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Hindi journalism Day: यूपी के इस पत्रकार ने हिला दी थीं ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें, जानिए कौन हैं पंडित जुगल किशोर

locationकानपुरPublished: May 30, 2023 06:58:21 pm

Submitted by:

Vishnu Bajpai

Hindi journalism Day: उत्तर प्रदेश के तेज तर्रार पत्रकार ने साल 1826 में अपनी पत्रकारिता से ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिला दी थीं। ‌हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। आइए जानते हैं कौन थे पंडित जुगल किशोर शुक्ल

Kanpur journalist Jugal Kishore laid foundation of Hindi journalism

हिंदी पत्रकारिता दिवस

Hindi journalism Day: हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले कानपुर के पं. जुगल किशोरशुक्ल ने तब शायद कल्पना भी नहीं की होगी कि हिंदी पत्रकारिता का जो पौधा उन्होंने रोपा है, वह एक दिन विशाल वटवृक्ष बन जाएगा। हिंदी भाषा में ‘उदन्त मार्तण्ड’ के नाम से पहला समाचार पत्र 30 मई 1826 को कलकत्ता (अब कोलकाता) से निकाला गया था। इसलिए इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। कानपुर के पंडित जुगल किशोर शुक्ल ने इसे कलकत्ता (अब कोलकाता) से एक साप्ताहिक समाचार पत्र के तौर पर शुरू किया था। आइए हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर आपको उन पत्रकारों के बारे में बताते हैं, जिन्होंने अपनी कलम से ब्रिटिश हुकूमत हिला दी।
हिंदी का नहीं था एक भी समाचार पत्र
परतंत्र भारत की राजधानी कलकत्ता में अंग्रजी शासकों की भाषा अंग्रेजी के बाद बांग्ला और उर्दू का प्रभाव था। इसलिए उस समय अंग्रेजी, बांग्ला और फारसी में कई समाचार पत्र निकलते थे, लेकिन हिंदी भाषा का एक भी समाचार पत्र मौजूद नहीं था। अलबत्ता 1818-19 में कलकत्ता स्कूल बुक के बांग्ला समाचार पत्र ‘समाचार दर्पण’ में कुछ हिस्से हिंदी में भी होते थे।
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उस दौर में पेशे से वकील कानपुर निवासी पं. जुगल किशोर शुक्ल हिंदी भाषी लोगों तक खबरों को पहुंचाने के लिए पहले हिंदी समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ की शुरुआत की थी। यह साप्ताहिक अखबार था, जो हर हफ्ते मंगलवार को पाठकों तक पहुंचता था।
‘उदन्त मार्तण्ड’ एक साहसिक प्रयोग
उस काल में ‘उदन्त मार्तण्ड’ एक साहसिक प्रयोग था। इस साप्ताहिक समाचार पत्र के पहले अंक की 500 प्रतियां छापी गईं। कोलकाता में हिंदी भाषी पाठकों की कमी की वजह से उसे ज्यादा पाठक नहीं मिल सके। दूसरी बात कि हिंदी भाषी राज्यों से दूर होने के कारण उन्हें समाचार पत्र डाक द्वारा भेजना पड़ता था। डाक दरें बहुत ज्यादा होने की वजह से इसे हिंदी भाषी राज्यों में भेजना भी आर्थिक रूप से महंगा सौदा हो गया था। ‘उदन्त मार्तण्ड’ का शाब्दिक अर्थ है ‘समाचार-सूर्य‘। अपने नाम के अनुरूप ही उदन्त मार्तण्ड हिंदी की समाचार दुनिया के सूर्य के समान ही था।
आर्थिक तंगी के चलते बंद करना पड़ा था प्रकाशन
पंडित जुगल किशोर ने सरकार से बहुत अनुरोध किया कि वे डाक दरों में कुछ रियायत दें, जिससे हिंदी भाषी प्रदेशों में पाठकों तक समाचार पत्र भेजा जा सके, लेकिन ब्रिटिश सरकार इसके लिए राजी नहीं हुई। अलबत्ता, किसी भी सरकारी विभाग ने ‘उदन्त मार्तण्ड’ की एक भी प्रति खरीदने पर भी रजामंदी नहीं दी।
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पैसों की तंगी की वजह से ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन बहुत दिनों तक नहीं हो सका और आखिरकार 4 दिसंबर 1826 को इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया।

‘प्रताप’ ने बढ़ाई अंग्रेजों की चिंता
पत्रकारिता में क्रांतिकारिता का रंग गणेश शंकर विद्यार्थी ने भरा था। उन्होंने उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर से 9 नवंबर 1913 को 16 पृष्ठ का ‘प्रताप’ समाचार पत्र शुरू किया था। यह काम शिव नारायण मिश्र, गणेश शंकर विद्यार्थी, नारायण प्रसाद अरोड़ा और कोरोनेशन प्रेस के मालिक यशोदा नंदन ने मिलकर किया था। चारों ने इसके लिए सौ-सौ रुपये की पूंजी लगाई थी। पहले साल से पृष्ठों की वृद्धि का सिलसिला बढ़ा तो फिर बढ़ता ही रहा। कुछ ही दिन बाद यशोदा नंदन और नारायण प्रसाद अरोड़ा अलग हो गए। शिव नारायण मिश्र और गणेश शंकर विद्यार्थी ने ‘प्रताप’ को अपनी कर्मभूमि बना लिया। विद्यार्थी जी के समाचार पत्र प्रताप से क्रांतिकारियों को काफी बल मिला।
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ये थे हिंदी पत्रकारिता के कर्णधार
1. गणेश शंकर विद्यार्थी
2. झंडा गीत के लेखक श्याम लाल गुप्त पार्षद
3. बाल कृष्ण शर्मा नवीन
4. महावीर प्रसाद द्विवेदी
5. हसरत मोहानी जिन्होंने साहित्य के जरिए अंग्रेजों पर चलाई कलम
6. रमा शंकर अवस्थी, वर्तमान अखबार के संपादक
अंग्रेजों ने इन पत्र-पत्रिकाओं को किया था जब्त, भयंकर, चंद्रहास, अछूत सेवक, चित्रकूट आश्रम, लाल झंडा, वनस्पति, मजदूर ये सभी ऐसी पत्र व पत्रिकाएं हैं, जिन्हें अंग्रेजों ने जब्त कर जुर्माना वसूला था।
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