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बच्चे की राइटिंग से खुलेगा इस बीमारी का राज, समय से इलाज होने पर बेहतर होगा भविष्य

locationकानपुरPublished: Mar 20, 2020 01:56:42 pm

डिस्लेक्सिया और डिस्ग्राफिया की बीमारी से पढ़ाई में आती है समस्या खास पैटर्न वाले सॉफ्टवेयर के जरिए हो सकेगा इस बीमारी का इलाज

बच्चे की राइटिंग से खुलेगा इस बीमारी का राज, समय से इलाज होने पर बेहतर होगा भविष्य

बच्चे की राइटिंग से खुलेगा इस बीमारी का राज, समय से इलाज होने पर बेहतर होगा भविष्य

कानपुर। अक्सर बच्चों में देखा जाता है कि वे अक्षरों को पहचानने में गलती करते हैं, बार-बार करते हैं। दो अलग-अलग शब्दों को पहचाना उनके लिए मुश्किल होता है। दरअसल यह बच्चे की लापरवाही नहीं बल्कि बीमारी है। पर घर वाले इसकी पहचान नहीं कर पाते। डिस्लेक्सिया और डिस्ग्राफिया की समस्या से अक्षर और शब्द पहचानने और लिखने में कठिनाई होती है। यह कठिनाई बचपन से ही रहती है, लेकिन पता काफी देर में चलता है। कई मामले में तो बच्चों को डांट और पिटाई का सामना करना पड़ता है, पर अब तकनीक के जरिए इसका इलाज हो सकेगा।
आईआईटी ने खोज निकाला हल
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) कानपुर ने कम उम्र में बीमारी की पहचान करने की तकनीक विकसित कर ली है। इसमें बच्चों की लिखावट से उनकी समस्या आसानी से पता चल जाएगी। आइआइटी कानपुर के ह्यïूमैनिटीज एंड सोशल साइंस के प्रो. बृजभूषण और श्रीलंकाई मूल के प्रो. योगराज प्रतीपन ने मिलकर तकनीक विकसित की। कानपुर समेत आसपास के जिलों के डिस्लेक्सिया और डिस्ग्राफिया से पीडि़त छात्रों के हैंडराइटिंग सैंपल लिए गए। इन्हें डीप लर्निंग मशीन में कोड किया गया। स्कैनर की सहायता से किसी भी बच्चे की लिखावट की पड़ताल कराई जा सकती है कि उसे समस्या है कि नहीं।
खास पैटर्न के सॉफ्टवेयर से होगा इलाज
विशेषज्ञों ने स्वर और व्यंजनों का ऐसा पैटर्न तैयार किया है, जिससे पीडि़त छात्रों को समझना आसान हो जाएगा। सॉफ्टवेयर के जरिए पीडि़त छात्रों को स्वर और व्यंजन के बारे में समझाया गया है। उदाहरण के लिए क और फ में अंतर, ख कैसे र और व से अलग है आदि। प्रो. बृजभूषण के मुताबिक तकनीक को पेटेंट कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। इस तकनीक को मार्च माह में इटली में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में प्रस्तुत किया जाना था, लेकिन कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते कांफ्रेंस रद कर दी गई है।
लर्निंग एप भी बना था मददगार
प्रो. बृजभूषण इससे पहले एक लर्निंग एप भी बना चुके हैं, जो डिस्लेक्सिया और डिस्ग्राफिया से पीडि़त बच्चों को पढऩे और लिखने में मदद करता है। इस एप का एडवांस वर्जन एक सॉफ्टवेयर कंपनी तैयार कर रही है, जिसे वह कारपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी (सीएसएआर) के तहत मुफ्त में मुहैया कराएगा। उन्होंने बताया कि यह ऑटोमेटेड डिटेक्शन ऑफ डिस्लेक्सिया एंड डिस्ग्राफिया सॉफ्टवेयर है, जिससे बच्चों में डिसलेक्सिया और डिस्ग्राफिया की आशंका का पहले ही पता चल जाता है। बच्चे की हैंडराइटिंग की फोटो खींचकर सॉफ्टवेयर में डालने के बाद वह कुछ ही सेकेंड में सारी जानकारी दे देगा। इस शोध में क्लीनिकल ट्रायल की जरूरत भी नहीं पड़ी।
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