रसूलाबाद ब्लाक क्षेत्र का गहलू गांव भी उन्ही में से एक है, जहां कहने को तो शासन के नुमाइंदे आते है लेकिन चौपाल के नाम पर खानापूरी करके चले जाते है। वहीं ग्रामीणों के अरमान महज अरमान बनकर ही राह जाते है। ग्रामीणों के अनुसार ग्राम प्रधान रामेश्वरी देवी का विकास कार्यों से कोई वास्ता नहीं है। सभी कार्य कागजों पर दिखाई देते है, कई बार ब्लाक के अधिकारियों से लेकर जिले के आला अधिकारियों से शिकायत कर गुहार लगाई लेकिन समस्याओं का अभी तक कोई हल नहीं निकला है।
एक तरफ केंद्र सरकार स्वच्छता अभियान को लेकर गंभीर है, जिसके लिए गांव गांव निशुल्क शौंचालय बनवाकर गरीबों को राहत देने का काम किया जा रहा है। वहीं दूसरी तरफ गहलू गांव में दो वर्ष पूर्व शौचालय के नाम पर सीट रखाव दी गयी थी। जब काफी समय गुजर गया तो प्रधान से कहा गया लेकिन कोठरी नही बनवाई गई। हालात खुले में शौच की तरह बने रहे। मजबूरन हम लोगों ने सीट के आसपास प्लास्टिक की फट्टी लगाकर उसे महफूज किया है। घर की महिलाओं को देखते हुये प्रधान व अफसरों से आग्रह किया लेकिन आश्वासन देकर टरका दिया गया। झोपड़ी में रह रहे गांव के गरीबों ने जब आवास के लिए प्रधान से कहा तो प्रधान पति ने रुपये की मांग कर दी। गरीबी के हालातों से गुजर रहे हम लोग रुपये देने में सक्षम नही है तो उन्होंने अपने चहेते लोगों को कॉलोनी दे दी।
ग्रामीणों की माने तो आश्चर्य की बात ये है कि प्रधान पति ने एक बार दी हुई कालोनी की रंगाई पुताई कराकर दोबारा फिर से उसको कागजों पर दोबारा दिखाकर धनराशि हड़प कर ली। लेकिन गांव के गरीब आज भी झोपड़ी में रहने को मजबूर है। और शौचालय अभियान भी आंसू बहा रहा है। ग्रामीणों ने बताया कि बीते दिनों रसूलाबाद विधानसभा विधायिका निर्मला संखवार ने गांव में आकर ग्रामीणों की समस्या निस्तारण के लिए चौपाल लगाई। जहां ग्रामीणों ने अपनी समस्याएं उनक सामने रखी लेकिन विधायिका अपनी खानापूरी कर समस्या निस्तारण किये बिना ही वापस लौट गई। अब देखना ये है कि योगी सरकार में गांव के गरीबों के जख्मों पर कब तक मरहम लगेगा और उनके विधायक मंत्री उनके अभियान को सफल बनाने में कहां तक खरे उतरते है।