एकता बनी सहारा
लाॅकडाउन का सबसे ज्यादा असर किसान और मजदूरों पर पड़ रहा है। गंगा के उस पर कटरी के दर्जनों गांव के जीविका का सहारा नांव और खेती है। बेमौसम बारिश से फसल बर्बाद हो गई तो वहीं लाॅकडाउन से नाव की रफ्तार में ब्रेक लग गया। ऐसे में परमठ निवासी एमबीए पास छात्र एकता अग्रवाल ने गंगा के उस पार वालों के लिए मसीहा बनकर सामनें आई हैं। वह नाव के जरिए गंगा पार कर कटरी के गांवों जाती हैं और ग्रामीणों को भोजन के साथ राशन और कोरोना से बचाव के लिए माॅस्क निशुल्क में देकर आती हैं।
पर उनकी किसी ने सुधि नहीं ली
एकता का कहना है लॉक डाउन में हर तरफ बंदी है। ऐसे में शहर वालांे तक प्रशासन और माजसेवियों की राहत पहुंच जाती है लेकिन गंगा के उस पार वालों की सुधि किसी ने नहीं ली। इसी के चलते मैंने कोरोना की इस जंग में गंगा के उस पर वालों को परभेट भोजन की व्यवस्था खुद के पैसे करती हूं। एकता बताती हैं कि गंगा कटरी के गांवों की हालत बहुत दयनीय है। उनके पास खाने के लिए भोजन तो कोरोना से बचाव के लिए माॅस्क नहीं हैं। करीब पंास हजार रूपए की राशन समाग्री मैं उनतक पहुंचा रही हूं और मेरा ये मिशन आगे भी जारी रहेगा।
नाव के जरिए राशन
एकता बताती हैं कि भोजन के पैकेट के अलावा आटे और चावल के पैकेट तैयार हरदिन ग्रामीणों को देकर आती हैं। बीमार को इलाज के लिए नांव के जरिए शहर लेकर आने के बाद उसे अस्पताल में भर्ती करवाती हूं। एकता ने बताया कि उनके साथ क्लासमेट रहे छात्र व अन्य छात्राएं भी इस शुभ कार्य में मदद कर रही हैं। लाॅकडाउन के चलते अधिकतर अवकाश पर हैं और मेरा हाथ बंटवाते हैं।
ग्रामीणों को करती हैं जागरूक
ग्रामीणों के लिए एकता सैनिटाइजर की व्यवस्था भी करती हैं। साथ ही उन्हें शारीरिक दूरी का भी ख्याल रखने और कोरोना के लक्षण के बारे में जागरूक कर रही हैं। एकता ने बताया कि वह बचपन से परमठ स्थित आन्देश्वर के दर्शन के लिए आती थीं। नाव के जरिए गंगा की सैर करने के अलावा कटरी के गांव जाया करती थीं। वहां बच्चों को काॅपी-किताबें देकर उन्हें शिक्षा के प्रति जागरूक करती थीं। एकता कहती हैं तभी से मेरा गंगा के उस पार वालों से खास लगाव है।