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मुख्यमंत्री जी धरोहरों पर लगा ग्रहण, दर्द से कराह रहे पर्यटन स्थल

locationकानपुरPublished: Apr 23, 2018 10:49:46 am

Submitted by:

Vinod Nigam

सरकार की उपेक्षा के शिकार, एतिहासिक मठ-मंदिरों का विश्व मानचित्र में नहीं नाम

सरकार की उपेक्षा के शिकार, एतिहासिक मठ-मंदिरों का विश्व मानचित्र में नहीं नाम
कानपुर। उत्तर प्रदेश के सीएम बनने के बाद कानपुर आए योगी आदित्यनाथ ने शहर की धरोहरों को सवांरने का वादा किया था। बिठूर महोत्सव में आकर ब्राम्हाघाट पर आरती कर प्रचीन धरोहरों को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित करने के साथ 1857 की क्रांति के साथ ही महर्षि वाल्मीकि को आश्रम, बाल धु्रव टीले सहित दर्जनों एतिहसासिक मठ-मंदिरों का जिक्र किया था, लेकिन वह अभी तक धरातल पर दिखाई नहीं दिया। इतिहासकार मनोज कपूर कहते हैं, यहां पुरातत्व महत्व के कई ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल हैं जो पर्यटकों को लुभाते हैं, लेकिन आज तक इन पर्यटन स्थलों का विकास तो दूर की बात, इन्हें विश्व मानचित्र पर स्थान तक नहीं मिल सका। कपूर ने कहा कि पिछले तीन दशक से कानपुर राजनीतिक दलों की उपेक्षा का शिकार बना रहा। कांग्रेस, सपा, बसपा और भाजपा को कानपुरियों ने वोट तो दिया पर राजनेताओं ने बदले में दगा दिया। बताते हैं, अगर शासन-प्रशासन इनकी ब्रांडिंग करवाता तो यहां पर्यटकों का अंबार लगा होता, बेराजगारों को रोजगार मिलता। बताते हैं, घाटमपुर तहसील क्षेत्र में कई प्रचान स्थल हैं, लेकिन सरकारी सिस्टम के चलते बेजान पड़े हैं।
लव-कुश की नगरी आंसू बहा रही
कानपुर से 15 किमी की दूरी पर स्थित बिठूर गंगा के किनारे बसा एक छोटा सा कस्बा है। यहां पर मां सीता वनवास के दौरान महर्षि वाल्मीकि आश्रम में रूकी थीं और दो पुत्र लव-कुश को जन्म दिया था। मां सीता जहां पर भोजन पकाती थीं, वह किचन आ भी मौजूद है। किचन के अंदर बेलन सहित खाना पकाने वाले सारे सामान रखे हुए हैं। साथ ही लव-कुश जहां पर शिक्षा-दिक्षा लिया करते थे, वह सारी धरोहरें बदहाल हालत में मौजूद हैं। सीता रसोइया से लेकर सीता समाधि स्थल के दर्शन के लिए दूर-दराज से भक्त आते हैं। सीता मंदिर के पुजारी ने बताया कि सरकार ने बिठूर के लिए कुछ नहीं किया। अगर यहां का विकास कराया गया होता तो यहां पर्यटक बड़ी संख्या में आते। पर सड़क, यातायात के साधन नहीं होने से पर्यटक यहां आने से कतराते हैं। 2007 में मायावती की सरकार में कुछ विकास हुआ था, इसके बाद यहां कोई झांकने तक नहीं आया।
घाटमपुर स्थित मानसूनी मंदिर
भीतरगाव ब्लाक क्षेत्र स्थित बेहटा बुजुर्ग गाव में भगवान जगन्नाथ स्वामी का प्राचीन मंदिर है। जब मानसून आने वाला होता है तो 15 दिन पहले ही इस मंदिर के गुंबद से पानी टपकने लगता है। पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को संरक्षित कर रखा है। मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ दर्शन देते हैं। इतिहासकार दूसरी से ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य इसकी स्थापना मानते हैं। गर्भगृह के अंदर व बाहर की चित्रकारी को देखकर इसके दूसरी से चौथी शताब्दी में स्थापित होने की बात कही जाती है। हालांकि कुछ इतिहासकार चक्रवर्ती सम्राट हर्षवर्धन के काल में इसकी स्थापना की बात कहते हैं। पर यहां आने के लिए लोगों को गड्ढों से भरी सड़कों से गुजर कर आना पड़ता है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि देश-विदेश से लोग आते हैं और भगवान जगन्नाथ के दर्शन करते हैं। यदि सरकार यहां कुछ विकास कार्य करा दे तो यह क्षेत्र पर्यटन के हब के रूप में प्रसिद्ध हो जाएगा।
टिकवापुर गांव में जन्में महाकवि भूषण
घाटमपुर तहसील क्षेत्र के टिकवापुर गांव में महाकवि भूषण का जन्म हुआ था। पास के अज्योरी गांव में अकबर के मंत्री बीरबल का बनवाया बीहारेश्वर महादेव का मंदिर भी है। मंदिर के अंदर बलुआ पत्थर का विशाल शिवलिंग है। घाटमपुर में ही भगवती कूष्मांडा का मंदिर स्थापित है। चैत्र और शारदीय नवरात्र में यहां मेला लगता है। वर्ष 1783 में कवि उम्मेद राव खरे द्वारा लिखी गई पुस्तक ऐश-आफ्जा में उल्लेख है कि वर्ष 1380 में राजा घाटमदेव ने मंदिर की स्थापना कराई थी। हालांकि इस मंदिर के इतिहास को लेकर कई और पुस्तकें लिखी गई हैं।
नौवीं शताब्दी में हुई थी इस मंदिर की स्थापना
सजेती क्षेत्र के निबियाखेड़ा गाव में भद्रेश्वर महादेव का मंदिर स्थापित है। कहते हैं कि इसकी स्थापना नौवीं शताब्दी में हुई थी। यह मंदिर पंचायतन शैली में निर्मित है और इसका पुरातात्विक महत्व है। मंदिर के चारों कोनों में लघु मंदिर स्थापित हैं। सजेती से सटे बिधनू इलाके के भीतरगाव में गुप्तकालीन मंदिर स्थापित है। मंदिर की स्थापना का काल पांचवीं से आठवीं शताब्दी के मध्य बताया जाता है। इसे विष्णु व सूर्य मंदिर कहा जाता है। मंदिर की खोज अंग्रेज इतिहासकार एवं पर्यटक एलेक्जेंडर कनिंघम ने की थी। एक ब्रिटिश इतिहासकार वोगल ने प्रमाणित किया है कि यह इससे भी करीब 300 वर्ष अधिक प्राचीन है।
यहां ब्रम्हा ने की थी सृष्टि की रचना
ब्रह्मावर्त घाट पर भगवान ब्रह्मा का मंदिर (ब्रह्मा खूंटी) स्थापित है। मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा ने यहीं पर सृष्टि की रचना की थी। घाट पर ही ही उनके द्वारा स्थापित शिवलिंग भी है। कहते हैं कि प्रभु ने आसपास के पांच गांवों में शिवलिंग स्थापित किए थे। बिठूर में नानाराव पेशवा का किला ढह गया है। यहीं पर रानी लक्ष्मी बाई नानाराव पेशवा के साथ पली और बड़ी हुई। तात्या टोपे से शस्त्र चलाने का गुर सीखा। पर्यटन विभाग को चाहिए कि वह गाइड की व्यवस्था करे ताकि लोग जब इन स्थलों पर आएं तो उनके महत्व के बारे में जान सकें। गाइड की तैनाती का निर्णय कई बार लिया गया, लेकिन इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका।
यहां मौजूद हैं मंदिर और दरगाह
बिल्हौर से ककवन जाने वाले मार्ग पर औरंगपुर सांभी गांव में मां चंद्रिका देवी का मंदिर है। मान्यता है कि मां के दरबार में निःसंतान दंपती यदि कामना करें तो उन्हें संतान की प्राप्ति होती है। बिल्हौर ब्लाक स्थित मकनपुर गांव में सैय्यद बदीउद्दीन जिंदा शाह मदार की दरगाह है। यहां पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान समेत कई देशों से जायरीन व मलंग चादर चढ़ाने के लिए आते हैं। दरगाह पर जब उर्स होता है तो ऊंट, घोड़ा की बाजार भी लगती है। मान्यता है, जिसने भी यहां चादर चढ़ाई उसकी मुराद अवश्य पूरी हुई। सहायक पर्यटन अधिकारी मोहित कुमार ने बताया, इन स्थलों को सवांरने के लिए शासन की तरफ से जल्द झंडी मिल जाएगी। यह एतिहासकि धरोहरें भी विश्वमानचित्र में उपलब्ध होंगे। अभी नौ स्थानों को चिन्हित किया गया हैं, जहां पर बैठने के लिए बेंच, प्रकाश के लिए स्ट्रीट लाइटें और इतिहास बताने को बोर्ड आदि लगाए जाएंगे।

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