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यहां हर रात सजती है अदृश्य चेहरों की महफिल, शहनाई की गूंज से सराबोर पांचवीं सदी का मंदिर

locationकानपुरPublished: May 21, 2018 09:28:12 am

Submitted by:

Vinod Nigam

चन्द्रगुप्त मोर्य ने कराया था मंदिर का निर्माण, शाम होते ही मंदिर के बंद कर दिए जाते हैं पट

चन्द्रगुप्त मोर्य ने कराया था मंदिर का निर्माण, शाम होते ही मंदिर के बंद कर दिए जाते हैं पट

रात होते ही इस मंदिर में सजती है महफिल, घुंघरू-ढोल और शहनाई की गूंज से सराबोर

कानपुर। शहर में कई एतिहासिक मंदिर हैं, जिनको देखने के लिए देश ही नहीं विदेश से भक्त आते हैं। पर शहर से 50 किमी की दूरी पर स्थित घाटमपुर तहाल के भीतरगांव ब्लॉक में एक पांचवी सदी का मंदिर है, जिसकी रखवाली आत्मा करती हैं। रात होते ही अदृष्यों की महफिल जमती है और घुंघरू, ढोल के साथ ही शहनाई की गूंज से मंदिर सराबोर हो जाता है। गांववालों का कहना है कि शाम होते ही मंदिर के आसपास इंसान तो दूर परिंदे भी पर नहीं मार सकते। जिसने भी यहां जाने की हिमाकत की वो कभी जिंदा वापस नहीं लौटा। इसी के चलते 104 साल से इसमें 7 बजते ही ताला जड़ दिया जाता है। बुजुर्ग रामखेलावन कहते हैं कि रात के 12 बजते ही मंदिर परिसर पर चहल-कदमी शुरू हो जाया करती थी। घुंघरू और ढोल के साथ ही शहनाई की धूनों की आवाजें सुनाई पड़ती थीं। पर वहां कोई नहीं जाता। सुबह के पहर मंदिर के पुजारी पट खोलते हैं और पूजा-पाठ के बाद सूरज ढलने से पहले ही मंदिर को बंद कर दिया जाता है।
चंद्रगुप्त मौर्य ने कराया था मंदिर का निर्माण
अजय सिंह ने बताया कि अपने बुजुर्गो से सुना है कि इस मंदिर का निर्माण चन्द्रगुप्त मोर्य ने कराया था। पूरा मंदिर ईटो से बना हुआ है पिरामिड आकार का यह मंदिर की उचाई 20 मीटर और चौड़ाई 70 मीटर है। मंदिर पर तराशी कई मुर्तियां व नक्काशी प्राचीन कलाकृति को दर्शाती हैं। अजय के मुताबिक इस मंदिर कभी पूजा नही हुई है। मंदिर में एक विष्णु जी बावन अवतार वाली मूर्ति है, एक मूर्ति चार भुजाओं वाली दुर्गा जी की और गणेश भगवान की चार भुजाओं वाली मूर्ति है। अजय बताते हैं कि लोग मंदिर के अन्दर तब जाते थे जब सूर्य की रोशनी होती थी और अंधेरा होने पर यहां पर जानवर भी जाने से कतराते हैं। इस मंदिर का मुख पूर्व की तरफ है जब सूर्य निकलता है तो पहली किरण मंदिर पर पड़ती है, जिसका प्राचीन समय में कुछ महत्व रहा होगा। वास्तु के हिसाब से ही मंदिर का निर्माण कराया गया होगा। इस मंदिर की खास बात यह है कि इसको किसी भी दिशा से देखो तो यह सामान ही एकसमान दिखता है।
कई अनसुलझे रहस्य छिपे
पांचवी सदी का ईटों का बना गुप्त कालीन मंदिर अद्भुद प्राचीन कलाकृति का अनूठा नमूना है। लेकिन इस मंदिर ने अपने अन्दर कई अनसुलझे रहस्य भी छिपा रखे है। गांववालों का कहना है कि शाम होते ही मंदिर के पट बंउ कर दिए जाते हैं और यहां आने-जाने वालों पर रोक लगा दी जाती है। मंदिर की कुछ दूरी पर पुजारी इसकी देख-रेख करता है और शाम के वक्त वहां से निकलने वालों को रोक दूसरी जगह से जाने को कहता है। गांव के अजय सिंह ने बताया कि वे तीसरी पीढ़ी से है, लेकिन मंदिर के अंदर कभी नहीं गए। अजय का कहना है कि मंदिर के अन्दर कौन से भगवान् की मूर्ति है और वह कैसी है, यह कोई नहीं जानता। अजय के मुताबिक मंदिर के बारे में बुजुर्ग बताते थे मंदिर के नीचे चंद्रगुप्त शासन काल के दौरान का खजाना छिपा है और इसकी सुरक्षा इंसान नहीं, बल्कि आत्माएं करती हैं। अजय सिंह ने बताया कि मंदिर के पास एक तालाब से गांववाले मिट्टी खोद रहे थे, तब उन्हें सोने की ईटें मिली थीं। इसी के बाद मंदिर के नीचे दबे खजाने की पुष्टि हुई थी। जिसे पाने के लिए कई लोगों ने प्रयास किए पर वह सभी असफल रहे।
इस लिए पड़ गया ताला
ग्रामीणों के मुताबिक, 1905 में यहां पर बंजारे आए हुए थे और मंदिर परिसर के पास ढेरा जमा लिया। इसी दौरान गांववालों ने उन्हें खजाने के बारे में बताया तो करीब दो दर्जन बंजारे रात में उसे खोदने के लिए मंदिर के पास पहुंचे। लेकिन वे खजाना लूट पाते उससे पहले सभी की दर्दनाक मौत हो गई। अजय सिंह बताते हैं कि सुबह के वक्त हमारे बाबा और अन्य गांववाले मंदिर पर गए तो वहां पर बंजारों के क्षत-विक्षप्त हालात में शव पड़े मिले। इसी के बाद अंग्रेज हुकूमत ने मंदिर पर शाम होते ही ताला जड़वा दिया और तब से यह सिलसिला जारी है। वहीं बुजुर्ग शिवरतन ने बताया कि 50 साल पहले कुआखेड़ा के पांच चोर मंदिर परिसर से खजाना लेने के लिए आए, पर सुबह उनके शव यहीं पर पाए गए। इसी के बाद मंदिर पर लोगों ने आना-जाना बंद कर दिया। वहीं अजह सिंह ने कहा कि यहां जिसने रात बिताई वो जिंदा नहीं बचा। अब ये मंदिर पुरातत्व विभाग की जांच के अंतर्गत है।
सुनाई देती है शहनाई की गूंज
गांववालों ने बताया कि आज भी देररात मंदिर परिसर से शहनाई की गूंज सुनाई देती है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि तीन सौ साल पहले गांव में कई शहनाई वादक थे और उनकी मौत हो गई। गांव के करीबउल्ला ने बताया कि हमें तो यही बताया जाता है कि हमारे परदादा शहनाई के उस्ताद थे और वही आज भी मंदिर में शहनाई बजाते हैं। करीउल्ला ने बताया कि दस साल पहले हम कुछ मित्रों के साथ मंदिर परिसर के पास पहुंचे, लेकिन एकाकए शहनाई बजना बंद हो गई। हम डर गए और तत्कसल वहां से वापस आ गए। गांववालों का कहना है कि पचास साल पहले लोग मंदिर के बाहर खड़े होकर शहनाई सुना करते थे, लेकिन अब लोग वहां जाने से डरते हैं। क्योंकि मंदिर के आसपास कई हादसे हो चुके हैं।

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