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ब्रम्हा की नगरी में मौजूद हैं श्रीराम के वंश काल कि निशानियां

locationकानपुरPublished: Jun 02, 2019 01:48:07 am

Submitted by:

Vinod Nigam

ब्रम्हा ने यहीं पर की थी सृष्टि की रचख्ना, फिर मां सीता ने कई साल गुजारे और लव-कुश की बनीं जन्मस्थली, श्रीराम से किया था युद्य, आज भी मौजूद हैं सभी रसोई ।

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ब्रम्हा की नगरी में मौजूद हैं श्रीराम के वंश काल कि निशानियां

कानपुर। सेंट्रल रेलवे स्टेशन से करीब 20 किमी की दूरी पर स्थित बिठूर जहां ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना की थी वहां पुरूषोत्तम श्रीराम व मां सीता की निशानियां आज भी मौजूद हैं। जिनके दर्शन करनें के लिए भक्त देश व विदेश से आते हैं और उनकी मन्नत यहां पूरी होती हैं।

 

ब्रम्हा ने की थी सृष्टि की रचना
बिठूर गंगा किनारे एक ऐसा सोया हुआ सा, छोटा सा क़स्बा है जो किसी ज़माने में धर्म और सत्ता का केंद्र हुआ करता था। यहां ब्रह्मानंद घाट पर गंगा नदी किनारे स्थित छोटे से मंदिर में ब्रह्मा जी की खुटी मौजूद है। इस घाट को सबसे पवित्र घाट माना जाता है। मंदिर के पुजारी अजय उपाध्याय के मुताबिक, ब्रह्मा जी ने इसी स्थान पर बैठकर 99 यज्ञ किए थे। इसी यज्ञ से राजा मनु की उत्पत्ति हुई। राजा मनु का आधा शरीर पुरुष और आधा स्त्री का था, जिसे ब्रह्मा जी ने अलग कर स्त्री का नाम रानी शकुंतला रखा था। साथ ही, राजा मनु और रानी शकुंतला को सृष्टि की रचना करने का आदेश भी दिया था। इसी के बाद पृथ्वी पर इंसान ने दस्तक दी।

 

know about this historical place of </figure> bithoor in up hindi news” src=””><p class=आज भी मौजूद हैं ब्रम्हा जी की खुटी
पुजारी के मुताबिक यज्ञ खत्म होने के बाद जब ब्रम्हा जी जाने के लिए खड़े हुए तब उनके दाहिने पैर की खड़ाऊं ( लकड़ी की चप्पल) जमीन के अंदर धंस गई। खड़ाऊं पाताल में चला गया, लेकिन खड़ाऊं के अंगूठे और उसके बगल वाली उंगली के बीच जो कील थी, वो धरती के ऊपर ही रह गई। ऐसे में उन्होंने अपनी खड़ाऊ यहीं छोड़ दी। जाते समय ब्रह्म जी ने कहा था कि आने वाले दिनों में यह खुटी उनके नाम से विख्यात होगी। उन्होंने कहा था, जो श्रद्धालु मां गंगा में स्नान कर इनके खुटी का दर्शन करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी। बता दें, चांदी के परत से बनी ये खुटी जमीन से महज आधा इंच बाहर की तरफ है।

 

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लव-कुश ने यहीं पर लिया था जन्म
पुजारी अजय उपाध्याय के मुताबिक आठ लाख साल पहले माता सीता बिठूर आईं थी और यहीं पर लव-कुश का जन्म हुआ था। लव-कुश ने इसी स्थान पर वाल्मीकि से शिक्षा भी प्राप्त की थी। वहीं राम जानकी मन्दिर में लव कुश के बाण आज भी रखे हुए हैं। गंगा नदी के किनारे बसे इस स्थान पर एक ओर सीता रसोई भी बनी हुई है। यहीं पर सीता जी भोजन बनाती थीं। उस समय उपयोग किए गए बर्तन भी सीता रसोई में मौजूद हैं। पुजारी ने बताया कि लव-कुश यहीं पर मां गंगा में स्नान करते थे और यहीं पर बाण चलाना, घुड़सवारी आदि भी सीखी थी। पुजारी बताते हैं कि लव-कुश ने यहीं पर बाण आदि चलाना सीखा और यहीं वह भोर में गंगा में स्नान करने जाते थे। यहीं पर उन्होंने घुड़सवारी आदि भी सीखा।

 

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हनुमान जी के साथ लक्ष्मण को बनाया बंधक
भगवान श्री राम ने जब अश्वमेघ यज्ञ कराया था, तो कोई भी राजा उनके घोड़े को नहीं पकड़ पाया था। वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है कि जब वो घोड़ा बिठूर पहुंचा तो लव-कुश ने उसे बांध लिया था। जब राम भक्त हनुमान उस घोड़े को छुड़ाने आए तो लव-कुश ने उन्हें भी परास्त कर बंधक बना लिया। आज भी यहां पर वो स्थल बना हुआ है जहां भगवान हनुमान को कैद किया गया था। हनुमान को छुड़ाने आए लक्ष्मण को भी उन्होंने यहीं बंधक बना लिया था।

 

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पुत्रों से लड़ा था युद्ध
मंदिर के पुजारी बताते हैं जब हनुमान और लक्ष्मण की कोई भी खबर नहीं मिली तब भगवान राम स्वयं यहां युद्ध के लिए आ पहुंचे। युद्ध के बीच में ही उन्हें पता चला की जिन लव-कुश के साथ वह युद्ध कर रहे हैं वह उनके ही पुत्र हैं। इसके बाद माता सीता की राम से मुलाकात भी यहींं पर हुई थी। यह स्थान भी यहां पर मौजूद है और रोज यहां पर भक्तों द्वारा पूजा अर्चना की जाती है। वो पेड़ जिसके नीचे बैठ कर लव-कुश शिक्षा लिया करते थे आज भी वहां मौजूद है। कुंआ जिसका पानी मां सीता इस्तेमाल करती थी आज भी मौजूद है और उस कुएं का पानी आज भी नहीं सूखा है। मंदिर के पुजारी के मुताबिक यहीं पर सीता जी पाताल में समाई थीं। हनुमान और लक्ष्मण की कोई खबर न मिलने पर भगवान राम स्वयं युद्ध के लिए यहां पहुंचे थे। युद्ध के बीच में ही उन्हें पता चला था कि जिन लव-कुश से वे युद्ध कर रहे हैं, वे उनके ही पुत्र हैं। इसके बाद माता सीता से राम की मुलाकात भी यहीं पर हुई थी। जब राम ने माता सीता को स्पर्श करने की कोशिश की तो वे धरती में समा गईं। यह स्थान भी यहां मौजूद हैं।

 

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