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फूलन ने कुछ इस तरह से किया था सरेंडर

locationकानपुरPublished: May 19, 2018 11:36:01 am

Submitted by:

Vinod Nigam

पूर्व सीएम अर्जुन के कहने पर एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी ने लिया था प्रण, फूलन को देख सहम गया था आईपीएस

पूर्व सीएम अर्जुन के कहने पर एसपी राजेंद्र चतुर्वेदी ने लिया था प्रण, फूलन को देख सहम गया था आईपीएस

शेरनी की मांद में पहुंचा यह आईपीएस, कुछ इस तरह फूलन ने किया था सरेंडर

कानपुर। एक गरीब मल्लाह के घर में जन्म लेने वाली फूलन ने भी सपने देखे थे। वह भी आम लड़कियों की तरह खुशहाल जिंदगी जीना चाहती थी, पर ऐसा हुआ नहीं। खेलने खाने की उम्र में उसका विवाह कर दिया गया, जहां पति की ज्यादती का शिकार हुई। मायके आई तो डकैतों की नजर उस पर पड़ गई तो उसकी आबरू लूट ली गई। थक-हार का एक सीधी-साधी बिटिया हथियार उठाकर बीहड़ में उतरी और एक खुंखार शेरनी बन गई। अपने दुश्मनों को उसने चुन-चुन कर मौत के घाट उतारा। चंबल और बीहड़ के इलाके में उसका राज हो गया। बड़े-बड़े लोग बैंउड क्वीन का नाम सुनकर कांप जाते थे, तो कईयों ने अपना घर-बार छोड़ कर दूसरे जिलों में शरण ले ली। बेहमई कांड को अंजाम देने के बाद फूलने देश-विदेश के अखबारों में छा गई और इसी के बाद उसके पीछे पुलिस पड़ गई। फूलन यूपी से भागकर एमपी चली गई, पर खाकीधारी उसके खात्में का प्रण कर बैठे थे। पर उसे मारना आसान काम नहीं था। तभी एमपी के तत्कालीन सीएम अजुन सिंह ने अपने एक खास अफसर को फूलन को सरेंडर कराए जाने को लागया। अफसर बाइक पर सवार होकर निकल पड़ा और कठिनाईयों भरे रासते को पार कर शेरनी का मांद में जा पहुंचा और फिर यहीं से फूलन के समर्पण की का अगाज हो गया।
सर्दभरी रात में चलाई बाइक
दस्यू गया पटेल उर्फ बाबा बताते हैं कि 5 दिसंबर, 1982 की रात मोटर साइकिल पर सवार अधीक्षक राजेंद्र चतुर्वेदी और उनके एक साथ फूलन का खास आदमी भिंड के पास बीहड़ों की तरफ़ बढ़ रहे थे। हवा इतनी तेज़ थी कि भिंड के पुलिस अधीक्षक की कंपकपी छूट रही थी। उन्होंने जींस के ऊपर एक जैकेट पहनी हुई थी, लेकिन वो सोच रहे थे कि उन्हें उसके ऊपर शॉल लपेट कर आना चाहिए था। मोटर साइकिल पर उनके पीछे बैठे शख्स का भी ठंड से बुरा हाल था। अचानक उसने उनके कंधे पर हाथ रख कर कहा, ’बाएं मुड़िए।’ थोड़ी देर चलने पर उन्हें हाथ में लालटेन हिलाता एक शख्स दिखाई दिया। वो उन्हें लालटेन से गाइड करता हुआ एक झोपड़ी के पास ले गया। जब वो अपनी मोटरसाइकिल खड़ी कर झोपड़ी में घुसे तो अंदर बात कर रहे लोग चुप हो गए। उन्होंने उन्हें दाल, चपाती और भुने हुए भुट्टे खाने को दिए। उनके साथी ने कहा कि उन्हें यहां एक घंटे तक इंतज़ार करना होगा। थोड़ी देर बाद आगे का सफ़र शुरू हुआ। गया पटेल बताते हैं कि यहीं उन्हें एक कंबल दिया गया और उसे ओड़कर पुलिस अधीक्षक बाइक को लेकर आगे बड़ने लगे।
छह किमी पैदल चले थे पुलिस अक्षीक्षक
पटेल बताते हैं कि चंबल नदी के पास रास्ता बाइक चलाने लायक नहीं था। तभी फूलन के खास गुर्गे ने उन्हें सलाह दी की महाराज अब पैदल ही चलना होगा। फजून के गुर्गे के कहने पर उन्होंने अपनी मोटर साइकिल छोड़ दी। गाइड ने टॉर्च निकाली और वो उसकी रोशनी में घने पेड़ों के पीछे बढ़ने लगे। अंततः कई घंटों तक चलने के बाद ये दोनों लोग एक टीले के पास पहुंचे। वहां पहले से ही आग जलाने के लिए लकड़ियाँ रखी हुई थीं। उनके साथी ने उसमें आग लगाई और वो दोनों अपने हाथ सेंकने लगे। गया बतो हैं कि उस वक्त रात के बरीब ढाई बज गए थे। कुछ देर के बाद फूलन के साथी ने उन्हें चलने का इशारा किया। थोड़ी देर बाद उन्होंने फिर चलना शुरू किया। अचानक उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी, ’रुको।’ एक व्यक्ति ने उनके मुंह पर टॉर्च मारी। तभी उनके साथ वहाँ तक आने वाला गाइड गायब हो गया और दूसरा शख्स उन्हें आगे का रास्ता दिखाने लगा। गया पटेल ने बता कि इसके बाद दूसरे व्यक्ति के साथ् पुलिक्ष अघीक्षक छह किमी पैदल चे। भोर पहर उनकी नजर बीहड़ पर पड़ी। इसके बाद टीले पर खड़े एक डकैत ने लाल रूमाल दिखाई। लाल रूमाल दिखते ही पुलिख अधीक्षक टीले के पास पहुंचे। वहां उनकी मुलाकात डकैत मानसिंह से हुई।
फूलन ने पुलिस अधीक्षक के छुए पैर
मनसिंह पुलिस अधीक्षक को लेकर बबूल के पेड़ के पास ले गया, जहां फूलन सिर पर लाल रूमाल और हाथ में राइफल लिए हुई खड़ी थी। फूलन ने एसपी के पैर छुए और पांच सौ रूपए रखे थे। गया पटेल कहते हैं कि बीहड़ के डकैतों की यह परम्परा रही है कि जब भी सरेंडर के लिए तैयार होते थे तो पुलिस के अधिकारी के पैर छूने के बाद पैसे जरूर रखते थे। गया बताते हैं कि मुझे याद है कि उस वक्त फूलन ने अपने हाथों से एसपी के लिए चाय बनाई और चाय के साथ उन्हें चूड़ा खाने के लिए दिया। गया बताते हैं कि उन्हों ने फूलन को बताया कि उनकी मां और बहन से मैं मिला और उन्होंने तुम्मारे लिए यह गिफ्ट दिया है। मां के हाथों के बने लड्डू देख फूलने रोने लगी। गया बताते हैं कि फूलन ने उसी दौरान अचानक पूछा, ’आप मुझसे क्या चाहते हैं?’ चतुर्वेदी ने कहा, ’’आप को मालूम है मैं यहाँ क्यों आया हूँ। हम चाहते हैं कि आप आत्मसमर्पण कर दें। इतना सुनना था कि फूलन आग बबूला हो गई। चिल्ला कर बोली,’तुम क्या समझते हो, मैं तुम्हारे कहने भर से हथियार डाल दूँगी। मैं फूलन देवी हूँ। मैं इसी वक़्त तुम्हें गोली से उड़ा सकती हूँ।
एसपी के लिए खुद बनाया था भोजन
दस्यू गया पटेल ने बताया कि फूलन भी आत्मसर्मपण करना चाहती थी और मानसिंह के समझाने के बाद उसका मूड फिर ठीक हो गया। फूलन ने उनके लिए खाना बनाया। फूलन ने उन्हें बाजरे की मोटी-मोटी रोटियाँ, आलू की सब्ज़ी और दाल खाने के लिए दी। फूलन ने आत्मसर्मपण के लिए हामी भर दी और एससी खुशखबरी लेकर जंगल से निकल कर सीधे भिंड पहुंचे और वहां से सीएम अर्जुन सिंह को खुखबरी सुना दी। इस बीच राजेंद्र चतुर्वेदी की फूलन देवी से कई मुलाक़ातें हुईं। एक बार वो अपनी पत्नी और बच्चों को फूलन देवी से मिलाने ले गए। गया पटेल ने बजाया कि एसपी चतुर्वेदी ने फूलन से पूछा, कब समर्पण करने जा रही हैं आप? फूलन का जवाब था, ’’छह दिनों के भीतर।’’ चतुर्वेदी की नज़र कैलेंडर पर गई। छह दिनों बाद तारीख थी, 12 फ़रवरी 1983। इसी के बाद कई अन्य डकैत भी सरेंडर को तैयार हो दगए। गया बताते हैं कि समर्पण वाले दिन फूलन ने घबराहट में कुछ नहीं खाया और न ही एक गिलास पानी तक पिया। पूरी रात वो एक सेकंड के लिए भी नहीं सो पाईं।
फिर डाल दिए हथियार
गया पटेल ने बताया कि फूलन को डाक बंगले में ठहराया गया था। समपर्ण से पहले बाथरूम में फूलन ने अपने बालों में कंघी की। अपने माथे पर लाल कपड़ा बांधा और अपने मुंह पर ठंडे पानी के छींटे मारे। पुलिस की ख़ाकी वर्दी पहन कर उसके ऊपर लाल शॉल ओढ़ी। जब वो बाहर आईं तो पुलिस वालों ने उन्हें उनकी राइफ़ल वापस कर दी। उसमें कोई गोली नहीं थी। लेकिन उनकी गोलियों की बेल्ट में सभी गोलियां सलामत थीं। फूलन मंच पर चढ़ीं उन्होंने अपनी राइफ़ल कंधे से उतार कर अर्जुन सिंह के हवाले कर दी। फिर उन्होंने कारतूसों की बेल्ट उतार कर अर्जुन सिंह के हाथ में पहना दी। बगल में खड़े एक पुलिस अफ़सर ने फूलन को इशारा किया। उसने अपने दोनों हाथ जोड़ कर माथे के ऊपर उठाया। पहले उसने अर्जुन सिंह को नमस्कार किया और फिर सामने खड़ी भीड़ को। अफ़सर ने फूलन को फूलों का एक हार दिया। फूलन ने वो हार अर्जुन सिंह के गले में पहना दिया। जब वो ऐसा कर रही थीं तो उस अफ़सर ने उन्हें रोक कर कहा कि हार उन्हें गले में न पहना कर उनके हाथ में दिया जाए। फूलन ने सवाल किया, क्यों? अर्जुन सिंह मुस्कराए और बोले, ’’उन्हें गले में हार पहनाने दीजिए।’ फिर फूलन ने एक और हार उठाया और मेज़ पर रखे दुर्गा के चित्र के सामने रख दिया।
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