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मायावती के दांव में बुरा फंसी सपा, अखिलेश यादव के सामने बड़ा संकट, हो सकता है नुकसान

locationकानपुरPublished: Jun 18, 2018 09:53:54 am

Submitted by:

Vinod Nigam

हर बार हार कर जीतती रहीं मायावती, अखिलेश के बजाए राहुल से की दोस्ती…

Mayawati targets 2022 UP election with 2019 Lok Sabha Election

मायावती के दांव में बुरा फंसी सपा, अखिलेश यादव के सामने बड़ा संकट, हो सकता है नुकसान

कानपुर. आजादी के बाद यूपी की सियासत पर कांग्रेस का राज था और 1989 तक पंजे की हुकूमत यहां चलती रही। लेकिन इटावा के सैफई से निकले किसान के बेटे मुलायम सिंह यादव ने दलितों की नेता मायावती के साथ मिलकर पंजे का सूबे से सफाया कर दिया और यहां के सुल्तान बन गए, पर असली बाजीगर बसपा सुप्रीमो मायावती रहीं। मुलायम के चलते सत्ता मिली, बावजूद उनसे सर्मथन वापस लेकर सरकार गिरा दी। इस दौरान दोनों नेता कईबार सीएम रहे, लेकिन 2012 के बाद क्षत्रपों की उल्टी गिनती शुरू हो गई। नरेंद्र मोदी ने उन्हें सीधे टक्कर दी और 2014 से लेकर 2017 विधानसभा और निकाय चुनाव में हराकर दोनों दलों की राजनीतिक करियर बरबाद कर दिया। हार दर हार से बसपा प्रमुख बैकफुट में आ गईं और लोकसभा उपचुनाव में अखिलेश के उम्मीदवारों को समर्थन कर सियासी दांव खेला जो सफल रहा। मायावती के हाथी के शरीर में जान आ गई और गैर जाटव वोट कुछ हद तक पार्टी के पक्ष में खड़ा हो गया।
किया हां, फिर हो गईं खामोश

उपचुनाव में मिली जीत के बाद अखिलेश ने भी वक्त की नजाकत को समझा और बुआ की तरफ दोस्ती का हाथ बड़ा दिया। मायावती ने भी बबुआ को गले लगा 2019 का लोकसभा चुनाव सपा के साथ लड़ने का ऐलान कर दिया। लेकिन कैराना के बाद मायावती खामोस हो गई, वहीं अखिलेश त्यागी पुरूष बन कर बुआ की हर बात मानने को तैयार हो गए, पर मायावती अभी भी अपने पत्ते खोलने को तैयार नहीं। एक बसपा के कद्दावर नेता ने बताया कि बसपा कैडर व कार्यकर्ता किसी भी हालत में सपा के साथ चुनाव लड़ने के पक्ष में नहीं है। बसपा नेता ने बताया कि 11 साल के बाद बसपा का वोटबैंक पार्टी के पास वापस आया है और अगर सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा जाएगा तो इसका सीधा फाएदा भाजपा के साथ ही 2022 विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को होगा।
कुछ इस तरह से राजनीति में किया प्रवेश

15 जनवरी, 1956 को मायावती का जन्म दिल्ली में सरकारी कर्मचारी प्रभु दयाल और रामरती के घर पर हुआ था। पिता दूरसंचार विभाग में क्लर्क के पद पर तैनात थे। मायावती के 6 भाई और दो बहने हैं। मायावती का पुश्तैनी गांव यूपी के गौतमबुद्धनगर जिले के बादलपुर में है। ग्रेजुएशन के बाद दिल्ली के कालिंदी कॉलेज से मायावती ने एलएलबी किया और इसके बाद बीएड की शिक्षा प्राप्त की। पढ़ाई के बाद दिल्ली के एक स्कूल में मायावती पढ़ाने लगीं और इसके साथ वे आईएएस की तैयारी भी कर रही थीं। कांशीराम मायावती के घर उनसे मिलने पहुंचे। कांशीराम ने मायावती से पूछा कि आप क्या बनना चाहती हैं। इस पर उन्होंने कहा कि आईएएस। इसके बाद कांशीराम ने कहा कि देश में आईएएस की कमी नहीं है, बल्कि एक अच्छे नेता की कमी है। अगर नेता अच्छा होगा तो अफसर भी अच्छा काम करेंगे। इसके बाद मायावती ने पढ़ाई छोड़ दी और राजनीति में आने का फैसला ले लिया।
पहला चुनाव हार गई थीं मायावती

बसपा के गठन के बाद मायावती ने 1985 में बिजनौर से लोकसभा का उपचुनाव लड़ा। इस चुनाव में वह 61 हजार 504 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहीं। हालांकि, मायावती को चाहने वालों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही थी, साथ ही वोटों की संख्या भी। 1987 में हरिद्वार सीट से 1 लाख 25 हजार 399 वोटों के साथ वे दूसरे स्थान पर रहीं। साल 1989 में बिजनौर से 1 लाख 83 हजार 189 वोटों के साथ वे पहली बार सांसद के तौर पर चुनी गईं। साल 1993 में बसपा और सपा का गठबंधन हुआ। इस गठबंधन ने चुनाव जीता और समझौते के तहत मुलायम सिंह यूपी के सीएम बने। आपसी खींचतान के चलते 2 जून, 1995 को बसपा ने सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर दी। इससे मुलायम सिंह की सरकार अल्पमत में आ गई।
तब हुआ गेस्ट हाउस कांड

समर्थन वापसी से नाराज होकर सपा के वर्कर्स सांसदों और विधायकों के नेतृत्व में मीराबाई मार्ग स्थित स्टेट गेस्ट हाउस पहुंचे और उसे घेर लिया। मायावती कमरा नंबर एक में रुकी थीं और यहां बसपा के विधायक और वर्कर्स भी मौजूद थे। उन्हें सपा वर्कर्स ने मारपीट कर बंधक बना लिया। मायावती ने अपने आप को बचाने के लिए कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। उस वक्त वहां मौजूद रहीं कानपुर की मेयर प्रमिला पांडेय बताती हैं कि सपा वर्कर्स समर्थन वापसी से इतने नाराज थे कि वे गेस्ट हाउस में आग लगाने की तैयारी से आए थे। सपा समर्थकों ने जब देखा कि मायावती ने कमरा अंदर से बंद कर लिया है तो उन्होंने गेस्ट हाउस का दरवाजा तोड़ने की कोशिश की।’ करीब 9 घंटे बंधक बने रहने के बाद बीजेपी नेता लालजी टंडन ने अपने समर्थकों के साथ वहां पहुंचकर मायावती को सुरक्षित बाहर निकाला।
इसी के चलते अभी चुप हैं मायावती

बसपा से जुड़े एक बड़े नेता व पूर्व विधायक ने बताया कि गेस्टहाउस कांड ने मायावती को झंकझोर दिया था। उन्होंने तो राजनीति से बाहर होने के मन बना लिया था। लेकिन बसपा कार्यकर्ताओं के साथ ही एक भाजपा नेता ने उन्हें राजनीति में बने रहने की सलाह दी थी। भाजपा नेता ने कहा था कि अगर आप सियासत छोड़ कर चली जाएंगी तो देश को बहुत बड़ा नुकसान होगा। आप लड़ कर जीतने वाली महिला हैं। इसी के बाद मायावती फिर से एक्शन में आईं और 2007 में अकेले यूपी की सीएम बनीं। बसपा के नेताओं की मानें तो सपा के बजाए कांग्रेस के साथ चुनाव में जाने से 2019 के अलावा 2022 में भी पार्टी को मदद मिल सकती है। पूर्व विधायक ने यहां तक बताया कि मायावती कभी भी मुलायम के परिवार के साथ चुनाव में नहीं उतर सकतीं। गेस्टहाउस कांड के कई आरोपी आज भी सपा में हैं।
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