पूरी रात चला
कानपुर से गुरूवार की शाम को अपने परिवार के सदस्यों को ठेले पर बैठाकर राजेश औरैया के निकल पड़ा। करीब 90 किमी की लंबी यात्रा वह 18 घंटे में पूरी कर जैसे ही जालौन पहुंचा उसे पुलिस ने रोक लिया। लाॅकडाउन के बारे में जानकारी दी। जिस पर छोले-भटूरे वाले ने कहा कि 25 मार्च के बाद से घर पर चूल्हा नहीं जला। पत्नी व बच्चे दो दिन भूखे सोए। कोरोना से पहले हमें भूख मार देती। इसी के चलते मैंने अपने गांव चलने का प्रण लिया और ठेले पर बैठाकर निकल पड़ा।
मेरठ के मजदूर फंसे
इस बीच बड़ा चैराहे पर करीब 50 से ज्यादा मजदूर मेरठ के लिए पैदल निकल पड़े। पुलिस ने सभी को रोक लिया और एक भवन पर ले गए। मजूदरों ने बताया कि यहां तो हमारे लिए परदेस है। मेरठ से आए थे सरकारी टेक्नोलॉजी सेंटर बन रहा था। काम बंद करके ठेकेदार समेत सारा स्टाफ चला गया। हम 50 मजदूर ही बचे हैं। मेरठ जाना है, लेकिन कोई साधन नहीं हैं। मजूदरों ने बताया कि अब पैसे भी नहीं बचे। शुक्रवार को एक समाजसेवी संगठन ने भोजन करवाया था।
डीएम ये मिले मजदूर
हताश मजदूर सीधे डीएम से मिल और मेरठ पहुंचाने की गुहार लगाई तो उन्होंने सीओ कोतवाली के पास भेजा। सीओ ने कहा कि गाड़ी और चालक का इंतजाम करके कागज समेत लाओ। हम परमिट बनवा देंगे जाने का। चालक को भी लौटने का परमिट यहीं से मिल जाएगा। मजदूरों ने बताया कि स्मार्ट सिटी के सेंट्रल कंट्रोल पर टोल फ्री नंबर 18001805159 पर कॉल की तो बताया गया कि दोपहिया हो तो एक सवारी को परमिट मिलेगा, चार पहिया हो तो चालक समेत 2 लोग ही बैठ सकेंगे।
नहीं मिली बस
यह सुनकर सभी निराश हो गए। क्योंकि नियमों के मुताबिक 35 लोगों को जाने के लिए कम से कम 18 गाड़ियों का इंतजाम करना इनके लिए बड़ी चुनौती है। इस बीच मजदूरों को जानकारी हुई कि झकरकटी बस स्टैंड से बसें चलने लगी है। हाथ में झोला और सिर पर गठरी लेकर तेके काॅटन मिल से पैदल बस अड्डा क ेचल पड़े। वहां पहुंचने पर उन्हें पता चला कि मेरठ के लिए कोई बस नहीं हैं। मजदूर बस स्टेंड में ही रूक गए। कुछ देर के बाद पुलिस आई और सभी को लेकर चली गई। डीएम ने बताया कि मजदूरों के रहने खाने और पीने की व्यवस्था की गई है। मजदूरों से अपील है िकवह जहां हैं वहीं पर रूकें। समस्या आने पर प्रशासन को फोन के जरिए जानकारी दें।