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मानसून का इंतजार बीती बात, जब जरूरत तब होगी बरसात

locationकानपुरPublished: Feb 10, 2020 11:46:20 am

एचएएल की मदद से आईआईटी कराएगा कृत्रिम बारिशस्वदेशी उपकरणों से मई में हो सकता इसका परीक्षण

मानसून का इंतजार बीती बात, जब जरूरत तब होगी बरसात

मानसून का इंतजार बीती बात, जब जरूरत तब होगी बरसात

कानपुर। गर्मी के दिनों में अब जरूरत पडऩे पर बारिश कराई जा सकेगी। इसके लिए कानपुर स्थित आईआईटी ने तैयारी शुरू कर दी है। मई महीने में कानपुर को बिना बादल की बारिश का मजा मिल सकता है। इसके लिए एचएएल की तरफ से आईआईटी को मदद दी जाएगी। डिफेंस एक्सपो में एचएएल टेड कानपुर के जनरल मैनेजर अपूर्बा रॉय व आइआइटी के उप निदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने इसे लेकर एक करारनामे पर हस्ताक्षर किए हैं। करार के तहत कृत्रिम बारिश कराने में एचएएल के डीओ-228 व एचएस-748 एयरक्राफ्ट आइआइटी कानपुर का सहयोग करेंगे।
मिलकर करेंगे काम
कृत्रिम बारिश कराने में अब आइआइटी को एचएएल का साथ मिल गया है। एचएएल के एयरक्राफ्ट के सहयोग से आइआइटी मई में कृत्रिम बारिश का परीक्षण करा सकता है। कृत्रिम बारिश कराने की इस परियोजना में अब एचएएल के अधिकारी, तकनीशियन व आइआइटी के वरिष्ठ प्रोफेसर मिलकर काम करेंगे। उपनिदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल व सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी कृत्रिम बारिश कराने की तकनीक पर लंबे समय से काम कर रहे हैं। इसी के तहत पिछले वर्ष आइआइटी में एचएएल में निर्मित डोर्नियर-228 एयरक्राफ्ट का परीक्षण भी किया गया था।
प्रदूषण पर लगेगा अंकुश
कानपुर में वायु प्रदूषण को कम करने में कृत्रिम बारिश अहम सहयोग होगा। आमतौर पर शहर में वायु प्रदूषण का स्तर ज्यादा खराब होने पर सडक़ों और पेड़ों पर पानी की बौछार कराई जाती है। जिससे सडक़ों और पेड़ की पत्तियों पर जमा धूल हट जाती है। जिससे प्रदूषण काफी कम हो जाता है। अब यही काम कृत्रिम बारिश से ज्यादा बेहतर तरीके से हो सकेगा।
इन जिलों में कराई जाएगी बारिश
कृत्रिम बारिश की योजना बुंदेलखंड क्षेत्र के हमीरपुर व ललितपुर समेत ऐसे जिलों के लिए होगी जो गर्मी के दिनों में सूखे से जूझते हैं। आइआइटी ने अपने परीक्षण में पाया कि स्वदेशी एयरक्राफ्ट व सीमित संसाधनों से बारिश कराने का खर्च बहुत कम हो जाएगा। विदेशों से आने वाले एयरक्राफ्ट व उसमें लगने वाले उपकरण के जरिए अगर कृत्रिम बारिश कराई जाती है तो उसका खर्च साल भर में 50 से 60 करोड़ रुपये आता है। स्वदेशी एयरक्राफ्ट व स्वदेशी उपकरणों के जरिए इसका खर्च घटाकर पाच से छह करोड़ पर लाया जा सकता है।
संस्थान के कई विभागों का सहयोग
इस प्रोजेक्ट में छह विभागों के सचिव के अलावा उपनिदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल, एयरोस्पेस विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एके घोष, सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. सच्चिदानंद त्रिपाठी शामिल हैं। कृत्रिम बारिश कराने के लिए प्रदेश सरकार की ओर से गठित कमेटी आइआइटी में बैठक कर चुकी है। एचएएल की टीम ने भी दो बार आइआइटी की एयर-स्ट्रिप का दौरा किया है।
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