पुराने जमाने में गिद्धों को का महत्व माना जाता था। ये झुंडों में रहने वाले ऐसे मुर्दाखेर पक्षी होते हैं, जिनसे कोई भी गंदी और घिनौनी चीज खाने से नहीं बचती। ये पक्षियों के मेहतर हैं जो सफाई जैसा आवश्यक काम करके बीमारी नहीं फैलने देते। ये गिद्ध ही हमारे आसपास की गंदगी और मरे हुए जानवरों को साफ कर जाते थे, जिससे वातावरण शुद्ध रहता है। इस कारण पुराने जमाने में इन्हें समाज में महत्वपूर्ण स्थान मिला हुआ था।
यह पक्षी कुछ साल पहले अपने पूरे क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में थे। 1990 के दशक में इस जाति का पतन हो गया है। इसका मूलत: कारण पशु दवाई डाइक्लोफिनॅक है जो कि पशुओं के जोड़ों के दर्द को मिटाने में मदद करती है। जब यह दवाई खाया हुआ पशु मर जाता है और उसको गिद्ध खाता है तो उसके गुर्दे बंद हो जाते हैं और वह मर जाता है। अब नई दवाई मॅलॉक्सिकॅम आ गई है और यह हमारे गिद्धों के लिये हानिकारक भी नहीं हैं।
कानपुर चिडिय़ाघर की सफारी में गिद्धों के संरक्षण के लिए वर्ष 2018 में रैप्टल रेस्टोरेंट बनाया गया था। साथ ही एक तालाब भी तैयार किया गया था, ताकि गिद्ध यहीं पर ठहर जाएं। इसके साथ ही रैप्टल रेस्टोरेंट बन जाने से यहां इजिप्शियन वल्चर और चील बड़ी संख्या में आए थे। बाद में इसे बंद करा दिया गया था। इसके साथ ही कुछ महीने पहले इसको फिर खोल दिया गया। जू के वरिष्ठ डॉ. यूसी श्रीवास्तव का कहना है कि शांत माहौल और उनका पसंदीदा खाना मिलने से कई प्रजातियों के दुर्लभ गिद्ध भी आ गए हैं।
चिडिय़ाघर में दुर्लभ हिमालयन ग्रिफॉन वल्चर, स्लेंडर बिल्ड वल्चर, बिअरडेड वल्चर और राज गिद्ध देखा गया है। यह पहली बार कानपुर चिडिय़ाघर में आए हैं। पहले यहां इजिप्शियन गिद्ध और इंडियन वल्चर ही आते थे। इजिप्शियन गिद्ध पूरे यूपी में पाया जाता है, जबकि ग्रिफॉन गिद्ध हिमालय व असम में विचरण करता है। बिअरडेड गिद्ध राजस्थान के साथ दक्षिण भारत में और स्लेंडर बिल्ड गिद्ध गुजरात राजस्थान और एमपी में देखने को मिलता है। इसके अलावा मध्यप्रदेश और चंबल इलाके में राज गिद्ध अच्छी संख्या में पाया जाता है।