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बागवान बन मेधा की सुंदर फुलवारी को सींच रहे महेंद्र

locationकानपुरPublished: Mar 17, 2019 12:29:57 am

Submitted by:

Vinod Nigam

रिटायर्ड टीचर महेंद्र प्रसाद सिंह ने बदल की गांव की तस्वीर, बंदूक की जगह थमाई कमल, 30 से ज्यादा युवा आईएएस, आईपीएस , पीसीएस और पीपीएस अफसर बने।

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बागवान बन मेधा की सुंदर फुलवारी को सींच रहे महेंद्र

कानपुर। ।एक वक्त था, जब पाठा के जंगलों के आपपास के सैकड़ों गांवों में कलम के बजाए बंदूक युवाओं की पहली पसंद हुआ करती थी। जिसका फाएदा जंगल मे ंबैठे डकैतों के सरदार और राजनीतिक दलों के नेता उठाया करते थे। पर एक शिक्षक ने इस बदहाल बगिया को हर-भरा करने का संकल्प लिया। जिसका नतीजा रहा कि चित्रकुट का रैपुरा यूपी का पहला ऐसा गांव बना, जहां सबसे ज्यादा आईएएस, आईपीएस, पीसीएस और पीपीएस अफसर पढ़ लिखकर देश की सेवा कर रहे हैं। बंजर भूमि में गांव के ही निवासी पूर्व प्रधानाचार्य डॉक्टर महेंद्र प्रसाद सिंह ने अफसरों की फसल तैयार करने के लिए पूरा जीवन अर्पण कर दिया। डॉक्टर महेंद्र बागवान बन मेधा की सुंदर फुलवारी को सींच रहे हैं। यहां हर घर से एक व्यक्ति सरकारी नौकरी में है।

इतिहास के टीचर ने बदला इतिहास
चित्रकूट जिले के रैपुरा गांव भी पाठा का अच्छा खास दखल था। ददुआ, बलखड़िया, ठोकिया, बबुली कोल समेत कई अन्य डकैतों की नजर इसी गांव में रहती थी। पर जलौन जिले से 1993 में डॉक्टर महेंद्र प्रसाद सिंह ने शहर मे ंबसने के बजाए अपने गांव की तरफ कदम बड़ा दिए। जंगल की तरफ जा रहे युवाओं को उन्होंने बंदूक, नशा के बदले कमल दवात दी। इतिहास के टीचर ने महज कुछ माह के दौरान गांव का इतिहास ही बदल दिया। डॉक्टर महेंद्र बताते हैं कि गांव के बच्चों को भविष्य बचाने के लिए एक ट्रस्ट की स्थापना की। बच्चों को फावड़े के बजाए कमल-किताब दी और उनके अंदर शिक्षा की अलख जगाई।

खड़ी कर दी अफसरों की फौज
डॉक्टर महेंद्र ने आसपास के इलाकों के टीचरों को अपने ट्रस्ट से जोड़ा। जंगलों से बच्चों को निकाल कर ट्रस्ट में लाए और खुद के पैसे से उन्हें शिक्षा के औजार मुहैया कराए। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए लोग जुड़ते गए, कारवां बनता गया। 2019 तक डॉक्टर महेंद्र के पढ़ाए 30 युवा आज आईएएस, आईपीएस सहित अन्य सरकारी विभागों में लोगों की सेवा कर रहे हैं। डॉक्टर महेंद्र एक किस्से का जिक्र करते हुए बताते हैं, 2004 में ददुआ के लोग गांव में आए और स्कूल को बंद करने का हुक्म सुना दिया। इसकी जानकारी जैसे ही ददुआ को हुई तो उसने पत्र के जरिए हमसे माफी मांगी और गरीबों के बच्चों को पढ़ाने का उसने भी अपने हाथ आगे बढ़ाए।

दशहरे के दिन पहुंचते हैं अफसर
डॉक्टर महेंद्र ने बताया कि 2008 में ग्रामोत्थान ट्रस्ट का गठन कर सरकारी नौकरी पाने वालों युवाओं को जोड़ लिया। इससे कारवां बढ़ता चला गया। बताते हैं, गांव में प्रत्येक वर्ष दशहरा के दिन दंगल व मेधा सम्मान समारोह का आयोजन करते हैं। जिसमें इनका ट्रस्ट किसी भी कक्षा में पहला, दूसरा व तीसरा स्थान पाने वाले गांव के बच्चों का सम्मान कर उन्हें प्रोत्साहित करता है। इंजीनियरिंग, मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी और प्रवेश में आर्थिक दिक्कतों पर मदद भी मुहैया कराता है। अफसर से लेकर कर्मचारी की नौकरी वाले दशहरा में जरूर पहुंचते गांव।

शिक्षा के जरिए गरीबी को मात
डॉक्टर महेंद्र ने कहते हैं कि बुंदेलखंड की बदहाली के असल वजह शिक्षा है। यहां पर जैसे ही बच्चे आठ-दस वर्ष के होते हैं, वैसे ही तेंदूपत्ता, खनन और पहाड़ों में मजदूरी करनें लगते हैं। इस कारोबार से जुड़े लोग उन्हें पैसे के साथ नशा बांट कर उन्हें पूरी तरह से अपने जाल में फंसा लेते हैं। दिनभर की मजदूरी ये ग्रामीण नशे में बर्बाद कर देते हैं। हमारा ट्रस्ट, बुदंलेखंड के 7 जिलों में पहुंच चुका है और बुदंलों के भविष्य को संवार रहा है। डॉक्टर महेंद्र ने बताया कि हमारे इस नेक काम में यहीं से निकले आईएएस-आईपीएस, प्रोफेसर, डॉक्टरों व इंजीनियरों अपना सहयोग दे रहे हैं।

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