उम्मीदवार के पक्ष में बन जाता था माहौल
आधुनिकता के चकाचैंध में ढोल नगाड़े के साथ गवैये की टोली पिछले डेढ़ दशक से नहीं दिखाई पड़ती। बदले दौर में गवैये के स्थान पर सोशल मीडिया के साथ-साथ प्रत्याशी हार्डिंग्स बैनर के जरिए अपना चुनाव प्रचार कर रहे हैं। मझावन के गवैए भीखू कहते हैं कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद घाटमपुर लोकसभा सीट से चुनाव के मैदान में थे। तब हमारी टोली ने उनका प्रचार किया था। कहते हैं, पहले पारंपरिक गीतों की ऐसी महफिल जमती थी, कि राह चलने वाले भी कुछ पल ठहर कर उम्मीदवार के पक्ष में कसीदे पढ़ने लगते थे।
तब बच्चे टूट पड़ते थे
बिठूर के गवैये रामरतन मल्लाह बताते हैं कि वो दौर और था। जब गवैये जीप में बैठकर ढोलक की थाप के साथ प्रत्याशी के पक्ष में गीत गाकर प्रचार करते तब बच्चे बिल्ला और पर्ची के लिए टूट पड़ते थे। कहते हैं, अब चुनाव पूरी तरह से अत्याधुनिक हो गया है। अब गांवों में प्रचार नुक्कड़ नाटक के बजाए टेलीविजनों पर संवाद जरिया बन गया है। नेता टेलीवीजन के जरिए अपनी पार्टी के पक्ष में महौल मनाते हैं तो कुछ धनबल-बाहुबल के जरिए चुनाव जीतकर संसद पहुंचते हैं।
हमलोग उनके लिए वोट मांगा करते थे
मझावन के शंहनाई वादक नूर इलाही बताते हैं कि घाटमपुर से विधायक रहे बेनी सिंह अवस्थी अपने चुनाव प्रचार के दौरान गवैये के साथ ही शहनाई बजानें वालों को बैलगाड़ी पर बैठाते और करीब 14 से 15 घंटे हमलोग उनके लिए वोट मांगा करते थे। बैलगाडी में सवार होकर गांव-गांव घूमते थे और प्रत्याशी का प्रचार करते थे। यदि कहीं दल के किसी बड़े नेता की सभा होनी होती थी तो वहां पहले ही पहुंच जाते थे और मंच संभालकर भीड़ जुटाते थे और मनोरंजन करते थे।
अब नहीं बुलाते नेता
मझावन से रमईपुर की तरफ बढ़ते ही कल्लू पानवाले की दुकान दिखी। कल्लू के पिता शिवरतन (75) गवैये थे। चुनाव शुरू होते ही नेता द्वारा उपलब्ध कराई गई जीप में ढाल-झाल और मजीरा लेकर अपनी टीम के साथ बैठ जाते थे और गांव-गांव घूमकर नेता और उसकी पार्टी का प्रचार करते थे। रामरतन ने बताया, 15 वर्ष हो गए। अब उकोई भी पार्टी या प्रत्याशी चुनाव प्रचार के लिए नही बुलाता। कल्लू बताते हैं कि जब उनकी उम्र पंद्रह साल की थी तब पिता के साथ ढोलक लेकर निकल पड़ते थे। 100 से 200 रुपये दिहाड़ी मिल जाती थी। सुबह और रात में भोजन मिलता था और दिन भर चाय-पानी भी। पर अब कोई नेता बुलाने नहीं आता।