जानवरों पर किया जाने वाला यह क्लिनिकल ट्रायल काफी कष्टदायी होता है। सौंदर्य प्रसाधन और स्किन की दवाएं तैयार करने के बाद बंदरों, खरगोशों और चूहों पर इसके क्लिनिकल ट्रायल होते हैं। इसमें बेजुबान जीव-जंतुओं को दर्दभरी प्रक्रिया से गुजरना होता है। इस प्रक्रिया में कई बार उनकी मौत भी हो जाती है। रिसर्च के रिजल्ट आने में अभी 2-3 साल का वक्त लगता है। तकनीकी भाषा में इसे ‘एनिमल मॉडल’ कहा जाता है।
आईआईटी के केमिकल इंजिनियरिंग विभाग ने पेपर, नैनो कणों और फाइबर की मदद से यह थ्रीडी स्किन बनाई है। यह स्किन बंदरों-चूहों की त्वचा की हूबहू कॉपी होगी। केमिकल इंजिनियरिंग के प्रोफेसर श्री शिवकुमार और पीएचडी छात्र औहीन कुमार मपारु ने तीन साल की मेहनत के बाद कृत्रिम त्वचा विकसित कर ली। यह थ्री-डी स्किन सामान्य त्वचा की तरह किसी कॉस्मेटिक या दवा को लगभग स्वीकार या अस्वीकार भी करेगी।
इस कृत्रिम त्वचा में फंगल संक्रमण, चोट लगने और प्राकृतिक तरीके से ठीक होने की विधि भी शामिल है। दूसरे शब्दों में पेपर से बनी यह कृत्रिम त्वचा एनिमल मॉडल का स्थान ले लेगी। पेपर, पीडीएमएस नैनो पार्टिकल्स और नैनो फाइबर की मदद से त्वचा का बाहरी हिस्सा (एपिडर्मल लेयर) तैयार की गई। यह लेयर ही तेल, क्रीम और अन्य चीजों को स्वीकार या अस्वीकार करने में प्रमुख भूमिका निभाती है। नैनो तकनीक की मदद से यह कृत्रिम त्वचा काफी हद तक वन्यजीवों की त्वचा के माइक्रो-एनवायरमेंट जैसी है।