धार के साथ पुनर्जीवित किया बल्कि मिनी पार्क का भी रूप दे दिया गया। सबमर्सिबल से इन कुओं का पानी ग्रामीणों के घर तक पहुंचाया जाता है। अमित द्विवेदी बताते हैं कि शाम को हम 50-60 लोग इन कुओं की जगत पर बैठ कर चौपाल लगाते हैं। अमित द्विवेदी ने बताया कि पर्यावरण को लेकर भी गांव में काम किया गया । पूरे गांव के चारों ओर पौधे लगाए गए। जो अब बड़े होकर ग्राम को हरित व सुंदर बना रहे हैं।
आवरा मवेशियों की खत्म हुई समस्या
अमित द्विवेदी कहते हैं पशुओं को आवारा छोड़ने की प्रथा के चलते किसान परेशान हैं। हजारों की संख्या में आवारा घूमते पशु किसानों की फसलों को चट कर जाते थे। इसके लिए हमनें नई पहल शुरू की। गांव में एक स्थान की व्यवस्था की गई और यहां मवेशियों को रखा गया। उनके चारा-पानी की भी व्यवस्था कराई गई है। गांव में गोशाला का निर्माण कार्य पूरा होते ही मवेशियों को उसी में शिफ्ट कर दिया जाएगा। अमित द्विवेदी बताते हैं, गोशाला निर्माण की रकम सरकार के बजाए हमसब ने चंदा कर एकत्र की है। ये प्रदेश की सबसे सुंदर और अनोखी गोशाला होगी।
छुआछूत का किया खात्मा
अमित द्विवेदी बताते हैं, अकबरपुर इटौरा की खुद की बेवसाइट चल रही है। गांव की योजनाओं के साथ ही जन्म-मृत्यु प्रमाणपत्र, परिवार रजिस्टर समेत तमाम कामों की सूचनाएं दर्ज रहती हैं। साथ ही गांव के विद्यालय में बच्चों के लिए आरओ सिस्टम भी लगवाया गया है। अमित द्विवेदी बताते हैं कि आज भी गांवों छूआछूत का प्रचलन चल रहा है। जिसे हमनें अपने गांव से खत्म कर दिया है। अमित सुबह के वक्त सफाईकर्मियों के साथ हाथ में झाड़ू लेकर निकलते हैं। गांव में बनी पक्की सड़कों में झाड़ू गलाने के साथ ही नालियों से कूड़ा कचरा निकालते हैं। ग्रामप्रधान के साथ ग्रामीण भी स्वच्छता के मिशन में अहम योगदान दे रहे हैं।
प्रधानमंत्री कर चुके हैं सम्मानित
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधान अमित द्विवेदी इतिहास को सम्मानित कर चुके हैं। अमित द्विवेदी बताते हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जबलपुर मंडला में दीनदयाल उपाध्याय पंचायत सशक्तिकरण पुरस्कार उनको दिया था। इससे पहले वर्ष 2017 में प्रदेश सरकार द्वारा नवरत्न श्रेष्ठ प्रधान पुरस्कार उनको मिला। बता दें कि यह पुरस्कार प्रदेश के सिर्फ 9 प्रधानों को मिला था जिनमें अमित द्विवेदी इतिहास का नाम शुमार था। सामाजिक समरसता व छुआछूत के जातिगत भेदभाव समाप्त करने के प्रयास को लेकर कर्मश्री अवार्ड से उन्हें दिल्ली में सम्मानित किया गया। भारत-नेपाल की वैदिक कालीन संस्कृति पर कार्य करने पर इंडो-नेपाल सोशल अवार्ड भी उन्हें नेपाल की राजधानी काठमांडू में वहां के प्रथम उप राष्ट्रपति और सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश द्वारा दिया गया।
गांव के नाम से फेसबुक और वाट्सएप ग्रुप
अमित द्विवेदी ने बताया कि ग्राम में आठ विषयों पर आय अर्जित की जा रही है। इसके अतिरिक्त ग्राम की बेबसाइट बना कर उसमे ग्राम तथा योजनाओं का सम्पूर्ण डाटा तो फीड कराया ही गया है, साथ ही एक हजार से ज्यादा परिवारों का विवरण भी ऑनलाइन किया गया है। ग्राम के फेसबुक पेज और वाट्सएप ग्रुप के माध्यम से ग्रामीणों को विभिन्न कार्यक्रमों व निर्माण कार्य की फोटो आदि भी उपलब्ध कराई जाती हैं। अमित द्विवेदी कहते हैं कि देश के 60 से 70 फीसदी ग्रामप्रधान गांव के विकास के लिए आए पैसे से खुद की घर की नींव मजबूत करते हैं, जिन पर कार्रवाई के साथ उन्हें जागरूक करना चाहिए। बताते, करीब पांच ग्रामप्रधानों ने हमसे संपर्क किया है और वो भी अपनी ग्रामपंचायतों को स्मार्ट बनाने में जुट गए है।।