कानपुर

जंग-ए-आजादी की यादों के साथ १०० साल पूरे कर कानपुर का गौरव बना डीएवी कॉलेज

२० छात्रों से शुरू होकर अब हर साल १६ हजार विद्यार्थियों को करता है शिक्षितपूर्व पीएम स्व. अटल जी और वर्तमान राष्ट्रपति भी यही से देश सेवा को निकले

कानपुरJul 11, 2019 / 02:36 pm

आलोक पाण्डेय

जंग-ए-आजादी की यादों के साथ १०० साल पूरे कर कानपुर का गौरव बना डीएवी कॉलेज

कानपुर। शहर के लिए वाकई गौरव का क्षण है, जब यहां के ऐतिहासिक दयानंद एंग्लो वैदिक पीजी कॉलेज (डीएवी) ने सौ सालों का सफल पूरा कर लिया है। गुरुवार के दिन ही वर्ष १९१९ में आर्य समाज के स्वामी हंसराज ने इस कॉलेज की स्थापना की थी। जंग-ए-आजादी की यादों को संजोए हुए २० छात्रों से शुरू हुआ यह कॉलेज आज हर साल १६ हजार छात्र-छात्राओं को शिक्षा दे रहा है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी और वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी इसी कॉलेज से पढ़े।
क्रांतिकारियों की योजनाएं होती थीं तैयार
आजादी के दौरान यही कॉलेज क्रांतिकारियों के लिए शरणस्थली बना हुआ था। यहीं पर बैठकर उनकी योजनाएं तैयार होती थीं। प्राचार्य डॉ. अमित श्रीवास्तव बताते हैं कि तत्कालीन हिंदी विभागाध्यक्ष पं. मुंशीराम शर्मा खुलकर क्रांतिकारियों के लिए काम करते थे। वे ही भगत ङ्क्षसह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों को निर्देश दिया करते थे।
काकोरी कांड का जन्मदाता
क्रांतिकारियों ने काकोरी कांड की योजना इसी कॉलेज में बैठकर तैयार की थी। जिसके बाद शाहजहांपुर में इसी तैयारी को दोहराया गया और फिर नौ अगस्त १९५२ को आजाद, बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, योगेश चंद्र चटर्जी, प्रेमकृष्ण खन्ना, मुकुंदीलाल, विष्णुशरण दुब्लिश ने अपने अन्य साथियों के साथ मिलकर काकोरी में अंग्रेजों की ट्रेन को लूट लिया था।
कॉलेज से परमट-बिठूर के लिए थी सुरंग
जंग-ए-आजादी के दौरान इस कॉलेज से परमट-बिठूर के लिए एक सुरंग थी। जिसमें बैठकर क्रांतिकारी बम बनाते थे और यही सुरंग क्रांतिकारियों के लिए शरणस्थली थी। जिसका अंग्रेजों को पता नहीं था। अगर कभी ब्रिटिश पुलिस क्रांतिकारियों की तलाश में कॉलेज आती थी तो इसी सुरंग के जरिए क्रांतिकारी बचकर निकल जाते थे।
अनोखा है डीएवी कॉलेज
डीएवी कॉलेज की कई बातें इसे अपने आप में अनोखा बनाती हैं। यही एक ऐसा इकलौता कॉलेज है जहां नाइजीरिया, भूटान, बांगलादेश, मलेशिया, नेपाल, अफगानिस्तान, श्रीलंका के छात्र १९९२ तक यहां पढऩे आते थे। यहां का डिजाइन सर सुंदरलाल ने ब्रिटिश इंडियन शैली पर तैयार किया था और यहां का सेंट्रल हाल बिना किसी भी पिलर और सरिया के सिफ ईट-गारे के दम पर आज तक टिका हुआ है।
 

 
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