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यू-ट्यूब और सोशल मीडिया पर इनसे रहें सावधान, खतरे में पड़ सकती जान

locationकानपुरPublished: Dec 28, 2019 01:11:24 pm

मेडिकल कॉलेज ने बेवजह के शोध पर उठाई रोक की मांग चिकित्सा क्षेत्र में प्रचलित इलाज के कई तरीके घातक

यू-ट्यूब और सोशल मीडिया पर इनसे रहें सावधान, खतरे में पड़ सकती जान

यू-ट्यूब और सोशल मीडिया पर इनसे रहें सावधान, खतरे में पड़ सकती जान

कानपुर। चिकित्सा क्षेत्र में बेवजह हो रहे नए-नए शोध मरीजों की जान पर घातक साबित हो रहे हैं। इनका सोशल मीडिया पर प्रचार लोगों को भ्रम में डाल रहा है, जिसके चलते लोग स्वस्थ होने की बजाय बीमारी को पाल रहे हैं। इसकी सबसे चिंताजनक स्थिति यह है कि यू-ट्यूब और व्हाट्सएप की तरह ही अन्य सोशल मीडिया प्लेटफाम्र्स पर प्रचारित किए गए उपायों को देखकर कई मरीज भी खुद ही डॉक्टर बन बैठते हैं।
रोक के लिए उठाई गई आवाज
कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज ने मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से इस तरह के शोध और उनके प्रचार पर रोक लगाने की मांग की है। मेडिकल कॉलेज की ओर से कहा गया है कि एमसीआई अपने स्तर पर शोधपत्रों को आधार मानकार किए जा रहे प्रमोशन पर रोक लगाए। क्योंकि ऐसे शोध के प्रयोग से मरीज की मौत भी हो चुकी है।
खुद न बनें डॉक्टर
इसे लेकर लोगों से भी अपील की गई है कि सोशल मीडिया पर दिए गए शोध के आधार पर खुद ही इलाज मत करें, बल्कि डॉक्टर से मिलकर उसके परामर्श के अनुसार ही इलाज करें। मेडिकल कॉलेज प्राचार्य प्रो. आरती लालचंदानी ने कहा है कि एमसीआई, इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च और डब्ल्यूएचओ के मानक पर खरे शोधपत्र ही प्रकाशित होने चाहिए।
पुराने शोध को ही बताते नया
मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसरों का कहना है कि कई शोधपत्र तो छात्रों को भी भ्रमित कर रहे हैं। कई डॉक्टर कोई शोध नहीं करते, बल्कि पुराने शोध को ही बदलकर नए रूप में पेश कर देते हैं। ऐसा वे प्रमोशन के चक्कर में करते हैं पर इससे छात्रों को कोई लाभ नहीं होता।
ये बातें करती हैं भ्रमित
कहा जाता है कि फ्लू का टीका आंखों पर असर डालता है, तो कई रिसर्च यह भी दावा करते हैं कि फूड सप्लीमेंट स्वास्थ्य के प्रति हानिकारक हैं। जबकि ऐसा नहीं होता है। इसी तरह अंधेरें में पढऩे या टीवी के करीब बैठने से आंखों पर असर पडऩे वाली बात भी गलत है। यह भी भ्रम है कि मछली का तेल हृदयरोग के जोखिम को कम नहीं करता है।
इलाज के ये तरीके होते घातक
सिर और गरदन को जोडऩे वाली हड्डी (सर्वाइल) के ऑपरेशन से जुड़ा एक शोध सामने आया। इसमें दावा किया गया कि हड्डी का खराब हिस्सा निकालने के बजाय वहीं स्कू्र डाल दें। इससे 70-75 फीसदी बेहतर रिजल्ट मिलेगा। इसके आधार पर डॉक्टरों ने सर्जरी की तो मरीज को नुकसान हो गया। मेटिक हर्ट डिजीज में चार-पांच साल तक डॉक्टर पेंसिलिन की हैवी डोज का धड़ल्ले से प्रयोग करते हैं। अब एक हजार लोगों पर इस एंटीबायोटिक के असर का आकलन किया गया तो पता चला कि मरीजों को फायदे के बजाय नुकसान पहुंचा रही है।
डेंगू के मरीज इससे बचें
डेंगू मरीजों के इलाज के लिए पपीते की पत्ती के जूस और कीवी के इस्तेमाल से फायदे पर कई शोध पत्र उपलब्ध हैं। हकीकत इसके विपरीत है। डॉक्टरों ने पाया कि इलाज के दौरान डेंगू मरीजों को पपीते के जूस और कीवी से एसिडिटी होती है।
ग्रीन टी और ब्लैक टी के रिसर्च
ब्लैक टी और ग्रीन टी पर हर साल रिसर्च सामने आ रहे हैं। इसके चलते कैंसर के कई मरीजों ने बीच में इलाज छोडक़र ग्रीन टी पीना शुरू कर दिया। इसके कारण कई कैंसर रोगी पैलेटिव केयर में पहुंच गए। कैंसर रोगियों की कई दवाएं ऐसी हैं जो रेडिएशन के बाद नहीं दी जानी चाहिए।
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