देखा तो घर की दहलीज पर मां विमला, पत्नी वैष्णवी, बहन प्रियंका दहाड़े मारकर रो रहे थे। क्योंकि किसी ने भाई, किसी ने पति, किसी ने बेटा तो किसी ने अपना दोस्त यार देश के लिए बलिदान जो कर दिया था। जहाँ में कुछ सवाल उमड़ रहे थे, इसलिए समीप ही खड़े एक सख्श पर नजर पड़ी, जो आंखों में तो गम लिए लेकिन कलेजे पर पत्थर रखकर लोगों से कुछ बता रहा था। जानकारी से पता लगा कि वह सुरजीत यादव है, जो रोहित का भाई और उसका पक्का यार था। जब उससे पूंछा गया तो उसने बताया कि वह और रोहित दोनों सगे भाई की तरह थे लेकिन उससे ज्यादा हम लोग पक्के दोस्त थे। साथ पढ़े लिखे और साथ खेले कूदे।
यहां तक कि हमारा सेना में चयन हुआ। ठीक उसके 7 या 8 माह बाद रोहित भी सेना में भर्ती हो गया। हम दोनों ने हर पल साथ बिताया। जब घर आना होता था तो फोन पर बात करके एक साथ छुट्टी लेने की कोशिश में जुट जाते थे। फिर यहां डेरापुर घर आकर खूब मस्ती करते थे। बोलते हुए अचानक उसकी आवाज़ टूटने लगी, कुछ पल शब्दो को विराम देने के बाद उसने कहा कि ऐसा लग रहा जैसे सब कुछ चला गया। फौजी हूँ तो सभी से कहना है कि मेरे भाई दोस्त के लिए दुआ करना। इतना कहकर वह चुप हो गया। घर से महिलाओं की चीत्कारें सुन सभी का दिल दहल रहा था। डेरापुर के अंबेडकर नगर में पुलवामा के शोपियां में शहीद हुए रोहित के घर का कुछ ऐसा आलम था।