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सजा के फैसले से महंत गदगद, संत के भेष में अपराधी था आसाराम

locationकानपुरPublished: Apr 25, 2018 02:49:41 pm

Submitted by:

Vinod Nigam

नाबालिग के रेप के मामले में अरोप सिध्य, आरोप-प्रत्यरोप का दौर शुरू

नाबालिग के रेप के मामले में अरोप सिध्य, आरोप-प्रत्यरोप का दौर शुरू
कानपुर

नाबालिग से रेप के मामले में जोधपुर की विशेष अदालत ने आसाराम को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। जोधपुर सेंट्रल जेल में लगी एससी-एसटी कोर्ट के विशेष जज मधुसूदन शर्मा की अदालत ने बुधवार को इस मामले में सहअभियुक्त शिल्पी और शरतचंद्र को 20-20 साल कैद की सजा सुनाई। जबकि अन्य दो प्रकाश और शिव को रिहा कर दिया। आसाराम को रियायत देने से इनकार करते हुए जज मधुसूदन शर्मा ने कहा कि उनका अपराध घिनौना है और उन्हें मौत तक जेल में रहना होगा। आसराम के सजा के ऐलान के बाद उसके भक्तों ने जहां घोर अन्याय बताया, वहीं संत समाज ने इस निर्णय का स्वागत किया। पनकी हनुमान मंदिर के मंहत जीतेंद्र दास ने कहा कि फैसला देर से आया, लेकिन दुरूस्त आया। वहीं परमठ आन्देश्वर के अजय पुजारी ने कहा कि आसाराम संत था ही नहीं। वह लोगों को अपनी मीठी-मीठी बातों पर फंसा कर ठगता था। उस ेअब सलाखों के पीछे पूरी जिंदगी गुजारनी होगी। यह फैसला एतिहासिक माना जाएगा, क्योंकि आधीआबादी के साथ संतो ंके भेष में बैठे ढोंगी उन्हें अपना शिकार बनाते रहे हैं और ऐसी ही सजा राम रहीम को भी मिलनी चाहिए।
जनता को ठगी का शिकार न बना सके

जोधपुर के स्पेशल कोर्ट ने आसराम को नाबालिग के साथ रेप के आरोप में दोषी करार देते हुए 20 साल की सजा सुना दी। जिसके चलते देशभर में लोग अलग-अलग प्रतिक्रिया दे रहे हैं। कानपुर के पनकी हनुमान मंदिर के महंत जीतेंद्र दास ने मामले पर कहा कि आसाराम कभी संत नहीं था और सनातन धर्म से उसका दूर-दूर से नाता नहीं था। वह संत का भेष में अपराधी था और लोगों को अपना शिकार बनाया। आज न्यायालय ने उसकी करनी की सजा दे दी। महंत ने कहा कि आरोपी आसाराम को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए, जिससे कोई संत का रूप धारण कर सीघी-साधी जनता को ठगी का शिकार न बना सके। आसाराम जैसे बहरूपे संत आज भी मौजूद हैं और संत समाज उन्हें चिन्हित कर बाहर का रास्ता दिखा रहा है।
कौन है आसाराम
मूल रुप से वो पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में आसाराम का जन्म हुआ था। बटवारे के वक्त आसाराम का परिवार वहां से भागकर गुजरात के शहर अहमदाबाद में बस गया। आसाराम के बचपन का नाम असुमल थाउमल हरपलानी था। आसाराम के बारे में जानकारी देते हुए जाने-इतिहासकार मनोज कपूर बताते हैं कि आसाराम का परिवार अहमाबाद में लकड़ी और कोयले का कारोबार करते थे। जल्द ही आसाराम के पिता की मौत हो गई थी। पिता की मौत के बाद आसारम ने अपना घर संभालने के लिए पढ़ाई छोड़ दी। आसाराम ने तीसरी कक्षा तक ही पढ़ाई की है। कुछ दिन तक लकड़ी और कोयले का काम किया लेकिन इस काम में भई आसाराम का ज्यादा दिन तक मन नहीं लगा तो ये काम भी छोड़ दिया। आसाराम ने महज 15 साल की उम्र में घर छोड़ दिया और भारुच के एक आश्रम में रहने लगे। यहां उन्होंने लीलाशाह नाम के एक स्पिरिचुअल गुरू से दीक्षा ली। इसके बाद ही असुमल थाउमल हरपलानी का नाम आसाराम पड़ा।
जेल में लगी अदालत
नाबालिग शिष्या से दुष्कर्म के मामले में आसाराम (80) को दोषी करार दिया गया है। विशेष एससी-एसटी कोर्ट के जज मधुसूदन शर्मा ने बुधवार सुबह सेंट्रल जेल में कोर्ट लगाकर अपना फैसला सुनाया। जोधपुर की जेल में बंद आसाराम के दो सहयोगियों को भी दोषी ठहराया गया। सजा का एलान आज ही हो सकता है। फैसले और सजा के खिलाफ आसाराम राजस्थान हाईकोर्ट में अपील कर सकता है। आसाराम को कम से कम 10 साल की सजा हो सकती है। प्रावधान उम्रकैद तक का है। इंदिरा गांधी के हत्यारों, आतंकी अजमल आमिर कसाब और डेरा प्रमुख गुरमीत राम-रहीम के केस के बाद ये देश का चौथा ऐसा बड़ा मामला है, जब जेल में कोर्ट लगी और वहीं से फैसला सुनाया गया। पॉक्सो एक्ट के तहत भी ये पहला बड़ा फैसला है।
इन्हीं में से एक आसाराम था
पनकी मंदिर के महंत जीतेंद्र दास कहते हैं कि एक और जहां हमारा देश आधुनिकता की और बढ़ रहा है वहीं दूसरी तरफ आज भी लोग इन जैसे बाबाओं के चंगुल में फंस जाते हैं। भक्तों पर अंधभक्ति की पट्टी कुछ ऐसी बंधी है कि वो अपने इन गुरूओं की सच्चाई तक नहीं पहचानते। गुरू द्वारा ओढ़े गए शराफत के चोले ने इंसानों को इतना अंधा बना दिया है कि वो सही और गलत में फर्क ही नहीं समझ पा रहे है। इन्हीं में से एक आसाराम था। उसने सीधी-साधे लोगों को पहले अपना भक्त बनाया और फिर एक गैंग खड़ा कर लिया। इस दौरान अनपढ़ आसाराम कारोड़ों में खेलने लगा। इसके दरवार में ब्यारोकेट्स से लेकर सफेदरपोश हाजिरी लगाते और पै छूकर आर्शीवाद लेते थे। महंत ने बताया कि 2008 में आसाराम पनकी मंदिर पर प्रवचन के लिए जगह मांगी थी, जिसे हमारे गुरू जी ने देने से इंकार कर दिया। 2009 में यह अपने आश्रृम मैनावती मार्ग में आया था और कानपुर के कई संतों को बुलवाया था, लेकिन गंगा किनारे सनातनियों ने इसके आंमत्रण को ठुकरा दिया था। हमने इसे कभी संत नहीं माना।
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