एक लीटर पानी साफ करने का खर्च महज दो रुपये अमेरिका के मैसाचुसेट्स प्रौद्योगिकी संस्थान के साथ छह माह के संयुक्त शोध में पानी शुद्ध करने वाला यह बैग बनाया है। आईआईटी कानपुर में अर्थ साइंस विभाग के प्रो. इंद्रसेन ने बताया कि वॉटर प्यूरीफायर बैग का परीक्षण पूरा हो चुका है। आइआइटी की प्रयोगशाला के बाद शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में हैंडपंप, नल व जमीन के अंदर से निकाले जाने वाले पानी में इसका परीक्षण किया गया। करीब महीने भर तक किए गए परीक्षण के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। प्रो. इंद्रसेन ने बताया कि पीने के पानी को शुद्ध करने के लिए तैयार इस बैग में रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया गया है। उन्होंने दावा किया कि जैविक पदार्थों से बनाया गया बैग प्राकृतिक तरीके से पानी साफ कर उसके अंदर जरूरी तत्वों को हानि नहीं पहुंचाता। इससे पानी के स्वाद में भी कोई फर्क नहीं आता है।
छह महीने में आम आदमी तक पहुंच जाएगा यह पैकेट अभी पेटेंट की कार्रवाई लंबित होने के कारण आईआईटी ने वॉटर प्यूरीफायर में इस्तेमाल जैविक पदार्थों के नाम का खुलासा नहीं किया है। आईआईटी के मुताबिक, पानी शुद्ध करने का छोटा पैकेट छह माह में आम आदमी तक पहुंच सकता है। प्रो. इंद्रसेन ने बताया कि इसकी कीमत कम होने के कारण यह सभी की पहुंच में होगा। लोग इस सस्ती तकनीक से अपने घर में पीने का पानी शुद्ध कर सकेंगे। गौरतलब है कि पानी में मौजूद अशुद्धियां बीमारी की एक बड़ी वजह बनती हैं। दुनिया में हर साल करीब सवा करोड़ लोगों की मृत्यु दूषित पानी की वजह से होती है। विश्व में करीब 1.2 अरब लोग सुरक्षित मीठा जल न मिल पाने के कारण भयंकर खतरे में जी रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, रोजाना चार हजार बच्चे दूषित जल के कारण मौत के शिकार होते हैं। भारत में दस में चार व्यक्तियों की स्वच्छ पानी तक पहुंच नहीं है। दूषित पानी से हेपेटाइटिस-ए और हेपेटाइटिस-ई, पोलियो, टायफाइड और पैरा-टायफाइड, आतों के रोग, हैजा जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।