कानपुर

#KhulkeKheloHoli उड़ी श्रद्धा की गुलाल, बिखरे मस्ती के रंग, चौराहों पर गेर नृत्य, मंदिरों में धार्मिक अनुष्ठान

प्रेम, सौहाद्र्र, भाईचारा, मेल-मिलाप एवं अपनत्व की भावना जाग्रत करने वाला होली महोत्सव शहर एवं गांव में श्रद्धा, परंपरा एवं मस्ती के साथ मनाया गया। दिन में गेर नृत्य, संध्या में धार्मिक अनुष्ठानों के साथ शुभ मुहूर्त में होली का दहन हुआ।

कानपुरMar 14, 2017 / 03:27 pm

madhulika singh

प्रेम, सौहाद्र्र, भाईचारा, मेल-मिलाप एवं अपनत्व की भावना जाग्रत करने वाला होली महोत्सव शहर एवं गांव में श्रद्धा, परंपरा एवं मस्ती के साथ मनाया गया। दिन में गेर नृत्य, संध्या में धार्मिक अनुष्ठानों के साथ शुभ मुहूर्त में होली का दहन हुआ। लंबी उम्र के लिए नोनिहालों को ढूंढ की रस्म निभाई। गुलाल-अबीर की बौछार एवं एक दूसरे के रंग लगाने की जोर आजमाइश, हंसी- ठिठोली व उल्लास से हर मन उल्लास से भर गया। 

जिला मुख्यालय पर होली पर त्योहारी रौनक साफ दिख रही थी। बाजार में सुबह से ही खरीदारी का क्रम शुरू हो गया, वहीं बच्चों के लिए पिचकारियां व रंग-गुलाल की खरीदी भी की। दोपहर बाद घरों में पकवान महके तथा पूजा के लिए भोग-प्रसाद बनाया। शाम को बच्चे, युवा, बड़ों और बुजुर्गों ने नववस्त्र पहने तथा परिजनों, रिश्तेदारों की मौजूदगी में पर्व की खुशी बांटी। शुभ मुहूर्त में शाम को जगह-जगह होलिका दहन किया गया। राजनगर, कांकरोली के साथ जावद, धोइंदा, राजनगर का गुड़ा, एमड़ी व आस पास के गांवों में परंपरागत होली का दहन किया। राजसमंद में जेके मोड़ पर मुख्य होली का दहन दूसरे दिन अल सुबह द्वारकाधीश मंदिर कांकरोली की ओर से किया गया। इस अवसर पर बड़ी तादाद में शहरवासी मौजूद थे। मंदिर से श्रद्धालुओं, सेवकों व गणमान्य लोगों की टोली मशाल लेकर रवाना हुई, जो चौपाटी, जेके मोड़ होते हुए होलीथड़ा पहुंची, जहां पूजा-अर्चना कर परिक्रमा के बाद होली को अग्नि दी गई। बाद में अंगारे घर ले जाकर दूसरे दिन का चुल्हा इसी से जलाने की परम्परा का भी निर्वाह हुआ।

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घरों में महकी पूड़ी-पापड़ी

जमरा बीज पर रीति-रिवाज के तहत महिलाओं ने सुबह होलीथान पर पूजा-अर्चना की। दोपहर बाद घरों में गुड़-तिल्ली, फीकी, मीठी च नमकीन पूरी, पपड़ी, पकौडिय़ां तथा कई तरह के व्यंजन बनाए गए। इन्हें घर-परिवार, पड़ोसियों, करीबियों और परिचितों को परोसा गया।

गेर नृत्य में झूमे ग्रामीण 

देहात क्षेत्र में चौराहों पर पारम्परिक गेर नृत्य हुआ, जिसमें ग्रामीणों ने सफेद कुर्ते-धोती पहनकर और गले में उपरणा डालकर, हाथों में दो लकडिय़ां लेकर ढोल की थाप पर गोल घूमते-झूमते हुए नृत्य किया। एक के बाद एक, कई गइयां खेलकर उन्होंने त्योहार को श्रद्धा और धर्म के रंग में रंग दिया। इस बीच उड़ती गुलाल अबीर से नृतक एवं श्रद्धालु गुलालमय हो गए।

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