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नवरात्रि पर लव-कुश की नगरी आएं, मां सीता के दर्शन कर पुष्य कमाएं

locationकानपुरPublished: Oct 10, 2018 10:25:27 am

Submitted by:

Vinod Nigam

नवरात्रि पर्व पर मां सीता व लव-कुश के दर्शन को उमड़े भक्त, सीता रईयो में जाकर टेका माथा

कानपुर। शारदीय नवरात्रि की शुरूआत आज से हो गई। कानपुर के सभी देवी मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। चारो तरफ माता रानी के जयकारे लग रहे थे। पर शहर से 17 किमी की दूरी पर स्थित बिठूर में मां सीता और श्रीराम पग-पग पर मौजूद हैं और उनके दर्शन के लिए सैकड़ों भक्त भोर पहर मां सीता मंदिर के दर्शन कर पुण्य कमा रहे हैं। मंदिर के पुजारी हरिकृष्ण मिश्रा ने बताया कि यहीं पर मां सीता ने वनवास के दौरान कई साल बिताए। महर्षि वाल्मीकि आश्रृम में उन्होंने लव और कुश को जन्म दिया। दोनों बेटों ने गुरू वाल्मीकि से शिक्षा-दिक्षा ली। लव-कुश के लिए जिस रसोई में मां सीता भोजन पकाती थीं वो वर्तन समेत आज भी मौजूद है। साथ जहां पर लव-कुश ने युद्ध के दौरान बजरंगीबली को बंदी बनाकर रखा था, वो जेल भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

बिठूर में लव-कुश ने लिया था जन्म
लव-कुश की जन्म स्थली कही जाने वाले बिठूर में नवरात्रि के पहले दिन दिन सैकड़ों की संख्या में भक्त यहां दर्शन के लिए पहुंचे। केवल शहर के ही नहीं, बल्कि कानपुर आने वाले सैलानी भी भगवान राम से जुड़ी इस स्थली के मोह से दूर नहीं हो पाते हैं। सीता रसोई, वाल्मीकि आश्रम आदि के अस्तित्व आज भी यहां विराजमान हैं। यहां माता सीता का एक मंदिर भी है। मंदिर में माता सीता की प्रतिमा अपने पुत्र लव और कुश के साथ है। जिसके दर्शन कर लोग पुष्य कमा रहे हैं। मंदिर के पुजारी ने बताया कि वैसे यहां पूरे साल लोगों का तांता लगा रहता है, लेकिन शरदीय नवरात्रि पर भक्तों का भोर पहर से आना शुरू हो जाता है। वो गंगा घाट पर जाकर डुबकी गलाते हैं और मां सीता मंदिर में आकर माथा टेक मन्नत मांगते हैं। मां सीता उनके सारे दुख हरती हैं।

लव-कुश के बाण आज भी मौजूद
मंदिर के पुजारी ने बताया कि आठ लाख साल पहले माता सीता बिठूर आईं थी और यहीं पर लव-कुश का जन्म हुआ था। लव-कुश ने इसी स्थान पर वाल्मीकि से शिक्षा भी प्राप्त की थी। वहीं राम जानकी मन्दिर में लव कुश के बाण आज भी रखे हुए हैं। गंगा नदी के किनारे बसे इस स्थान पर एक ओर सीता रसोई भी बनी हुई है। यहीं पर सीता जी भोजन बनाती थीं। उस समय उपयोग किए गए बर्तन भी सीता रसोई में मौजूद हैं। पुजारी ने बताया कि लव-कुश यहीं पर मां गंगा में स्नान करते थे और यहीं पर बाण चलाना, घुड़सवारी आदि भी सीखी थी। वाल्मीकि जी ने लव-कुश को तलवारबाजी से लेकर शिक्षा-दिक्षा दी थी। जहां पर मां सीता के दोनों पुत्र बैठकर वाल्मीकि के साथ भोजन करते थे, वो जगह आज भी मौजूद है।

मौजूद है बंदीगृह, जहां रखे गए थे बजरंगबली
पुजारी बताते हैं कि भगवान राम ने जब अश्वमेघ यज्ञ कराया था, तो कोई भी राजा उस समय उनके घोड़े को पकड़ने की हिम्मत नहीं कर पाया था। वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है कि जब वह घोडा बिठूर पहुंचा तो लव-कुश ने उसे बांध लिया था। इसके बाद राम भक्त हनुमान यहां घोड़ा छुडाने के लिए आये थे। लव-कुश से युद्ध में वह परास्त हो गए और उन्हें यहीं पर बंधक बना लिया गया था। आज भी यहां पर वह स्थल बना हुआ है, जहां पर हनुमान जी को कैद किया गया था। इसके बाद घोड़ा छुड़ाने पहुंचे लक्ष्मण जी को भी यहीं पर बंधक बना लिया गया था। पुजारी कहते हैं कि उस वक्त की सारी धरोहरें यहां ज्यों की त्यों मौजूद हैं, जिनके दर्शन करने के लिए हरदिन सैकड़ों भक्त देश-विदेश से आते हैं।

फट गई थी धरती, पाताल स्थली
मंदिर के पुजारी की मानें तो यहीं पर सीता जी पाताल में समाई थीं। पुजारी बताते हैं कि हनुमान और लक्ष्मण की कोई खबर न मिलने पर भगवान राम स्वयं युद्ध के लिए यहां पहुंचे थे। युद्ध के बीच में ही उन्हें पता चला था कि जिन लव-कुश से वे युद्ध कर रहे हैं, वे उनके ही पुत्र हैं। इसके बाद माता सीता से राम की मुलाकात भी यहीं पर हुई थी। जब राम ने माता सीता को स्पर्श करने की कोशिश की तो वे धरती में समा गईं। यह स्थान भी यहां मौजूद हैं। सुबह शाम इस स्थल पर पूजा की जाती है। पुजारी कहते हैं कि नवरात्रि पर्व पर जो भी वक्त पताल स्थल पर आकर माथा टेकता है तो उसकी सारी समस्याएं मां सीता दूर कर देती हैं।

कुएं से मां सीता भरा करती थीं पानी
पुजारी के मुताबिक वह कुंआ जिससे सीता जी पानी का उपयोग करती थी आज भी मौजूद हैं। प्राचीन समय के इस कुएं का पानी आज भी नहीं सूखा है। इसके अलावा लव-कुश जिस पेड़ के नीचे शिक्षा लिया करते थे, वह भी यहां मौजूद है। इसके साथ ही जिस स्थान पर वाल्मीकि जी ने रामायण ग्रन्थ लिखा था, वो आज भी यहां है। मंदिर के ट्रस्टी ने वृक्ष गिर जाने के बाद वहां पर मंदिर का निर्माण करवा दिया है। मंदिर के अंदर वाल्मीकि जी की प्रतिमा स्थापित है। पुजारी कहते हैं कि नवरात्रि पर बिठूर सीताराम मय हो जा जाता है।

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