सूत्रों के मुताबिक जफर हयात व उसके चारों साथी पीएफआई के सदस्यों के सम्पर्क में थे। जफर हयात ने बाजार बंदी को लेकर जो योजना बनाई उसे पीएफआई सदस्यों के साथ साझा किया। इधर पीएफआई सदस्यों ने एक ही पक्ष के डाक्टर, वकील, व्यापारी समेत अलग अलग प्रोफेसनल्स के ग्रुप बना रखे थे। 3 जून को बाजार बंदी और 5 जून को जेल भरो आंदोलन के मैसेज ग्रुपों में भेजे गए। इसके बाद उन्हीं ग्रुप्स में इसे आगे फॉर्वर्ड करने के लिए कहा गया। जिसके बाद यह मैसेज सैकड़ों लोगों के मोबाइल पर पहुंचा।
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प्राइवेट बैंक से भेजे जाती है रकम पुलिस और एटीएस संयुक्त तौर पर जांच कर रही है। हालांकि पुलिस इस मामले में आधिकारिक तौर पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है। यह भी जानकारी मिली है कि इन्हीं खातों में सीएए-एनआरसी विरोध में हुए बवाल के दौरान भी पैसा भेजा गया था। पुलिस सूत्रों के मुताबिक बाबूपुरवा इलाके में स्थित प्राइवेट बैंक के खातों में जुलाई 2019 में लाखों रुपये भेजे गए थे। वर्तमान में इसमें करीब तीस लाख रुपये पड़े हैं। कुछ रकम बीच-बीच में निकाली गई। दो अन्य खातों में दो वर्षों के भीतर करोड़ों रुपयों का ट्रांजेक्शन होने की जानकारी मिली है। पुलिस के मुताबिक दोनों खातों में भी वर्तमान में 10-20 लाख रुपये मौजूद हैं। कई लोगों को उपलब्ध कराई गई छोटी रकम पुलिस सूत्रों के मुताबिक शहर के कई सफेदपोश, व्यापारी और समुदाय के लोगों को एसोसिएशन के करीबियों ने छोटी-छोटी रकम लगातार दी है। जिस रकम का इस्तेमाल इसी तरह के धरना-प्रदर्शन में होता रहा है। सीएए-एनआरसी विरोध में हुए बवाल के बाद से पीएफआई ने फंडिंग का तरीका भी बदल दिया है। सुर्खियों से बचने के लिए संगठन इंटरनेशनल फंडिंग से बचता है। यह खुलासा एटीएस की जांच में हुआ है। एटीएस सूत्रों के मुताबिक यहां भी कोई फंड मैनेजर है जिसने इंटरनेशनल अकाउंट से फंड अपने खाते में मंगाया और फिर बांटने का काम किया है। एटीएस सूत्रों के मुताबिक सीएए-एनआरसी विवाद के बाद पीएफआई संगठन ने सीधे तौर पर इंटरनेशनल फंड लेना बंद कर दिया।