आयुष मंत्रालय, स्वास्थ्य मंत्रालय और विश्व स्वास्थ्य संगठन आदि ने शरीर को अंदरूनी रूप से मजबूत रखने की एडवाइजरी समय-समय पर जारी की है। जिसके चलते सदियों पुरानी भारतीय आयुर्वेद का आधार रहीं जड़ी-बूटियों की मांग में एकाएक इजाफा हो गया। आमतौर पर च्यवनप्राश, शहद, गिलोय, अश्वगंधा, मुलैठी, तुलसी, 51 काढ़ा की बिक्री गर्मियों में न के बराबर रहती थी। मगर कोरोना के डर से इनकी बिक्री 110 फीसदी ज्यादा है। च्यवनप्राश की मांग जाड़े से भी ज्यादा हो गई है। हर्बल चाय की मांग आजतक उतनी नहीं बढ़ी, जितनी पिछले दो महीने में बढ़ गई।
जैसे ही आयुर्वेदिक चीजों की मांग बढ़ी तो व्यापारियों ने उसके दाम भी बढ़ा दिए हैं। जड़ी बूटियों के थोक कारोबारी आशीष गुप्ता ने बताया कि तुलसी 115 रुपए किलो हो गई जबकि फरवरी-मार्च के पीक सीजन में 70 रुपए किलो थी। गिलोय की मांग इतनी है कि भाव 35 रुपए से उछलकर 70 रुपए किलो हो गए हैं। थोक मंडी और फुटकर दुकानों में रोजाना इन मसालों व जड़ी-बूटियों की बिक्री 3.5 से 4 करोड़ रुपए है। अप्रैल-मई में कभी भी इनकी बिक्री डेढ़ से दो करोड़ रुपए रोज से ज्यादा की नहीं हुई।
प्रोटीन-विटामिन वाले अन्य तमाम स्वास्थ्यवर्धक पेय की बिक्री भी तेज हो गई। जनरल गुड्स के थोक व्यापारी रोशन लाल अरोड़ा ने बताया कि पिछले साल इसी सीजन की तुलना में 75 फीसदी मांग ज्यादा है। कंपनियों ने इसमें खेल भी कर दिया है। मांग बढ़ते ही ज्यादा मुनाफा कमाने के चक्कर में होलसेलर का एक फीसदी मार्जिन घटा दिया और 6 प्रतिशत की स्कीम भी खत्म कर दी।
मांग ज्यादा बढऩे से कंपनियां मांग के मुकाबले सप्लाई नहीं कर पा रही हैं। अगर व्यापारी आज माल की बुकिंग कराते हैं तो दस दिन बाद आधी सप्लाई आ रही है। इन दिनों इन उत्पादों की बिक्री प्रतिदिन 4 से 4.5 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है जो पिछली गर्मियों में बमुश्किल 2 करोड़ रुपए रोज थी। सीएंडएफ एजेंट वीके गोयनका ने बताया कि कंपनियां मांग और सप्लाई के आधार पर काम करती हैं। फरवरी और मार्च तक का स्टॉक कंपनियों ने खत्म कर दिया था। उन्हें मालूम था कि गर्मी में मांग घटकर 20 फीसदी रह जाएगी, इसलिए कच्चा माल और उत्पादन क्षमता भी घटा दी थी। कोरोना के कारण मांग एकाएक बढ़ी तो आनन-आनन उत्पादन बढ़ाया गया लेकिन लॉकडाउन के कारण कच्चे माल की सप्लाई बाधित हो गई।