भाई व शिक्षकों का मिल रहा भरपूर सहयोग उन्होंने बताया कि रोशनी जाने के बाद आंखो के सामने अन्धकार छा गया, लेकिन जज्बे के चलते उन्होंने कभी हार नहीं मानी। अपनी स्नातक की शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्होंने घर पर रहकर पर्यावरण को सुरक्षित रखने का वीणा उठाया। इस दौरान उन्होंने अपने छोटे भाई सौरभ द्विवेदी को अपना सहयोगी बनाया। घर से लेकर बाहर तक सभी कार्यों में पल पल साथ रहकर भाई उनके लिए दिव्य दृष्टि बन गए। उन्होंने बताया कि विद्यालय में शिक्षकों के सहयोग से अभ्यास करते हुए आज वो विद्यालय के कोने-कोने से भलीभांति वाकिफ हैं। ब्लैक बोर्ड पर बच्चों को खड़े होकर शिक्षा देते हैं। वो कहते हैं कि घर पर तैयारी करके कंठस्थ कर अगले दिन वो बच्चों को शिक्षा कार्य कराते हैं।
लोगों को दिया ये संदेश दृष्टि बाधित होने के बावजूद हार न मानते हुये गणेशदत्त 11 वर्ष से लगातार नियमित होकर शिक्षण कार्य करते हुये अपना दायित्व बखूबी निभा रहे हैं। उनका मानना है कि आंख सिर्फ वह देखती है, जो दुनिया दिखाती है। लेकिन मन की आंखे वह देखती हैं, जो आप देखना चाहते हैं। कभी हार न मानने वाले गणेशदत्त की कोशिश शिक्षा के प्रति सभी को जागरूक करना है। वह ऐसे शिक्षकों के लिए एक मिसाल हैं, जो अपने कार्य को संजीदगी से नहीं करते। उन्होंने कहा समाज ने शिक्षक (गुरु) से बड़ा कोई दर्जा नहीं होता है, जो समाज की रचना करते हैं।