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महंत ने त्यागा अन्न-वस्त्र, इसके लिए कर रहे तप

locationकानपुरPublished: Dec 09, 2018 04:46:17 pm

Submitted by:

Vinod Nigam

महामंडलेश्र के लिए जारी है जप, प्रयागराज कुम्भ में संत समाज जीतेंद्र दास को देंगे उपाधि, उज्जैन में हुआ था इनका चयन।

mahant of panki temple will be the first mahamandaleshwar of kanpur

महंत ने त्यागा अन्न-वस्त्र, इसके लिए कर रहे तप

कानपुर। साधू-संत बनना आसान नहीं हैं। इसके लिए कठिन तप और त्याग करना पड़ता है। कानपुर के एतिहासिक हनुमान मंदिर के महंत जीतेंद्र दास महामंडलेश्वर पद के लिए वस्त्र का परित्याग के साथ महज एकबार भोजन कर रहे हैं। उन्हें तीन करोड़ हनुमान महामंत्रों का जप करना होगा। इसको पूरा करने के बाद उन्हें प्रयागराज में होने वाले कुम्भ में ये उपाधि दी जाएगी। महंत का चयन उज्जैन में कुम्भ के दौरान हुआ था, जिसके बाद से वो हर रोज दस हजार महामंत्र का जप कर रहे हैं।

कानपुर के पहले महामंडलेश्वर
पनकी हनुमान मंदिर के महंत जीतेंद्र दास 2019 में महामंडलेश्वर बन जाएंगे। वो कानपुर के पहले महामंडलेश्वर होंगे, जिन्हें ये उपाधि मिलेगी। इसके लिए महंत ने वस्त्र और अन्य का परित्याग कर जप-तपक र रहे हैं। महामंडलेश्वर बनने के लिए उन्हें तीन करोड़ हनुमान महामंत्र का जप करना होगा। मंदिर के पुजारी ने बताया कि महंत जितेंद्र दास दिगंबर अखाड़ा (अयोध्या) से जुड़े हैं। यह अखाड़ा जगद्गुरु रामानुजाचार्य (वैष्णव) का है। वर्तमान में देशभर में दस हजार मंदिरों में इस अखाड़े के महंत हैं। महंत के बाद अगला पद महामंडलेश्वर का होता है।

उज्जैन में हुआ था चयन
मंदिर के पुजारी ने बताया कि महंत जीतेंद्र दास का चयन वर्ष 2016 में उज्जैन में हुए कुंभ के दौरान गुरु नृत्यगोपाल दास ने किया था। महंत जीतेंद्र दास 400 वें महामंडलेश्वर बनेंगे। उज्जैन में उन्हें तीन करोड़ हनुमान महामंत्र का जप करने के साथ वस्त्र और अन्न त्यागने को कहा गया था। महंत 20 मई 2016 से महामंत्र का लगातार जप कर रहे हैं। पिछले दो सालों से वो मंदिर से बाहर नहीं गए और अंदर ही अधिकतर समय बिता रहे हैं।

ऐसे बनते हैं महामंडलेश्वर
साधू और संत को महामंडलेश्वर की उपाधि के लिए कठिन तपस्या से गुजराना होता है। जिस दिन उनका चयन इस पद के लिए हो जाता है उसके बाद उन्हें सिले वस्त्रों को परित्याग करने के साथ दिन में सिर्फ एक बार भोजन करना होता है। इसके अलावा जहां पर उनका जन्म हुआ है उस स्थल पर जाने में रोक होती है। इसके अलावा चयनित संत अपने परिवार से नहीं मिल सकता। 24 घंटे में मात्र चार घंटे ही आराम करने का समय मिलता है। इसके अलावा अन्य सुख-सुविधा का परित्याग करने के बाद ही महामंडलेश्वर की उपाधि संत को मिलती हे।

 

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