घातक तत्व मिलाने का खतरा
साइबर अटैक के जरिए हैकर्स वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से पानी की सप्लाई रोकने के साथ उसमें किसी भी तरह का घातक तत्व मिला सकते हैं। पश्चिमी एशिया के कुछ देशों में ऐसी कोशिश हो चुकी है। जिसके बाद भारत में यह जिम्मेदारी आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों को दी गई है। यहां के वैज्ञानिक ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार कर रहे हैं जिसे हैकर के लिए तोडऩा आसान नहीं होगा। आईआईटी के साइबर सेल प्रभारी प्रो. संदीप शुक्ला के मुताबिक टीम कई ट्रीटमेंट प्लांट पर जाकर बेसिक जानकारी जुटा चुकी है। अभी तक जो सॉफ्टवेयर ट्रीटमेंट प्लांट में लगाए जा रहे हैं, वे निजी कंपनियों के हैं और इन्हें तोडऩा हैकर के लिए मुश्किल नहीं है।
साइबर अटैक के जरिए हैकर्स वाटर ट्रीटमेंट प्लांट से पानी की सप्लाई रोकने के साथ उसमें किसी भी तरह का घातक तत्व मिला सकते हैं। पश्चिमी एशिया के कुछ देशों में ऐसी कोशिश हो चुकी है। जिसके बाद भारत में यह जिम्मेदारी आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों को दी गई है। यहां के वैज्ञानिक ऐसा सॉफ्टवेयर तैयार कर रहे हैं जिसे हैकर के लिए तोडऩा आसान नहीं होगा। आईआईटी के साइबर सेल प्रभारी प्रो. संदीप शुक्ला के मुताबिक टीम कई ट्रीटमेंट प्लांट पर जाकर बेसिक जानकारी जुटा चुकी है। अभी तक जो सॉफ्टवेयर ट्रीटमेंट प्लांट में लगाए जा रहे हैं, वे निजी कंपनियों के हैं और इन्हें तोडऩा हैकर के लिए मुश्किल नहीं है।
सॉफ्टवेयर से होता है पानी ट्रीट
वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में पानी एक सॉफ्टवेयर के जरिए कई स्तरों पर ट्रीट होता है। पानी क्लोरीनेशन से लेकर फिल्टर प्रक्रिया तक कई चरण से गुजरता है। इसमें बैक्टीरिया, वायरस, केमिकल, प्रोटोजोआ आदि को अलग-अलग तरीके से खत्म किया जाता है। इसे एक सॉफ्टवेयर कंट्रोल करता है। पानी में कौन-कौन से तत्व मौजूद हैं और कौन से नए तत्व अचानक आ रहे हैं, इसकी जानकारी सेंसर से मिलती है। प्रो. संदीप का कहना है कि सॉफ्टवेयर लाखों घातक रसायन या दूसरे तत्वों की पहचान करने में सक्षम होगा। अभी तक जो भी घातक तत्व ज्ञात हैं उससे बढ़कर सेंसर काम करेगा।
वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में पानी एक सॉफ्टवेयर के जरिए कई स्तरों पर ट्रीट होता है। पानी क्लोरीनेशन से लेकर फिल्टर प्रक्रिया तक कई चरण से गुजरता है। इसमें बैक्टीरिया, वायरस, केमिकल, प्रोटोजोआ आदि को अलग-अलग तरीके से खत्म किया जाता है। इसे एक सॉफ्टवेयर कंट्रोल करता है। पानी में कौन-कौन से तत्व मौजूद हैं और कौन से नए तत्व अचानक आ रहे हैं, इसकी जानकारी सेंसर से मिलती है। प्रो. संदीप का कहना है कि सॉफ्टवेयर लाखों घातक रसायन या दूसरे तत्वों की पहचान करने में सक्षम होगा। अभी तक जो भी घातक तत्व ज्ञात हैं उससे बढ़कर सेंसर काम करेगा।