डॉक्टरों का कहना है कि एलएचएफएसएच, एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रान हारमोंस मासिक धर्म के चक्र को संचालित करते हैं। प्रदूषण और गलत खानपान के चलते इनका सामंजस्य बिगड़ रहा है। इसके अलावा एएमएच हारमोन अंडाशय में अंडों का रिजर्व बताता है कि अभी कितने अंडे और बनेंगे। इस समस्या से पीडि़त महिलाओं में अंडों का रिजर्व बहुत कम मिलता है।
शहर में दर्जनों ऐसे केस सामने आ रहे हैं जिनमें इस समस्या से महिलाएं पीडि़त हैं। चार माह से लेकर दस साल तक की शादीशुदा महिलाओं में हारमोंस की गड़बड़ी से उनकी गोद सूनी है। पहले तो महिलाएं असली समस्या को समझ नहीं पातीं। कई मामलों में पुरुषों को जिम्मेदार माना जाता है, पर जब जांच कराई जाती है तो उनके हारमोंस में गड़बड़ी मिलती है।
वायु प्रदूषण से आर्सेनिक, बेनजियम, मैगनीज, लेड जैसे जहरीले तत्व सांस के जरिए शरीर में प्रवेश करते हैं। ये तत्व खून में मिलकर हारमोंस रिसाव की ग्रंथियां प्रभावित करते हैं। कई बार ये ग्रंथियां निष्क्रिय या बहुत अधिक सक्रिय हो जाती हैं। दोनों ही स्थितियों में मासिक धर्म प्रभावित होता है। इसी तरह खाद्य पदार्थों के जहरीले तत्व भी खून में मिलकर मासिक धर्म चक्र और अंडे बनने की प्रक्रिया बिगाड़ देते हैं।
मेडिकल कॉलेज में स्त्री रोग विभागाध्यक्ष डॉ. किरन पांडेय का कहना है कि ४० फीसदी महिलाओं में यह परेशानी मिल रही है। उनके अंडाशय में अंडों का रिजर्व घट रहा है। इससे बचाव के लिए महिलाएं अपना खानपान सुधारें। मिलावटी खाद्य पदार्थों से बचें। इसके साथ ही योग-व्यायाम करें जिससे शरीर की क्षमता बढ़े और प्रदूषण का प्रभाव न पड़े।