कानपुर

फैज की नज्म पर हो रही जांच में आईआईटी ने किया यह फैसला

केवल सांप्रदायिकता वाले बिंदु को छोडक़र हर जांच होगी आईआईटी में पढ़ी गई फैज की नज्म के बाद शुरू हुई जांच

कानपुरJan 04, 2020 / 02:30 pm

आलोक पाण्डेय

फैज की नज्म पर हो रही जांच में आईआईटी ने किया यह फैसला

कानपुर। फैज की नज्म मामले की जांच में आईआईटी ने घुमा फिराकर जांच को रोकने की बात कही है। आईआईटी प्रशासन ने साफ किया है कि नज्म सांप्रदायिक है या नहीं, इसके अलावा हर बिंदु पर जांच होगी। मतलब साफ है कि जांच ठंडी की जाएगी, क्योंकि जांच जिस बिंदु पर होनी थी उसी बिंदु को जांच प्रक्रिया से बाहर कर दिया गया। आईआईटी ने इस मामले पर संस्थान में बढ़ रहे टकराव को टालने का यह रास्ता निकाला है, क्योंकि यहां परं फैज अहमद फैज की कविता की जांच का मामला काफी तूल पकड़ चुका है और इसे लेकर छात्रों में कभी भी बात बिगड़ सकती है।
कौन हैं फैज, क्या है नज्म
फैज अहमद फैज एक पाकिस्तानी शायर हैं और जिस कविता को लेकर सारा बखेड़ा खड़ा किया गया है यह कविता फैज ने 1979 में सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के संदर्भ में पाकिस्तान में सैन्य शासन के विरोध में लिखी थी। फैज अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण जाने जाते थे और इसी कारण वे कई सालों तक जेल में रहे। कविता के बोल-लाजिम है कि हम भी देखेंगे, जब अर्ज-ए-खुदा के काबे से. सब बुत उठाए जाएंगे, हम अहल-ए-वफा मरदूद-ए-हरम, मसनद पे बिठाए जाएंगे। सब ताज उछाले जाएंगे, सब तख्त गिराए जाएंगे। बस नाम रहेगा अल्लाह का। हम देखेंगे… के अलावा आगे के शब्द बहुत खतरनाक हैं।
क्या है पूरा मामला
दिल्ली में जामिया छात्रों पर हुई पुलिस कार्रवाई के विरोध में आईआईटी कानपुर में प्रदर्शन हुआ था। छात्रों ने बिना अनुमति शांति मार्च निकला और ओएटी में सभा की थी। सभा के दौरान छात्रों ने फैज अहमद फैज की कविता भी पढ़ी। हालांकि, उसी सभा में कविता का विरोध भी छात्रों ने किया और इसे गलत ठहराया और तत्काल सभा खत्म करने की बात कही थी। छात्रों की इस सभा का वीडियो वायरल होने पर आईआईटी निदेशक ने मामले की उच्च स्तरीय कमेटी का गठन किया और जांच के आदेश दिए।
मामला इसलिए भडक़ा
मामले ने तब तूल पकड़ा जब संस्थान ने नज्म के हिंदू विरोधी होने पर सवाल उठाए। सोशल मीडिया में आईआईटी को ट्रोल किया गया। इस पर आईआईटी ने शुक्रवार को जारी रिलीज में स्पष्ट किया है कि संस्थान द्वारा गठित जांच समिति के मुद्दे में फैज अहमद फैज की नज्म सांप्रदायिक है या नहीं, यह शामिल नहीं है। समिति ओपन एयर थिएटर (ओएटी) के साथ साथ कुछ सोशल मीडिया पोस्ट, लेख, ब्लॉग, और सभा के दौरान छात्रों के वर्ग द्वारा भडक़ाऊ, अपमानजनक और डराने वाली भाषा का उपयोग करने की शिकायतों की जांच कर रही है।

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