कानपुर

Leather Industry Kanpur News बेरूखी के चलते बंगाल में जलवा बिखेरेगा कानपुर का चमड़ा

कानपुर के 18 कारोबारियों ने सात करोड़ से अधिक का करार करने के साथ ही 40 अन्य ने आवेदन कर मांगी है जमीन, बंदी के कारण उठाया कदम।

कानपुरJul 22, 2019 / 01:28 am

Vinod Nigam

Leather Industry Kanpur News बेरूखी के चलते बंगाल में जलवा बिखेरेगा कानपुर का चमड़ा

कानपुर। कभी एक राजा ने मात्र कुछ दिनों के लिए अपने राज्य में चमड़े के सिक्के चलवा दिये थे, लेकिन औद्योगिक शहर कानपुर Industrial city kanpur में तैयार चमड़े leather industry का भी दुनिया भर के बाजार में सिक्का चलता है, पर अब ऐसा नहीं है। प्रदेश में योगी सरकार Yogi Sarkar आने के बाद पहले बुचड़खाने फिर कुम्भ मेले के चलते यहां के चर्म कारखाने यानी टेनरियों Tanneries को बंद करवा दिया, जिसके कारण चमड़ा कारोबार Leather business का विशाल ढांचा पूरी तरह से चरमरा कर औधेंमुंह गिर पड़ा। अब कारोबारी फिर से पैर जमानें के लिए दूसरे प्रदेशो की तरफ कदम बढ़ा दिए हैं। यहां के 18 कारोबारियों ने बंगाल सरकार Bengal Government के साथ 700 करोड़ से अधिक के निवेश का करार किया है। ये लोग सीएम ममता बनर्जी CM Mamta Banerjee से मिलने के बाद उनके राज्य में चमडा़ का जलवा बिखेरने की पूरी तैयारी कर ली है।

18 उद्यमियों ने किया करार
कानपुर चमड़ा उद्योग kanpur leather industry की धमक पूरे विश्व में थी। कहा जाता है कि कानपुर की टेनरियां Tanneries विश्व स्तर पर सबसे बेहतरीन चमड़े का उत्पादन करती हैं। यहां की कारीगरी का कमाल पारंपरिक है। यहां पर चमड़े के जिस कार्य से जो जुड़ा है वो अपने फन का माहिर है और पीढ़ी दर-पीढ़ी यही कार्य करता आ रहा है। यहां पर अधिकतर प्लांट जाजमऊ और गंगा पर उन्नाव इलाके में लगे हैं, जिनमें से कईयों पर पिछले एक साल से ताले जड़े हैं। जिसके कारण कारोबारियों के साथ सरकार को करोड़ों का नुकसान हो रहा है। सूबे से होने वाले कुल निर्यात का 12.47 फीसद केवल चमड़ा उत्पाद ही हैं। कानपुर में करीब डेढ़ लाख से अधिक लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इस कारोबार से जुड़े हैं, जो अब बेरोजगार हो गए हैं। ऐसे में जब पश्चिम बंगाल सरकार West Bengal Government ने यहां के उद्यमियों को सस्ती जमीन और बेहतर सुविधाओं का वादा किया तो 18 उद्यमियों ने वहां निवेश का करार कर लिया।

चमड़ा पहले स्थान पर रहा
2016-17 में उत्तर प्रदेश ने कुल 84282.89 करोड़ रुपये का निर्यात किया था। जिसमें सिर्फ चमड़ा व चमड़ा उत्पादों की हिस्सेदारी 12.47 फीसद यानी 10508.50 करोड़ रुपये का था। बीते साल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ Chief Minister Yogi Adityanath ने जो इन्वेस्टर्स समिट Investors Summit बुलाई थी। उसमें जिले में 1841 करोड़ के निवेश करार हुए थे। इसमें अभी 500 करोड़ का निवेश भी धरातल पर नहीं उतरा है जबकि केवल चमड़ा सेक्टर में ही करीब 700 करोड़ रुपये का निवेश कानपुर से चला गया है। अब इन टेनरियों को बंगाल जाने से सरकार के अलावा मजदूरों को भी नुकसान उठाना पड़ेगा।

40 ने किया है आवेदन
चर्म उद्योग के आयात निर्यात विशेषज्ञ जफर फिरोज बताते हैं कि इन 18 उद्यमियों में से छह को जमीन का एलॉटमेंट भी दो दिन पहले मिल गया। निवेशक उद्यमी महमूद कुरैशी ने कहा कि कानपुर तो घर है, लेकिन यहां इंडस्ट्री ही बंद है। काम का माहौल नहीं है, सो बंगाल जाना पड़ रहा है। कानपुर से कुल 40 उद्यमियों ने आवेदन किया था। बाकी का भी जल्द करार होने की उम्मीद है। चर्म निर्यात परिषद के अध्यक्ष जावेद इकबाल बताते हैं कि बंगाल सरकार के आकर्षक प्रस्ताव पर यहां के उद्यमी अपना विस्तार वहां कर रहे हैं।

ये सुविधाएं मुहैया कराई
महमूद कुरैशी कहते हैं कि कानपुर में उद्योग के लिए जमीन की कीमत सात-आठ हजार रुपये वर्गमीटर है। जबकि बंगाल सरकार ने 4000 में देने का वादा किया है। यह रेट भी 2400 रुपये तक जाने के आसार हैं। कुरैशी बताते हैं कि कोलकाता जैसे शहर के निकट ममता सरकार सीटीईपी निर्माण से लेकर सारे ढांचागत विकास का खर्च उठा रही है। यहां उद्यमियों को खर्च उठाना पड़ रहा है। हवाई के साथ समुद्री परिवहन होने से निर्यातकों का परिवहन खर्च भी काफी कम हो जाएगा।

भविष्य को लेकर चिंतित कारोबारी
चमड़ा उद्यमी अशरफ रिजवान के मुताबिक टेनरियां बंद होने से अब तक तीन हजार करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है। ये नुकसान ऑर्डर कैंसिल होने से हुआ है। अब कोई भी नया आर्डर नहीं मिल रहा है। कानपुर में टेनरी कारोबार का भविष्य अंधकार में देख कर पश्चिम बंगाल सरकार की पहल पर कारोबारी वहां जाने का मन बना चुके हैं। कहते हैं एक दर्जन से अधिक लोगों को पश्चिम बंगाल सरकार औद्योगिक जमीन आवंटित कर चुकी है। वहां एक्सटेंशन यूनिट खोलने का प्लान है। यहां तो हमारा कारोबार चैपट ही समझो। कहते हैं कि टेनरियां बंद होने से कारोबारी पूरी तरह से टूट चुके हैं। मजदूरों का वेतन देने के लिए घर-जमीन तक बेंचनी पड़ रही है।

 
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