हर कोई मोबाइल का आदी
मोबाइल आज की जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। पहले साधारण फोन और अब एंड्रायड फोन से लोग दिन भर चिपके रहते हैं। काम के दौरान फोन जेब में होता है और काम के बाद फुर्सत के पलों में यह हाथ में रहता है। मोबाइल रोजमर्रा के कई काम आसान करता है तो जीवन भी बर्बाद कर सकता है। यह शोध महर्षि दयानन्द विवि, रोहतक से आईं डॉ. विनीता शुक्ला ने कृषि, विविधता एवं पर्यावरण सामाजिक एवं आर्थिक चुनौतियां विषय पर प्रस्तुत किया। यहां वीएसएसडी कॉलेज के डॉ. प्रदीप दीक्षित की पुस्तक का विमोचन भी हुआ।
मोबाइल आज की जिंदगी का हिस्सा बन चुका है। पहले साधारण फोन और अब एंड्रायड फोन से लोग दिन भर चिपके रहते हैं। काम के दौरान फोन जेब में होता है और काम के बाद फुर्सत के पलों में यह हाथ में रहता है। मोबाइल रोजमर्रा के कई काम आसान करता है तो जीवन भी बर्बाद कर सकता है। यह शोध महर्षि दयानन्द विवि, रोहतक से आईं डॉ. विनीता शुक्ला ने कृषि, विविधता एवं पर्यावरण सामाजिक एवं आर्थिक चुनौतियां विषय पर प्रस्तुत किया। यहां वीएसएसडी कॉलेज के डॉ. प्रदीप दीक्षित की पुस्तक का विमोचन भी हुआ।
पैंट की जेब में रखने से ज्यादा नुकसान
सबसे ज्यादा असर उन युवाओं पर पड़ता है जो पैंट की जेब में मोबाइल रखते हैं। इसका रेडिएशन उनके शुक्राणुओं को कमजोर करता है और उनका विकास रुक जाता है। जिससे आगे चलकर इन युवाओं को पिता बनने में मुश्किल आती है। कुछ को तो लंबे इलाज के बाद राहत मिल जाती है तो कुछ जीवन भर इलाज के बावजूद औलाद के लिए तरसते रहते हैं।
सबसे ज्यादा असर उन युवाओं पर पड़ता है जो पैंट की जेब में मोबाइल रखते हैं। इसका रेडिएशन उनके शुक्राणुओं को कमजोर करता है और उनका विकास रुक जाता है। जिससे आगे चलकर इन युवाओं को पिता बनने में मुश्किल आती है। कुछ को तो लंबे इलाज के बाद राहत मिल जाती है तो कुछ जीवन भर इलाज के बावजूद औलाद के लिए तरसते रहते हैं।
और भी होता है नुकसान
एचबीटीयू में सेमिनार के दौरान डॉ. विनीता शुक्ला ने बताया कि उन्होंने मोबाइल से होने वाले रेडिएशन के दुष्प्रभावों का अध्ययन किया है। पहले चरण में चूहे पर मोबाइल रेडिएशन के प्रभाव का अध्ययन किया। जो निष्कर्ष अब तक सामने आया है उसमें इसके अंदर शुक्राणुओं की संख्या का कम होना है। संभव है और भी प्रभाव पड़े हों लेकिन यह लंबे शोध के बाद ही जाना जा सकता है। जिन चूहों पर अधिक रेडिएशन दिया गया, उनकी प्रजनन क्षमता कम हो गई। अब फीमेल रैट (चुहिया) पर अध्ययन चल रहा है लेकिन निष्कर्ष सामने नहीं आए हैं।
एचबीटीयू में सेमिनार के दौरान डॉ. विनीता शुक्ला ने बताया कि उन्होंने मोबाइल से होने वाले रेडिएशन के दुष्प्रभावों का अध्ययन किया है। पहले चरण में चूहे पर मोबाइल रेडिएशन के प्रभाव का अध्ययन किया। जो निष्कर्ष अब तक सामने आया है उसमें इसके अंदर शुक्राणुओं की संख्या का कम होना है। संभव है और भी प्रभाव पड़े हों लेकिन यह लंबे शोध के बाद ही जाना जा सकता है। जिन चूहों पर अधिक रेडिएशन दिया गया, उनकी प्रजनन क्षमता कम हो गई। अब फीमेल रैट (चुहिया) पर अध्ययन चल रहा है लेकिन निष्कर्ष सामने नहीं आए हैं।