आजादी की जंग के बीच बापू को कब्ज और बवासीर से भी जूझना पड़ता था। इसके अलावा उन्हें उच्च रक्तचाप, पेचिश और मलेरिया ने भी बार-बार परेशान किया। जिसके चलते कई बार उन्हें बिस्तर पर ही रहना पड़ा। यह रोग बापू को युवावास्था से ही घेरे हुए थे। सिरदर्द भी रह-रहकर उन्हें परेशान करता था। असंतुलित रक्तचाप की वजह से तो वे कई बार बेहोश भी हो जाते थे। उन्हें अपने संघर्ष के दौरान गैस्ट्रिक फ्लू और इंफ्लूएंजा से भी पीडि़त रहना पड़ा।
बापू का वजह मानक से बेहद कम था। महज ४७ किलो वजन के चलते वह बार-बार बीमार पड़ते थे। फरवरी १९४० में उनका रक्तचाप २२०-११० हो गया था। १९२५, १९३६ और १९४४ में वे मलेरिया के शिकार हुए। १९१८ और १९२९ में उन्हें पेचिश ने परेशान कर लिया था और १९३९ में गैस्ट्रिक फ्लू और इंफ्लूएंजा ने बीमार रखा। महात्मा गांधी को जीवन में दो बार बड़ा ऑपरेशन भी कराना पड़ा। १९१९ मे ंजब वह बवासीर से परेशान हुए तो उनका ऑपरेशन किया गया, फिर बाद में उन्हें अपेंडिक्स हो गया, जिसका १९२४ में पुणे के अस्पताल में उनका ऑपरेशन हुआ।
बापू कभी भी बीमारियों से नहीं डिगे। सैर, परहेज, प्राकृतिक चिकित्सा और अटूट मनोबल से उन्हें विजय मिली। सिरदर्द से पीडि़त होने पर बापू ने सुबह का नाश्ता छोड़ दिया था। उनका वजन ७० साल की उम्र्र में महज ४७ किलो था, जबकि इस उम्र में वजन कम से कम ६० किलो होना चाहिए। मलेरिया से लडऩे के लिए उन्होंने प्राकृतिक चिकित्सा का सहारा लिया और उपवास किया। पेचिश से लडऩे के लिए उन्होंने बकरी के दूध का सहारा लिया।