कानपुर

कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगी बसपा सुप्रीमो मायावती

इस गठजोड़ ने सपा के सुल्तान को अकेला छोड़ दिया है, जबकि यूपी की सियासत में कांग्रेस का वजूद बढऩा तय है

कानपुरJun 07, 2018 / 01:32 pm

आलोक पाण्डेय

कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगी बसपा सुप्रीमो मायावती

आलोक पाण्डेय
कानपुर. राजनीति की करवट ने सियासत के महारथियों को बेचैन कर दिया है। सपा-बसपा गठबंधन में नया गुल खिलने की उम्मीद टिमटिमाने लगी है। यूपी की सत्ता से बेदखल हुई बसपा को कई साल बाद किसी राज्य की सत्ता में हिस्सेदारी मिली है। कर्नाटक में बसपा को यह तोहफा कांग्रेस की जिद पर ही मिला है। ऐसे में कांग्रेस और बसपा के बीच नजदीकियां बढऩा स्वाभाविक है। जल्द ही यह नजदीकी गठबंधन की शक्ल में सामने होगी। बसपा प्रमुख मायावती ने भी सपा के सुल्तान के बजाय कांग्रेस के युवराज से सियासी रिश्ते जोडऩे में फायदा देखा है। कांग्रेस-बसपा का गठबंधन ही इस साल के अंत में प्रस्तावित मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव में उतरेगा। सियासी प्रयोग कामयाब हुआ तो यूपी की सियासत में कांग्रेस का वजूद बढऩा तय है। कांग्रेस के साथ रिश्ते जोडकऱ मायावती एक तीन से दो निशाने लगाना चाहती हैं।

कांग्रेस की जिद पर एन. महेश को बनाया गया है मंत्री

बीते दिवस कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार का विस्तार हुआ। इस विस्तार में यूपी की सत्ता से बेदखल होने के कई साल बाद बीएसपी को प्रत्यक्ष तौर पर किसी राज्य में सत्ता की साझेदारी मिली है। गौरतलब है कि कर्नाटक में जेएडीएस और कांग्रेस अपने दम पर ही सत्ता के सुविधाजनक आंकड़े का जुगाड़ कर चुकी है। ऐसे में सरकार में बीएसपी के रहने या न रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता। मायावती भी इस बात को जानती हैं। बावजूद कर्नाटक में बीएसपी के इकलौते विधायक एन. महेश भी कुमारस्वामी सरकार में मंत्री बनाए गए हैं। ऐसा संभव हुआ है कांग्रेसी युवराज राहुल गांधी के कारण। दरअसल, सपा की नजरों में कमजोर कांग्रेस इस फैसले के जरिए मायावती से रिश्ते जोडकऱ मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में भाजपा को पटखनी देने की जुगत में है। तीनों राज्यों की कई सीटों पर बसपा का वोटबैंक पार्टी प्रत्याशी को जिताने की स्थिति में भले ही नहीं है, लेकिन कांग्रेस का साथ देकर भाजपा को हराने की क्षमता अवश्य रखता है।

पड़ोसी राज्यों के बाद यूपी में साथ होगा हाथी और हाथ

राजनीति के जानकारों के मुताबिक, कांग्रेस और बसपा का गठजोड़ ज्यादा प्रभावी होगा। बीते लोकसभा चुनावों में बसपा 34 स्थानों पर दूसरे नंबर पर थी, जबकि कांग्रेस 20 स्थानों पर। ऐसे में यदि दोनों दल साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे तो मुमकिन है कि बसपा-कांग्रेस गठबंधन यूपी में अस्सी में पचास सीट पर विजयी पताका को लहरा देगा। इस गठबंधन में सपा के साथ होने की स्थिति में 60-65 सीटों पर कामयाबी मिलने की उम्मीद है। बसपा के उच्च पदस्थ सूत्र ने बताया कि पार्टी सुप्रीमो का सपना दिल्ली सिंहासन पर काबिज होना है। ऐसे में सपा के बजाय कांग्रेस का साथ मुफीद रहेगा। कारण यह कि गठबंधन की स्थिति में भले ही अखिलेश यादव बड़ा दिल दिखाकर बसपा को 35 सीट देने के लिए तैयार हैं, लेकिन इस स्थिति में जीत का सेहरा अखिलेश के सिर सजेगा। तीन राज्यों में कांग्रेस के जरिए भाजपा को हराने के बाद बसपा की हैसियत बढऩा स्वाभाविक है। ऐसे में वह यूपी के गठबंधन में सपा पर दबाव की राजनीति बनाकर कांग्रेस को सम्मानजनक सीट दिलाने का प्रयास करेंगी।

इस जुगत से मायावती को प्रधानमंत्री बनना तय होगा

बसपा के पूर्व विधायक कहते हैं कि मिशन 2019 में भाजपा के पराजित होने की स्थिति में भी कांग्रेस को बहुमत नहीं मिलेगा। ऐसे में गठबंधन की सरकार बनेगी। प्रधानमंत्री पद के दावेदार तमाम होंगे। उदाहरण के तौर पर ममता बनर्जी, के.चंद्रशेखर राव, शरद पवार, नवीन पटनायक, अखिलेश यादव और मायावती। कांग्रेस के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन करने से बसपा का पलड़ा भारी रहेगा। भविष्य की राजनीति के लिए कांग्रेस पार्टी मायावती के नाम पर समर्थन देने को तुरंत तैयार होगी। ऐसा संयोग बनता है तो मायावती का प्रधानमंत्री बनना तय है। चूंकि केंद्र की सत्ता नहीं मिलने की स्थिति में कांग्रेस परोक्ष रूप से शासन करना चाहेगी, इसलिए उसे मायावती से अच्छा साथी भी नहीं मिलेगा। इसके अतिरिक्त बसपा के साथ गठजोड़ के जरिए कांग्रेस यूपी में अपनी जमीन को मजबूत करने में भी कामयाब होगी।
अपमान का राजनीतिक बदला चाहते हैं कांग्रेसी युवराज

विधानसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस का गठबंधन फ्लॉप हुआ तो अखिलेश यादव ने कांग्रेस को अकेला छोड़ दिया। सपा के सुल्तान को बसपा का साथ अच्छा लगने लगा। इसी दौरान लोकसभा और विधानसभा चुनाव में हार के बाद बीएसपी के ‘खत्म’ होने के मिथ को मायावती तोडकऱ मजबूत मनोवैज्ञानिक वापसी कर चुकी हैं। यूपी में गोरखपुर और फूलपुर में समर्थन के ऐलान से ही सियासत बदलकर मायावती साबित कर चुकी हैं कि दलित वोटरों के लिए अब भी उनके इशारे के मायने हैं। उधर, कांग्रेस के लिए मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव मोदी की अगुआई में भाजपा को रोकने के लिए ‘नॉकआउट’ सरीखे हैं। बसपा के साथ रिश्ते जोडकऱ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी यह भी जताना चाहते हैं कि यूपी की सियासत में अखिलेश सुल्तान हैं, लेकिन राष्ट्रीय राजनीति के राजा राहुल गांधी हैं।
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