हालांकि रविवार के दिन अन्य दिनों की अपेक्षा बाजार में ज्यादा भीड़ होती है। क्योंकि छुट्टी के दिन ही लोग हफ्ते भर की जरूरत का सामान लेने निकलते हैं। पर इस बार शनिवार को ही लोगों ने खरीदारी कर डाली। इसलिए न बाजार में खरीदार निकले और ना ही दुकानें खुलीं।
रोजमर्रा कमाने खाने वाले चाय-पान के गुमटी वाले भी जनता कफ्र्यू के समर्थन में दिखे। इक्का-दुक्का को छोडक़र बाकी सारी छोटी चाय और पान-बीड़ी की दुकानें बंद रहीं। कुछ लोग जो जरूरत पर बाहर निकले तो भी उन्हें इनके लिए तरसना पड़ गया।
वैसे तो हर जगह अवकाश ही था पर जरूरत पडऩे पर जो लोगा बाहर भी निकले वे धूप में वाहनों का इंतजार करते-करते थक गए। सडक़ पर एक दो ऑटो-टेम्पो ही दिखे और वह भी फुल थे। लिहाजा लोगों ने पैदल चलना ही मुनासिब समझा।
भले ही बाजार बंद रहे हों पर मेडिकल स्टोर मालिकों ने अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए दवा प्रतिष्ठान खोले। सर्दी-जुकाम और बुखार फैलाने वाले इस मौसम में तुरंत दवा की जरूरत होती है, इसलिए मेडिकल स्टोर खुले रहे, हालांकि ग्राहकों की संख्या कम रही।
सुबह आठ बजे रावतपुर गांव और काकादेव में बिजली चली गई और साढ़े दस बजे के बाद ही आयी। इस दौरान गर्मी लगने पर लोगों ने पेड़ की छांव के नीचे बैठ कर समय काटा। लोगों के बीच कोरोना वायरस ही चर्चा का एक ही विषय था। लोग इससे हुए नुकसान और बचाव पर बात करते दिखे।